Brahmashir book and story is written by Shailesh Chaudhari in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Brahmashir is also popular in Mythological Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
ब्रम्हशिर - Novels
by Shailesh Chaudhari
in
Hindi Mythological Stories
प्रकृति मेरी अध्यक्षतामें सम्पूर्ण चराचर जगत् को रचती है। हे कुन्तीनन्दन ! इसी हेतुसे जगत् का विविध प्रकारसे परिवर्तन होता है।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, दुर्योधन के संग्राम में धराशायी होने के पश्चात कृतवर्मा, अश्वत्थामा और कृपाचार्य युद्धभूमि से अलग वन को प्रस्थान कर गए थे। रात्रि का प्रथम प्रहर बीत रहा था। उस भयंकर बेला में दुख और शोक से संतप्त हुए कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा
अश्वत्थामा एक साथ ही आस-पास बैठ गये। वटवृक्ष के समीप बैठकर कौरवों तथा पाण्डव योद्धाओं के उसी विनाश की बीती हुई बात के लिये शोक करते हुए वे तीनों वीर निद्रा से सारे अंश शिथिल हो जाने के कारण पृथ्वी पर लेट गये। उस समय वे भारी थकावट से चूर-चूर हो रहे थे और नाना प्रकार के बाणों से उनके सारे अंग क्षत-विक्षत हो गये थे।
मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।हेतुनाऽनेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते । भावार्थः प्रकृति मेरी अध्यक्षतामें सम्पूर्ण चराचर जगत् को रचती है। हे कुन्तीनन्दन ! इसी हेतुसे जगत् का विविध प्रकारसे परिवर्तन होता है। महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, दुर्योधन के संग्राम ...Read Moreधराशायी होने के पश्चात कृतवर्मा, अश्वत्थामा और कृपाचार्य युद्धभूमि से अलग वन को प्रस्थान कर गए थे। रात्रि का प्रथम प्रहर बीत रहा था। उस भयंकर बेला में दुख और शोक से संतप्त हुए कृतवर्मा, कृपाचार्य तथाअश्वत्थामा एक साथ ही आस-पास बैठ
काल द्वापरयुग सम्पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण पहले उस रथ पर सवार हुए। पराक्रमी अर्जुन तथा कुरुराज युधिष्ठिर उस रथ पर बैठे। वे दोनों महात्मा पाण्डव रथ पर स्थित हुए शांर्ग धनुषधारी श्रीकृष्ण के समीप विराजमान हो इन्द्र के ...Read Moreबैठे हुए दोनों अश्विनीकुमारों के समान सुशोभित हो रहे थे। वे तीनो नरश्रेष्ठ बड़े वेग से पीछे-पीछे दौड़कर क्षणभर में महाबली भीमसेन के पास जा पहुँचे। कुन्तीकुमार भीमसेन क्रोथ से प्रज्वलित हो शत्रु का संहार करने के लिए तुले हुए थे। इसलिए वे तीनों महारथी उनसे मिलकर भी उन्हें रोक न सके। उन सदृढ़ धनुर्धर तेजस्वी वीरों को देखते देखते
कालः द्वापरयुग जब पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया तब ब्रह्मा जी ने मृत्यु का प्रावधान नहीं किया था परिणाम स्वरूप सृष्टि का विस्तार होता गया क्योंकि इस संसार में जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु नहीं हुई। जिससे ...Read Moreपर प्राणियों की संख्या बढ़ती गई और पृथ्वी पर भार बढ़ता गया जब पृथ्वी को यह भार असहनीय होने लगा तब पृथ्वी देवताओं को साथ लेकर महादेव जी के पास गईं और महादेव जी उनको साथ लेकर पितामह ब्रह्मा जी के पास गए और महादेव जी ने ब्रह्मा जी से कहा त्वद्भव हि जगन्नाथ एतत स्थावरजड. गम। प्रसाद्यत्वा महादेव याचाम्यावृत्तिजाः