This time ... Lallan Pradhan - 5 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

अबकी बार... लल्लन प्रधान - 5 - (अंतिम भाग)


नाहर अपनी जीत में सबसे बड़ा रोड़ा लल्लन को मानते थे।चुनावी पंडितों द्वारा भी यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस वर्ष का चुनाव नाहर बनाम लल्लन होगा।मलिनपुरा का बैजनाथ निवर्तमान प्रधान छेदू की काट के लिए खड़ा हुआ था यद्यपि सच्चाई ये थी कि बैजनाथ को खड़ा किया गया था, नाहर और शुकुल के द्वारा।वही शुकुल जिन्होंने पिछली दफे छेदू को चुनाव जितवाया था अब उसे हराना चाहते थे।पंचायत चुनाव इसी जोर-आजमाइश में फलते-फूलते हैं।यहां समर्थक को विरोधी और विरोधी को समर्थक बनने में देर नही लगती।कौन किसे समर्थन देगा इसे हालात तय करते हैं।हालात जो कि अब चीख-चीखकर नाहर को सबसे बड़ा कैंडिडेट घोषित कर रहे थे यही गौरीबदन के लिए सबसे बड़ी समस्या थी।नाहर यदि जीत गए तो गौरीबदन का राजनीतिक भविष्य खत्म हो जायेगा क्योंकि दोनों का वोट बैंक एक ही है।चुनाव कोई भी हो 2 में से कोई 1 ही जगतपुरा रूपी घाट का वोट रूपी पानी पी सकेगा।
नाहर की जीत तय मानी जा रही थी लेकिन लल्लन और पंकज भी रेस से बाहर नही थे।पंकज ने अपना प्रचार जारी रखा।नाहर और लल्लन के हवा-हवाई वादों के विपरीत उन्होंने जनता से उतने ही वादे किए जितने पूरे किए जा सकते थे।मसलन पंकज ने जगतपुरा को शौचमुक्त(ODF),हर गली में इंटरलॉकिंग, पक्की और ढकी नालियाँ,हर जरूरतमंद को आवास और दोनों गांवों में 1-1 तालाब के साथ बेहतर जल निकासी जैसे वादे किए थे। नाहर ने गांव में सरकारी अस्पताल, बारातघर,विद्युतीकरण,पानी की टँकी जैसे दुष्कर वादे किए थे।जबकि लल्लन ने नाहर के वादों के साथ ही कुछ ऐसे वादे भी किये जिन्हें ग्राम प्रधान तो क्या क्षेत्र का विधायक भी पूरे नही कर पाता है।
जगतपुरा सदियों से अंधेरे में रहा है।देश को आजादी मिले 50 साल होने को थे जबकि जगतपुरा ने अभी तक बल्ब की रोशनी नही देखी थी।नाहर ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए 2 वर्ष पूर्व गांव में बिजली लाने के प्रयास किये थे जबकि गौरीबदन ने भी अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल कर सिफारिशें लगवाई थीं।अब चाहे नाहर के प्रयासों का नतीजा हो या गौरीबदन की सिफारिशों का, जगतपुरा में खम्भे गड़ने शुरू हो गए थे जबकि तार खिंचने अभी बाकी थे।नाहर इसे अपनी जीत बता कर वोट मांग रहे थे तो गौरीबदन इसका खंडन कर "ऊपर"से बिजली आने की बात कह रहे थे।नाहर खुद को बिजलीमैन कह इसका श्रेय किसी और को देना नही चाहते थे।अपने चुनावी प्रचार में जीतने के 6 महीने के भीतर गांव को अंधेरे से निजात दिलाने का वादा वह कर चुके थे।उन्होंने तो नारा भी दे दिया था-
"जगतपुरा की आबादी,
मांगे लालटेन से आजादी।"

2 वर्ष पहले
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कोई भी अपने आपमें पूर्ण नही होता।इंसानों के साथ साथ यह बात गाँवो में भी लागू होती है।जगतपुरा भी इससे अछूता नही था।चांद के दाग की तरह जगतपुरा पर भी एक दाग था जो जगतपुरा वासियों के लिए घाव सरीखा था।हर कोई इस घाव को मिटा देना चाहता था लेकिन बेबस था।आज तक इस गांव ने बिजली के बल्ब की रोशनी नही देखी थी।पास-पड़ोस का हर गांव जब बिजली की रोशनी से जगमगाता था तब जगतपुरा लालटेन की रोशनी में अपनी बेबसी पर रोता था।आलम ये था कि जगतपुरा में कोई बेटी ब्याहने को तैयार नही होता था।वर खोजने आने वाले लोग बिजली की हाल-फिलहाल आशा न देख दूसरे गांव चले जाते थे।

नाहर सिंह का उदय
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बिजली की समस्या को नाहर ने अवसर के रूप में लिया था।उन्होंने महसूस कर लिया था कि बिजली की समस्या वह घाव है जो अब नासूर बन चुका है।जगतपुरा इस घाव का इलाज चाहता था,कीमत चाहे कुछ भी हो।नाहर ने अवसर को भांप बिजली लाने के प्रयास शुरू कर दिए थे।नाहर के सिवा कोई न जानता था कि उनका लक्ष्य अगला पंचायत चुनाव है।नाहर ने भी अपने पत्ते खोलने में जल्दबाजी नही की।वह जानते थे कि जनता काम चाहती है।काम करके आओ, जनता चलकर वोट देगी।नाहर ने बिजली लाने के लिए दौड़-धूप तेज कर दी।हर छोटे-बड़े नेता,विधायक और सांसद जी तक सिफारिश लगवाई।उधर गौरीबदन भी नाहर के मन्तव्य से अनजान नही थे।गौरीबदन दूर की सोच वाले आदमी थे।वह जानते थे कि यदि नाहर बिजली लाने में कामयाब हो गए तो मेरी राजनीति डूब जाएगी।बिजली लाने का श्रेय अकेले नाहर न ले पाएं इसी उद्देश्य से गौरीबदन ने भी सोर्स लगवाना शुरू कर दिया। क्षेत्र में नाहर से अधिक गौरीबदन की राजनीतिक पैठ थी।
खैर खम्भे गड़ते ही नाहर का सफेद कुर्ता-पायजामा और सदरी पहनना भी शुरू हो गया।वह हर रोज विद्युतीकरण का कार्य ऐसे देखने जाते मानो बिजली कम्पनी के ठेकेदार हों।बिजली आने से हर घर मे खुशी का माहौल था।लोग इस तरह से खुश थे मानो बिजली नही घर में नई बहू आ रही हो।नाहर इस खुशी में अपनी खुशी देख रहे थे।

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बहरहाल जगतपुरा की जनता बिजली का श्रेय किसे देगी यह मतपेटी खुलते वक्त ही पता चलने वाला था।अभी तो सब छाती ठोंके थे।गौरीबदन ने हर वो नीति अपनाई जिससे लल्लन को जिताया जा सके बल्कि नाहर को हराया जा सके।नाहर भी साम दाम दण्ड भेद समेत तमाम दांव आजमा रहे थे।

यही रात अंतिम यही रात भारी
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वोटिंग से पहले की रात।कयामत की रात।विजेता तय करने की रात।किसके सिर ताज सजेगा यह आज की रात तय होने वाला था।कल का दिन आज की रात का परिणति होगा।कल के दिन तो सिर्फ वोट डाले जाएंगे।किसके खाते में डाले जाएंगे यह आज की रात तय हो जाएगा।आज की रात जो प्रत्याशियों के लिए बहुत छोटी मालूम पड़ रही थी।प्रत्याशी 1-1 सेकेंड अपने नाम कर लेना चाहते थे ।नाहर शुकुल के साथ बाभन मोहल्ला में थे तो लल्लन गौरीबदन के साथ कछवाहन टोला में।छेदू मलिनपुरा में डेरा डाले थे जबकि पंकज शुक्ला इस वक्त मुस्लिम बस्ती में थे।शुकुल के आदेश पर बैजनाथ भी मलिनपुरा में पैसे बाँट रहा था।साड़ी, कम्बल,दारू,पैसा जो जिससे खुश हो उससे सेवा की जा रही थी।आज की रात न कोई चैन से सोया न सोने दिया गया।
गौरीबदन लल्लन को कछवाहन टोला घुमाकर हर संभावित वोट को पक्का करने में जुटे थे।इसके बाद दोनों को ऊंच मोहल्ला जाना था।जहां उन्हें रात 2 बजे तक रुकना था ताकि नाहर या पंकज उनके वोट न तोड़ सकें।लल्लन का सर्वाधिक वोट ऊंच मोहल्ले में ही था।लल्लन और गौरीबदन नही चाहते थे कि कोई इस पर सेंध लगा जाए।चुनावी भाषा मे इसे "वोट घेरना" कहते हैं। रात के 11.30 का वक्त था जब लल्लन गौरीबदन संग अपने ऊंच मोहल्ले की ओर निकला।अभी दोनो रास्ते में ही थे कि लल्लन ने मोटरसाइकिल रोक दी।
"ठाकुर साहब! आप ऊंच मोहल्ला मा लाखन दाऊ के घर मा रूको तब तक हम मलिनपुरा घूम आवन।" लल्लन ने गौरीबदन से कहा।
"अरे बाद मा मलिनपुरा घूम लीन जइ।मलिनपुरा मा तो वइसेव अपन वोट नही है, फिर हुन जाके का करिहव।" गौरीबदन ने आपत्ति जताई।
"अरे दादा,बस रेकी कर आवन।पता तो चलै कि उइ मोहल्ला मा केखे हवा है।"लल्लन ने जिद करते हुए कहा।
"ठीक है जाओ लेकिन ज्यादा टाइम न खर्चा करेव।जहां अपन वोट न होए हुन टाइम खर्चा करब समय की बर्बादी है।"गौरीबदन ने अनुभव सिद्ध बात कह लल्लन को जाने की इजाजत दे दी।
लल्लन गौरीबदन को छोड़ मलिनपुरा की ओर चल पड़ा।थोड़ी दूर तक चलने के बाद अचानक उसने राह बदली और मलिनपुरा को जाने वाली सड़क छोड़कर उस ओर चल दिया जहां मुसलमानों के घर थे।उसे मालूम था पंकज शुक्ला इस समय वहीं पर हैं।उसे पंकज से मिलना था।
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पल-पल रंग बदलती रात बीती।सुबह की धुंध को चीरती सूरज की किरणों ने जगतपुरा में रोशनी बिखेरनी शुरू कर दी।सारा गांव आज चुनावी रंग में रंगा हुआ था।मतदान केंद्र की ओर जाने वाली सड़क के इर्दगिर्द पोस्टर,पम्पलेट, बिल्ले और मतदान पर्चियों से सजे सारे प्रत्याशियों के बस्ते खुले हुए थे।नाहर और लल्लन के बस्तों में सबसे ज्यादा भीड़ थी।वोटरलिस्ट में नाम खोजे जा रहे थे।पुलिस की सायरन बजाती गाड़ियां बार-बार आ जा रही थीं।हर कोई आज उत्साह में था।हो भी क्यों न,ग्राम पंचायत की बागडोर अगले 5 सालों के लिए किसके हाथ मे देनी है यह आज वह तय करने वाले थे।हर कोई उत्तेजित था।प्रधान चुनना दामाद चुनने से अधिक कठिन काम है।
ग्राम पंचायत चुनावों में एग्जिट पोल नही होते।यहां तो बूथ एजेंट,बस्ते में बैठे लोग और गांव की हवा को स्पष्ट महसूस करने की क्षमता रखने वाले लोग ही एग्जिट पोल का काम करते हैं।खैर वोटिंग के दिन तक पैसा बंटता रहा।
वोटिंग सम्पन्न हुई।सारे प्रत्याशियों का चुनावी भाग्य मतपेटियों में बन्द करके स्ट्रांग रूम में रख दिया गया।अब अटकलों-कयासों का दौर चलना था।चला भी।कोई नाहर के सिर सेहरा बांध रहा था तो कोई लल्लन के।गांव के एग्जिट पोलों की मानें तो इस बार नतीजे चौंकाने वाले आ सकते थे।इनके अनुसार लल्लन,नाहर के अलावा पंकज और छेदू ने भी कमजोर बैटिंग नही की थी।

वोट खुलने के दिन तक प्रत्याशियों की सांसें अटकी रहीं।मन्नतों का दौर जारी रहा।क्षेत्र के ही सरकारी कालेज में मतगणना शुरू होते ही गांव का गांव उसी ओर चल पड़ा।हर कोई अपने प्रत्याशी को जीतता देखना चाहता था।जगतपुरा ग्राम पंचायत की मतपेटियां दोपहर बाद खुलनी शुरू हुईं।पहला चरण नाहर के नाम रहा तो दूसरा छेदू के।कहना न होगा कि अभी ज्यादातर वोट बाभन मुहल्ला और मलिनपुरा के खुले थे।तीसरे चरण में आते ही छेदू पीछे हो गया और लल्लन दूसरे नम्बर पर आ गया जबकि नाहर बढ़त बनाये रहे।पंकज शुक्ला तीसरे पायदान पे थे।
चौथे चरण तक आते-आते आश्चर्यजनक रूप से लल्लन पिछड़ने लगा।गौरीबदन सहित हर कोई हैरान था।अब टक्कर नाहर और पंकज की थी जबकि 5वां और अंतिम चरण बाकी था।पांचवें चरण के वोट खुलने शुरू हुए तो कई लोगों के मुंह खुले के खुले रह गए।घोड़ा और ईंट के मुकाबले कलम की जीत हुई।नाहर को पछाड़ कर पंकज शुक्ला विजेता बने।यह नतीजा नाहर,शुकुल और गौरीबदन सहित बहुतों की उम्मीदों के विपरीत था।
पंकज ने मतगणना केंद्र से बाहर आते ही विजयी चिन्ह के रूप में दाएं हाथ की 2 अंगुलियां लहरा दीं।
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लल्लन ने पहले ही महसूस कर लिया था कि अनपढ़ होने से वह ग्राम पंचायत का अपेक्षित विकास नही करवा सकेगा।जबकि पंकज शिक्षित ,ईमानदार और जागरूक थे।उसने महसूस कर लिया था कि चुनावों में खड़ा हो जाना भर ही काफी नही होता।चुनाव लड़े जाते हैं गांव के विकास के लिए न कि अपनी या दूसरों की इज्जत नापने के लिए। लल्लन को पंकज बेहतर लगे। यह तो एक कारण था जबकि दूसरा कारण यह था कि लल्लन जानता था कि गौरीबदन उसके कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं।वह उसे जिताने से ज्यादा नाहर को हराने के लिए उसकी पीठ ठोंके हैं।वह जीत भी गया तो यह उसकी जीत नही होगी।गौरीबदन अपनी मनमानी कर प्रधानी चलवाएंगे।वह दूसरा छेदू नही बनना चाहता था।इसीलिए उसने वोटिंग की रात पंकज से मिलकर अपने वोट पंकज को ट्रांसफर करवा दिए थे।

~Bhupendra Singh