Par - Mahesh Katare book and story is written by राज बोहरे in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Par - Mahesh Katare is also popular in Adventure Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पार - महेश कटारे - Novels
by राज बोहरे
in
Hindi Adventure Stories
जान–पहचानी गैल पर पैर अपने–आप इच्छित दिशा को मुड़ जाते थे। हरिविलास आगे था–पीछे कमला, उसके पीछे अपहरण किया गया लड़का तथा गैंग के तीन सदस्य और थे, यानी कुल छह जने। जिस समय वे ठिकाने से चले थे तब सामने पूरब में शाम का इन्द्रधनुष खिंचा था, अतÁ अनुमान था कि सबेरे पानी बरसेगा–‘संझा धनुष, सबरे पाकनी’। ठिकाने पर एक दिन भी सुस्ताते हुए न काट पाए थे कि मुखबिर की खबर आ गई थी–‘‘ठिकाने पर कभी भी घेरा पड़ सकता है। ऊपर का दबाव है इसलिए डी0आई0जी0 भÙा रहा है। दो जिलों की पुलिस का खास दस्ता एक नये डिप्टी को सौंप दिया है। नाक में दम कर रखा है हरामजादे ने।’’
महेश कटारे - कहानी–पार 1 जान–पहचानी गैल ...Read Moreपैर अपने–आप इच्छित दिशा को मुड़ जाते थे। हरिविलास आगे था–पीछे कमला, उसके पीछे अपहरण किया गया लड़का तथा गैंग के तीन सदस्य और थे, यानी कुल छह जने। जिस समय वे ठिकाने से चले थे तब सामने
महेश कटारे - कहानी–पार 2 कमला मोहिनी ...Read Moreबँध उठी। घाटी और उसके सिर पर तिरछी दीवार की तरह उठे पहाड़ पर जगर–मगर छाई थी। जुगनुओं के हजारो–लाखों गुच्छें दिप्–दिप् हो रहे थे। लगता था जैसे भादों का आकाश तारों के साथ घाटी में बिखर गया है। चमकते–बुड़ाते जुगनू कमला को हमेशा से भाते हैं। सांझी में क्वार के पहले पाख में लड़कियाँ कच्ची–पक्की दीवार पर गोबर की साँझी बनाती थीं। दूसरी लड़कियाँ तो अपनी–अपनी पंक्ति तोरई के पीले लौकी के सफेद, या तिल्ली के दुरंगे फूलों से सजाती थीं, कमला अपनी पंक्ति में जुगनू चिपका देती, फिर
महेश कटारे - कहानी–पार 3 अलसाता गिरोह ...Read Moreगया। कमला ने दीवार से टिकी ग्रीनर दुनाली झटके के साथ पकड़ ली। और कमर में बँधी बेल्ट से दो कारतूस निकाल तेजी के साथ बेरल में ठोंक दिए। अगले क्षण गिरोह खुले चबूतरे पर था। सबकेक आँख–कान टोह पर थे। अँधेरे में दुश्मन को गच्चा दिया जा सकता है तो दुश्मन भी अँधेरे का लाभ उठाकर घेर सकता है। मोर रह–रहकर कोंक उठते थे। संकेत, किसी के मंदिर की ओर ब.ढते जैसे थे। ‘‘देखो–देखो। वो बाटरी चमकी !’’ तरी के घने बबूल वन में कुछ चमककर बुझा
महेश कटारे - कहानी–पार 4 बादल छँट जाने से सप्तमी का चन्द्रमा उग आया था। पार के किनारे धुँधले–से दिखाई देने लगे ...Read Moreतीनों उघाड़े होकर पानी में ऊपर गए। कमर तक पानी में पहुँच रामा ने गंगा जी का स्मरण कर एक चुल्लू पानी मुँह में डाला, उसके बाद दूसरा सिर से घुमाते हुए धार की ओर उछाल दिया। दो कदम और आगे ब.ढ रामा ने बाई हथेली तली से चिपकाई व दाहिनी मुट्ठी मथना के किनारे पर कस दी–‘‘जै गंगा मैया !’’ ‘‘जै गंगा मैया !’’ तीनों पैर–उछाल लेकर पानी की सतह पर औंधे