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निष्कलंक - Novels
by राही
in
Hindi Moral Stories
खून से सने हाथ,, जिनसे उसने अपना मुंह छुपाया हुआ था,, बाल बिखरे हुए,, घूटनों तक आता सफेद रंग का फ्रोक,, जो खून से लथपथ था,, चौदह साल कि आशा बुरी तरह से कांप रही थी,, खबर थी,, आशा ने अपने दोनों हाथों से अपने नवजात शिशु कि चाकू से गोद गोद कर उसकी हत्या कर दी। एक महिला पुलिसकर्मी आशा के पास आई,, कितनी बेरहम है रे तू छोरी? अपनी खुदकी जन्मी बच्ची को मार दिय। जरा सी भी दया ना आई तन्ने अपनी इस एक दिन कि बच्ची पर,, कितनी बेहरमी से मारा है। दूसरी पुलिसकर्मी ने आगे
खून से सने हाथ,, जिनसे उसने अपना मुंह छुपाया हुआ था,, बाल बिखरे हुए,, घूटनों तक आता सफेद रंग का फ्रोक,, जो खून से लथपथ था,, चौदह साल कि आशा बुरी तरह से कांप रही थी,, खबर थी,, आशा ...Read Moreअपने दोनों हाथों से अपने नवजात शिशु कि चाकू से गोद गोद कर उसकी हत्या कर दी। एक महिला पुलिसकर्मी आशा के पास आई,, कितनी बेरहम है रे तू छोरी? अपनी खुदकी जन्मी बच्ची को मार दिय। जरा सी भी दया ना आई तन्ने अपनी इस एक दिन कि बच्ची पर,, कितनी बेहरमी से मारा है। दूसरी पुलिसकर्मी ने आगे
जब तक चबा कर खा सकते थे। खाई गई। औरफिर घर से बहार फेंक दी गई। काम कि नहीं रही। पेट में बच्चा था। किसका? किसीको नहीं पड़ी थी। अबसे यही मेरी बेटी है कह,, आशा कि माँ से ...Read Moreरचाने वाले ने,, ये कहकर आशा को नोचने वाले लड़को के हाथों में उस बच्ची को छोड़ दिया- जाकर गटर में फेंक दो। अब ये हमारे किसी काम कि नहीं है। अबोर्शन करवाया,, पुलिस तुमसे पहले मुझे ही पकड़ेगी,, सवाल करेगी मुझसे। इसके पेट में बच्चा पड़ा कैसे? मुझे नहीं पड़ना इस बेकार के झंझट में,,, लड़को को शायद दया