Rishtey Tijarat nahi hote book and story is written by Ranjana Jaiswal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Rishtey Tijarat nahi hote is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
रिश्ते तिज़ारत नहीं होते - Novels
by Ranjana Jaiswal
in
Hindi Moral Stories
मुझे नहीं पता था कि उम्र के चौथेपन में मुझे इन स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। कोविड 19 की पहली लहर बीमारी से बचने, नौकरी को बचाने, ऑनलाइन पढ़ाने के तनाव में ऊपर ही ऊपर से गुजर गई थी।
इस लहर में बीमारी से तो बच गई पर अपनी नौकरी को न बचा सकी। ऑनलाइन के झमेले खत्म हुए पर रिश्तों के झमेले शुरू हो गए। आमदनी बिल्कुल बंद हो गई थी। कॅरोना काल में नई नौकरी मिलने वाली नहीं थी। अब तक किसी पर आश्रित नहीं थी। किसी की मदद की दरकार भी न थी पर अब जीवन का वह नाजुक दौर शुरू होने वाला था, जिसमें किसी न किसी के मदद की जरूरत पड़ सकती थी। सबसे पहले बेटे ने कदम बढ़ाया कि वह मदद करेगा। उसने कहा -एक आदमी का खर्च ही कितना होता है !बस पांच किलो चावल, पांच किलो आटा, एक किलो दाल, दो -चार सौ की सब्जी महीने भर के लिए काफी होगा और क्या चाहिए? मैंने कहा- बेटा जी दाल, चावल, आटा, सब्जी के अलावा भी बहुत खर्च होता है ।
(1) मुझे नहीं पता था कि उम्र के चौथेपन में मुझे इन स्थितियों का सामना करना पड़ेगा। कोविड 19 की पहली लहर बीमारी से बचने, नौकरी को बचाने, ऑनलाइन पढ़ाने के तनाव में ऊपर ही ऊपर से गुजर गई ...Read Moreलहर में बीमारी से तो बच गई पर अपनी नौकरी को न बचा सकी। ऑनलाइन के झमेले खत्म हुए पर रिश्तों के झमेले शुरू हो गए। आमदनी बिल्कुल बंद हो गई थी। कॅरोना काल में नई नौकरी मिलने वाली नहीं थी। अब तक किसी पर आश्रित नहीं थी। किसी की मदद की दरकार भी न थी पर अब जीवन का
(2) जिंदगी चल रही थी कि एक दिन विशद का मैसेज आया। यह मेरा बहुत ही पुराना विद्यार्थी है। करीब 6-7 वर्ष पहले फेसबुक पर मुझे देखकर उसने मुझसे संपर्क साधा था और मुझसे मिलने मेरे घर आया था। ...Read Moreउसे दसवीं में पढ़ाया था। करीब 20 साल मुझसे छोटा होगा। गोल चेहरे, मध्यम कद व भरे शरीर वाला साधारण -सा युवा। वह एम. बी. करके किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। मुझे अकेले रहते देख बहुत दुःखी हुआ था, फिर वह अक्सर घर आने लगा। मुझे वह हमेशा दसवीं कक्षा वाला गोल -मटोल विद्यार्थी ही लगता था पर
(3) अपने कस्बे की दो घटनाएं आज भी मेरे चित्त पर अंकित हैं।सुचिता मासी ....मेरी माँ की पड़ोसन!अपने समय की बेहद खूबसूरत महिला! धर्म- कर्म, दान- पुण्य, पूजा -पाठ में आस्था और विश्वास रखने वाली !पति किसी सरकारी विभाग ...Read Moreचपरासी था। उसकी पहली पत्नी से एक बेटी थी। सुचिता मासी गरीब घर की बेटी थीं, तभी तो दिखने में साधारण, दोआह, एक बच्ची के पिता को सौंप दी गईं। उस आदमी को मौसा कहने में मुझे शर्म आती थी क्योंकि वह बच्चियों को भी गन्दी निगाह से देखता था। उसने मुहल्ले में सबसे शानदार दो मंजिला मकान बनवा लिया