अबकी बार... लल्लन प्रधान - Novels
by Bhupendra Singh chauhan
in
Hindi Short Stories
जगतपुरा....ऐसा गांव जो अब भी गांव है ।शहरों की चकाचौंध और आधुनिकता से दूर एकांत में बसे इस गांव की खूबी है कि यह अपने मे ही खुश हैं।इसकी अपनी दुनिया है।करीब 3000 की आबादी वाले जगतपुरा में कई ...Read Moreमें बंटे हिन्दू रहते हैं तो एक मोहल्ला मुसलमानों का भी है।ग्राम पंचायत चुनाव में जगतपुरा के साथ एक गांव और जुड़ जाता है-मलिनपुरा।मलिनपुरा दलित बाहुल्य छोटा सा पुरवा है जो कभी जगतपुरा का ही हिस्सा था।यह कहानी है लल्लन यादव की।जगतपुरा के ऊंच मोहल्ले के रहने वाले बबोले
जगतपुरा....ऐसा गांव जो अब भी गांव है ।शहरों की चकाचौंध और आधुनिकता से दूर एकांत में बसे इस गांव की खूबी है कि यह अपने मे ही खुश हैं।इसकी अपनी दुनिया है।करीब 3000 की आबादी वाले जगतपुरा में कई ...Read Moreमें बंटे हिन्दू रहते हैं तो एक मोहल्ला मुसलमानों का भी है।ग्राम पंचायत चुनाव में जगतपुरा के साथ एक गांव और जुड़ जाता है-मलिनपुरा।मलिनपुरा दलित बाहुल्य छोटा सा पुरवा है जो कभी जगतपुरा का ही हिस्सा था।यह कहानी है लल्लन यादव की।जगतपुरा के ऊंच मोहल्ले के रहने वाले बबोले
#पार्ट_2 ★■★ ...Read More जज्बाती लल्लन ★■★लल्लन हार के सदमे से धीरे-धीरे उबर रहा है।वह समझ चुका है कि चुनावों में पीठ ठोकने वाले और वोट देने वाले अलग-अलग होते हैं।तकरीबन 2 लाख रुपया पानी मे चला गया, लल्लन को इसका दुख नही है। वह जानता है रुपया हाथों का मैल है, वह फिर कमा लेगा। उसको सबसे बड़ा सदमा शुकुल चाचा ने दिया।इतना विश्वास
लल्लन ने गौरीबदन संग उठना-बैठना तेज कर दिया था ठीक इसी तरह पंकज की नाहर सिंह के साथ नजदीकियाँ बढ़ने लगीं।राजनीति में स्थायी दोस्त और दुश्मन कोई नही होता।गौरीबदन का लल्लन को साथ लेना अकारण नही था।गौरी ने तीन ...Read Moreतक राजनीति की थी सो वह गांव की आबो-हवा को बहुत अच्छे से जानते-समझते थे।पिछले चुनावों में भी गौरी को शुकुल के हाथों लल्लन की दुर्गति पहले से पता थी।वह जानते थे कि शुकुल उसका इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन तब भी यदि उन्होंने इसकी भनक लल्लन को नही लगने दी तो इसके पीछे भी कारण था। गौरीबदन को पता
अबकी बार...लल्लन प्रधानपार्ट-4 ★★लल्लन के जवाहर नृत्य महोत्सव में दिए गए ...Read Moreकी चर्चा कई दिनों तक गांव में होती रही।लोग अपनी-अपनी बुद्धि- बल से लल्लन के दिये 21000₹ का जोड़-गुणा-भाग कर रहे थे।शुकुल को उस दिन से ही दाल में कुछ काला नजर आ रहा था।उनका राजनीतिक मस्तिष्क यह स्वीकारने को तैयार न था कि 21000 ₹ लल्लन अपनी जेब से देगा।धीरे धीरे उनकी शंकाएं मिटती गयीं और अब गली-कूचों में चर्चा सरेआम हो गयी थी कि गौरीबदन इस दफे चुनाव नहीं लड़ेंगे।साथ ही ये भी
नाहर अपनी जीत में सबसे बड़ा रोड़ा लल्लन को मानते थे।चुनावी पंडितों द्वारा भी यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस वर्ष का चुनाव नाहर बनाम लल्लन होगा।मलिनपुरा का बैजनाथ निवर्तमान प्रधान छेदू की काट के लिए खड़ा ...Read Moreथा यद्यपि सच्चाई ये थी कि बैजनाथ को खड़ा किया गया था, नाहर और शुकुल के द्वारा।वही शुकुल जिन्होंने पिछली दफे छेदू को चुनाव जितवाया था अब उसे हराना चाहते थे।पंचायत चुनाव इसी जोर-आजमाइश में फलते-फूलते हैं।यहां समर्थक को विरोधी और विरोधी को समर्थक बनने