Gunaho ka Devta book and story is written by Dharmveer Bharti in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Gunaho ka Devta is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
गुनाहों का देवता - Novels
by Dharmveer Bharti
in
Hindi Fiction Stories
इस उपन्यास के नये संस्करण पर दो शब्द लिखते समय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? अधिक-से-अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस... - धर्मवीर भारती गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती भाग 1 अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की
इस उपन्यास के नये संस्करण पर दो शब्द लिखते समय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? अधिक-से-अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद ...Read Moreपसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस... - धर्मवीर भारती गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती भाग 1 अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की
भाग 2 वैसे सुधा अपने घर की पुरखिन थी। किस मौसम में कौन-सी तरकारी पापा को माफिक पड़ती है, बाजार में चीजों का क्या भाव है, नौकर चोरी तो नहीं करता, पापा कितने सोसायटियों के मेम्बर हैं, चन्दर के ...Read Moreके कोर्स में क्या है, यह सभी उसे मालूम था। मोटर या बिजली बिगड़ जाने पर वह थोड़ी-बहुत इंजीनियरिंग भी कर लेती थी और मातृत्व का अंश तो उसमें इतना था कि हर नौकर और नौकरानी उससे अपना सुख-दु:ख कह देते थे। पढ़ाई के साथ-साथ घर का सारा काम-काज करते हुए उसका स्वास्थ्य भी कुछ बिगड़ गया था और अपनी
भाग 3 'कौन पम्मी?' 'यह मेरी बहन प्रमिला डिक्रूज!' 'ओह! कब मरी आपकी पत्नी?ï माफ कीजिएगा मुझे भी मालूम नहीं था!' 'हाँ, मैं बड़ा अभागा हूँ। मेरा दिमाग कुछ खराब है देखिए!' कहकर उसने झुककर अपनी खोपड़ी चन्दर ...Read Moreसामने कर दी और बहुत गिड़गिड़ाकर बोला, 'पता नहीं कौन मेरे फूल चुरा ले जाता है! अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पाँच साल से मैं इन फूलों को सँभाल रहा हूँ। हाय रे मैं! जाइए, पम्मी बुला रही है।' पिछवाड़े के सहन का बीच का दरवाजा खुल गया था और पम्मी कपड़े पहनकर बाहर झाँक रही थी। चन्दर आगे बढ़ा
भाग 4 घास, फूल, लतर और शायरी का शौक गेसू ने अपनी माँ से विरासत में पाया था। किस्मत से उसका कॉलेज भी ऐसा मिला जिसमें दर्जों की खिड़कियों से आम की शाखें झाँका करती थीं इसलिए हमेशा जब ...Read Moreमौका मिलता था, क्लास से भाग कर गेसू घास पर लेटकर सपने देखने की आदी हो गयी थी। क्लास के इस महाभिनिष्क्रमण और उसके बाद लतरों की छाँह में जाकर ध्यान-योग की साधना में उसकी एकमात्र साथिन थी सुधा। आम की घनी छाँह में हरी-हरी दूब में दोनों सिर के नीचे हाथ रखकर लेट रहतीं और दुनिया-भर की बातें करतीं।
भाग 5 सुधा गयी नहीं। वहीं घास पर बैठ गयी और किताब खोलकर पढऩे लगी। जब पाँच मिनट तक वह कुछ नहीं बोली तो चन्दर ने सोचा आज बात कुछ गम्भीर है। 'सुधा!' उसने बड़े दुलार से पुकारा। 'सुधा!' ...Read Moreने कुछ नहीं कहा मगर दो बड़े-बड़े आँसू टप से नीचे किताब पर गिर गये। 'अरे क्या बात है सुधा, नहीं बताओगी?' 'कुछ नहीं।' 'बता दो, तुम्हें हमारी कसम है।' 'कल शाम को तुम आये नहीं...' सुधा रोनी आवाज में बोली। 'बस इस बात पर इतनी नाराज हो, पागल!' 'हाँ, इस बात पर इतनी नाराज हूँ! तुम आओ चाहे हजार