Laga Chunari me Daag book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Laga Chunari me Daag is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
लागा चुनरी में दाग - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Women Focused
शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही शामिल हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है तो किसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था....
अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी दिनों से बीमार चल रही थी,अब उन्हें आस नहीं है कि वे और ज्यादा जी पाऐगी,इसलिए उन्होंने अपने गोद लिए बेटे को अपने पास बुलाकर लरझती आवाज़ में कहा....
"नकुल बेटा! लगता है भगवान का बुलावा आ गया है,तुम धनुष बाबू को फोन करके बुलवा लो,आखिरी बार उनके दर्शन हो जाते तो अच्छा रहता,मरते वक्त कोई ख्वाहिश अधूरी नहीं रहनी चाहिए",
शहर का सबसे बड़ा वृद्धाश्रम जिसका नाम कुटुम्ब है,जहाँ बहुत से वृद्धजन रहते हैं,उनमें महिलाएंँ और पुरुष दोनों ही शामिल हैं,सभी हँसी खुशी उस आश्रम में रहते हैं,किसी वृद्ध महिला को उसकी बहू ने घर से निकाल दिया है ...Read Moreकिसी के पास अपने बुजुर्ग पिता के लिए समय नहीं है,इसलिए उसने इस वृद्धाश्रम में अपने पिता को रख रखा है,किसी के बच्चे विदेश जाकर बस गए हैं तो कोई निःसंतान है,उस आश्रम में रहने के सबके अपने अपने कारण हैं,वो आश्रम सालों पहले प्रत्यन्चा माँ ने खोला था.... अब प्रत्यन्चा माँ लगभग पचासी वर्ष की हो चुकीं हैं,वे काफी
ये सन् १९५९ की बात है,बाँम्बे जो अब मुम्बई कहा जाता है,वहाँ समुद्री रास्तों के जरिए तस्करी बहुत बढ़ चुकी थी,पुलिस के चौकन्ने रहते हुए भी लाखों करोड़ो का माल मुम्बई में आ जाता था,पुलिस महकमें की तो जैसे ...Read Moreपर बन आई थी,आए दिन सोने के बिस्किट,हीरे,नशीले पदार्थ वगैरह आ जा रहे थे और वहाँ का सबसे कुख्यात तस्कर था पप्पू गोम्स,उसके माता पिता बँटवारे के समय पेशावर से भारत आकर यहीं बस गए थे,बँटवारे के समय उसका परिवार भूखा मर रहा था इसलिए उसने अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए छोटी मोटी चोरियाँ शुरु कर
प्रमोद मेहरा जी को खामोश देखकर उस लड़की के पिता बोले..... "बेटी! इनकी बात सही है,पहले ये आए थे ताँगे के पास" "तो क्या हुआ,लेकिन हम लोग जाऐगें इस ताँगे पर",लड़की बोली... "बेटी! जिद़ नहीं करते ,ये बाबू साहब ...Read Moreमालूम पड़ते हैं,पहले इन्हें जाने दो",लड़की के पिता बोले... "नहीं! कोई बात नहीं! अगर आपकी बच्ची इसी ताँगे से जाना चाहती तो आप लोग ही पहले चले जाइए",प्रमोद मेहरा जी बोले... "वैसे आपको कहाँ जाना है"?,लड़की के पिता ने पूछा... "जी! सिंगला गाँव जाना था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "अरे! हम लोग भी वहीं जा रहे हैं,तो फिर दिक्कत वाली कोई
उधर नहर पर प्रमोद मेहरा जी ने पहले नहरे के किनारे लगे खेतों के नजारे देखें,फिर नीम के पेड़ से दातून तोड़कर उन्होंने अपने दाँत साफ किए,इसके बाद वे अपने सूखे हुए कपड़े एक टीले पर रखकर नहर में ...Read Moreके लिए उतर पड़े ,वहाँ पर दो तीन ही सीढ़ियाँ थी,जो ऐसे ही दो चार पत्थरों को रखकर बना दी गईं थीं और उन पर लगातार पानी की हिलोरें आने से काई भी लग चुकी थीं,काई लगने से वे सीढ़ियाँ काफी फिसलन भरी हो चुकीं थीं और उस पर सबसे बड़ी बिडम्बना थी कि प्रमोद मेहरा जी को तैरना नहीं
प्रमोद जी के हँसने पर प्रत्यन्चा ने पूछा.... "अब इसमें इतना हँसने की क्या बात है?" "वो तो मैं तुम्हारी नादानी पर हँस रहा था",प्रमोद मेहरा जी बोले... "क्यों भला? क्या मैं इतनी नादान हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "हाँ! तुम ...Read Moreमें बहुत नादान हो",प्रमोद मेहरा जी बोले.... "तो ऐसा मैं क्या करूँ कि नादान ना दिखूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा... "तुम जैसी हो वैसी ही रहो,तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं है",प्रमोद मेहरा जी बोले... और फिर वे प्रत्यन्चा से ऐसे ही बातें करते रहे,दिनभर ऐसे ही बीत गया और रात के खाने के बाद वे अपने दोस्त सुभाष और प्रत्यन्चा के पिता