Kshanbhar book and story is written by महेश रौतेला in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kshanbhar is also popular in Poems in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
क्षणभर - Novels
by महेश रौतेला
in
Hindi Poems
१.बेटी से संवादतुम्हारा हँसना, तुम्हारा खिलखिलाना,तुम्हारा चलना,तुम्हारा मुड़ना , तुम्हारा नाचना ,बहुत दूर तक गुदगुदायेगा।मीठी-मीठी बातें ,समुद्र की तरह उछलना,आकाश को पकड़ना ,हवा की तरह चंचल होना,बहुत दूर तक याद आयेगा।ऊजाले की तरह मूर्त्त होना,वसंत की तरह मुस्काना,क्षितिज की तरह बन जाना,अंगुली पकड़ के चलना,बहुत दूर तक झिलमिलायेगा।तुम्हारे बुदबुदाते शब्द ,प्यार की तरह मुड़ना ,ईश्वर की तरह हो जाना ,आँसू में ढलना,बहुत दूर तक साथ रहेगा।समय की तरह चंचल होना,जीवन की आस्था बनना ,मन की जननी होना,बहुत दूर तक बुदबुदायेगा। २.नयी सदीनयी सदी का सूरजउमंगों के साथ निकल आया,खुशी और प्यार के लिएनया विश्वास लाया।अनंत संभावनाओं मेंहमारे चारों ओरदिशायें खुल गयीं।नयी
१.बेटी से संवादतुम्हारा हँसना, तुम्हारा खिलखिलाना,तुम्हारा चलना,तुम्हारा मुड़ना , तुम्हारा नाचना ,बहुत दूर तक गुदगुदायेगा।मीठी-मीठी बातें ,समुद्र की तरह उछलना,आकाश को पकड़ना ,हवा की तरह चंचल होना,बहुत दूर तक याद आयेगा।ऊजाले की तरह मूर्त्त होना,वसंत की तरह मुस्काना,क्षितिज की ...Read Moreबन जाना,अंगुली पकड़ के चलना,बहुत दूर तक झिलमिलायेगा।तुम्हारे बुदबुदाते शब्द ,प्यार की तरह मुड़ना ,ईश्वर की तरह हो जाना ,आँसू में ढलना,बहुत दूर तक साथ रहेगा।समय की तरह चंचल होना,जीवन की आस्था बनना ,मन की जननी होना,बहुत दूर तक बुदबुदायेगा। २.नयी सदीनयी सदी का सूरजउमंगों के साथ निकल आया,खुशी और प्यार के लिएनया विश्वास लाया।अनंत संभावनाओं मेंहमारे चारों ओरदिशायें खुल गयीं।नयी
क्षणभर (भाग-२)२४.इस वर्षइस वर्षविचार उखड़ेआँधियां चलींप्यार की दो-चार बातेन हुयीं,दो-चार छूट गयीं।उनसे हुयी मुलाकातयाद आयी,बीते समय की चिट्ठीफिर पढ़ ली,ईश्वर निर्मित चाहहमारे साथ हो ली,लिखा गया हर शब्दमन में उभर आया,बीता जीवन झरनों सा बनशीतल बन गया,सुख की आभापूर्णतः ...Read Moreहो गयी।प्रकरण युद्ध कारेगिस्तानी धूप सातपाता रहा।जीवन की अवधिभूकम्पों में दबती,आँधियों में उड़तीदुर्घटनाओं में गिरती,युद्धों में कटतीबाढ़ में डूबतीझगड़ों में अटकती,हँसते-खेलते हुएत्योहार भी मना लेती।२५.विछोहसन्ध्या के विहग सी वहबैठ गयी होगी,किसी अनजान डाल पर।जो मुस्कान मेरे लिए सुरक्षित थीवह किसी और की हो चुकी,कोमलता उसकीकिसी क्षितिज पर अटक गयी।उसके हाथ की रोटीरास्ते भर ताजी रही,उसका दिया प्रसादपोटली में बँधा,ईश्वरीय आभास देता