Rishta Chiththi ka book and story is written by Preeti in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Rishta Chiththi ka is also popular in Letter in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
रिश्ता चिट्ठी का - Novels
by Preeti
in
Hindi Letter
मौसम का मिज़ाज बदल रहा यहाँ! ठण्ड अपने पूरे शबाब पर है।
वहां मौसम के क्या हाल? गर्मी के कहर से छुटकारा मिला क्या?मौसम ने जितनी आहिस्ता करवट ली है उतनी ही आहिस्ता आहिस्ता मेरे जीवन में भी बदलाव हो रहे। कितना कुछ हो रहा इन दिनों, मेरे ख़ुद के लिए इन परिवर्तनों को अपना पाना नामुमकिन सा जान पड़ रहा।
जिन रिश्तों पर हमें खुद से भी ज़्यादा ग़ुमान हुआ करता है, अक्सर वही रिश्ते हमें ओंधे मुँह गिरने पर मजबूर कर देते हैं।
कुछ ऐसा आज मेरे संग भी हुआ, समझ नहीं आता अब कैसे उस रिश्ते को पहले जैसा मान दे पाऊँगी? कई बार हम अनजान लोगों को अपने जीवन में इतनी तवज्जो दे बैठते हैं कि ना चाहते हुए भी हमारी खुशियों की चाभी हम उन्हें। थमा देते हैं। उनका बदला हुआ व्यवहार कितना हमें चोटिल करने लगता है, ये हम ख़ुद भी समझ नही पाते।क्यूंकि कुछ तो बदल गया अंदर, जिसे कुछ भी करके पहले जैसा नहीं किया जा सकता अब। किसी भी रिश्ते में रहते हुए जब आत्मसम्मान की आहुतियां देनी पड़े तो समझ लेना चाहिए की वो रिश्ता अब ख़त्म हो चुका है।
प्रोफेसर!मौसम का मिज़ाज बदल रहा यहाँ! ठण्ड अपने पूरे शबाब पर है।वहां मौसम के क्या हाल? गर्मी के कहर से छुटकारा मिला क्या?मौसम ने जितनी आहिस्ता करवट ली है उतनी ही आहिस्ता आहिस्ता मेरे जीवन में भी बदलाव हो ...Read Moreकितना कुछ हो रहा इन दिनों, मेरे ख़ुद के लिए इन परिवर्तनों को अपना पाना नामुमकिन सा जान पड़ रहा। जिन रिश्तों पर हमें खुद से भी ज़्यादा ग़ुमान हुआ करता है, अक्सर वही रिश्ते हमें ओंधे मुँह गिरने पर मजबूर कर देते हैं।कुछ ऐसा आज मेरे संग भी हुआ, समझ नहीं आता अब कैसे उस रिश्ते को पहले जैसा
प्रोफेसर! तबियत आज कुछ ठीक नहीं थी सुबह से, लेकिन किसी से कहा नहीं, परेशान हो जाते सब। लेकिन आपको नहीं बताती तो मैं परेशान रहती। वहां नहीं बताया, डांट ना पड़े इसलिए यहाँ बता रही। जब तक चिट्ठी ...Read Moreतब तक मैं भली चंगी सी हो जाउंगी। ना ना घबराने जैसी बीमारी नहीं है, फिलहाल नहीं। आज दूसरी बार ऐसा हुआ, पहली बार उस रात की अगली सुबह हुआ था। आज दूसरी मर्तबा हुआ, मैं अपना नाम भूल गयी। कितना कुछ झेलते, बर्दाश्त करने के कारण, दिमाग़ ने खुद की पहचान ही भूलना बेहतर समझ लिया है शायद। ये
प्रोफेसर! कैसे हैं आप? वैसे ये सवाल केवल एक औपचारिकता लगती है, लेकिन ख़त बिना इस सवाल कुछ अधूरा सा जान पड़ता है ना! खैर, जब ठण्ड के मौसम में इतनी तकलीफ रहती है तो ध्यान रखना चाहिए ना! ...Read Moreतक बैठ गयी आपकी। ठण्ड का मौसम थोड़ा शैतान बनाने के लिए भी आता है मेरे समझ से। कहाँ गर्मी में हम सुबह शाम नहा कर तरों ताज़ा हुआ करते हैं। ध्यान देकर खाना खाते हैं। सब कुछ नपा तुला सा रहता है। वहीँ ठण्ड में बिना नहाये भी काम चलता है ना (मेरा चल जाता है, मैं रोज़ नहीं
प्रोफेसर! कैसे हैं? कल आपकी आवाज़ ने क्या ही कहर ढा दिया। किस मुँह से भगवान से कहूं की ये ज़ुखाम वाली आवाज़ बनाये रक्खे आपकी!! Happy New Year Professor! ️ अभी रास्ते में हूं, कहीं जा रही। ये ...Read Moreरास्ता आज तय करने निकली हूं, इसकी मंज़िल मेरे हमसफर की तलाश पे ख़तम होगा। जी हाँ, नये साल के पहले दिन ही ये सब!!! वो क्या है ना, मम्मी- पापा अब और इंतज़ार नहीं करना चाहते। और अब मैं उन्हें अपने कारण और परेशान नहीं करना चाहती। तो अंत में यही एक मात्र उपाय बचा था। आपको भी लगता
प्रोफेसर! कैसे हैं आप? आज ये सवाल आप मुझसे पूछ लेते काश! तो बता पाती, जलन से भरी हुईं थीं मैं!!! अच्छा हुआ उससे नहीं मिले आप!! वो, जिसने आपको, आपके प्यार को अपनी ज़िन्दगी में एहमियत नहीं दी, ...Read Moreतो और आपको खेद भी था अपने बर्ताव को लेकर?? इतने अच्छे क्यों हैं आप? एक बात कहूं, उसका होना ना होना मेरे लिए मायने ही नहीं रखता। हाँ, ज़्यादा ही बोल रही मैं, क्या करूँ कुछ और मेरे बस में नहीं है!! मेरी तरह आपके भी दो मन हैं, सुन कर अच्छा लगा। कितनी समानताएं हैं हमारी सोच में