Laga Chunari me Daag - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

लागा चुनरी में दाग-भाग(५)

प्रमोद जी के हँसने पर प्रत्यन्चा ने पूछा....
"अब इसमें इतना हँसने की क्या बात है?"
"वो तो मैं तुम्हारी नादानी पर हँस रहा था",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"क्यों भला? क्या मैं इतनी नादान हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"हाँ! तुम सच में बहुत नादान हो",प्रमोद मेहरा जी बोले....
"तो ऐसा मैं क्या करूँ कि नादान ना दिखूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"तुम जैसी हो वैसी ही रहो,तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं है",प्रमोद मेहरा जी बोले...
और फिर वे प्रत्यन्चा से ऐसे ही बातें करते रहे,दिनभर ऐसे ही बीत गया और रात के खाने के बाद वे अपने दोस्त सुभाष और प्रत्यन्चा के पिता संजीव से बोले कि वो कल सुबह बाम्बे के लिए निकल रहे हैं,उनकी बात सुनकर उनके दोस्त सुभाष ने कहा...
"भाई! एकाध दिन और रुक जाता तो अच्छा रहता",
"रुकने का मन तो मेरा भी है लेकिन ड्यूटी भी तो बुला रही है,अब जब कभी अगली बार आऊँगा तो बहुत दिनों तक रहूँगा तुम्हारे पास",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"अगर ड्यूटी की बात है तो फिर मैं तुझे और नहीं रोकूँगा",सुभाष बोला...
तब प्रत्यन्चा के पिता संजीव प्रमोद मेहरा जी से बोले...
"अच्छा लगा आप जैसे नेक इन्सान से मिलकर,ये मुलाकात हमेशा याद रहेगी",
"आप इन मुलाकातों का सिलसिला जारी भी रख सकते हैं",प्रमोद मेहरा जी संजीव जी से बोले...
"वो भला कैंसे,क्या आपकी पोस्टिंग हमारे गाँव के आस पास होने वाली है",संजीव जी ने पूछा..
"जी! नहीं! मैं ने तो कोई और बहाना ढूढ़ रखा था मुलाकात जारी रहने का",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"बहाना....कौन सा बहाना?",संजीव जी ने मुस्कुराते हुए पूछा...
"जी! दरअसल बात ये है कि मेरा एक छोटा भाई है,जिसका नाम सुबोध है,अभी बी.ए.पास करके नौकरी की तलाश में है,नौकरी तो उसकी कब की लग गई होती अगर मैंने उसकी सिफारिश कर दी होती है,लेकिन बड़ा ही खुद्दार लड़का है,कहता है जो करेगा सो अपने दम पर करेगा",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"जी! वो तो ठीक है लेकिन आप अपने भाई की कहानी मुझे क्यों सुना रहे हैं",संजीव जी ने प्रमोद जी से भोलेपन से कहा...
"जी! अब उसकी उम्र शादी लायक जो हो चुकी है",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"तो...",संजीव मेहरा जी बोले...
तब प्रमोद जी के दोस्त सुभाष मेहरा खिसियाकर बोले...
"अरे! बुद्धूराम! इतना भी नहीं समझता,प्रमोद प्रत्यन्चा का हाथ अपने भाई सुबोध के लिए माँग रहा है",
"ओहो...मैं आपकी बात ठीक से समझ ही नहीं पाया",संजीव मेहरा बोले...
"तुम दोनों ही नालायक हो,एक ये है जो बात को गोल गोल घुमा रहा है सीधा सीधा नहीं कहता कि सुबोध और प्रत्यन्चा का रिश्ता करवा देते हैं और ये ठहरा लड़की का बाप जो कि अव्वल दर्जे का मूरख है,जो ये इशारा ही नहीं समझ पा रहा कि सामने वाला इन्सान क्या कहना चाह रहा है",सुभाष गुस्से से बोला...
"तो अब तो आपको मेरी बात अच्छी तरह से समझ में आ गई ना! तो कहिए आपको ये रिश्ता मंजूर है",प्रमोद जी ने प्रत्यन्चा के पिता संजीव से कहा...
"जी! मैं पहले घर पर तो पूछ लूँ और फिर उसके बाद जब तक मैं लड़का ना देख लूँ तो तसल्ली नहीं कर सकता ना! ,बेटी का सवाल जो ठहरा",संजीव जी बोले....
"जी! आप पहले अच्छी तरह से सबकुछ देखभाल कर तसल्ली कर लीजिए,उसके बाद आप मुझे अपनी मर्जी बता दीजिए",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"जी! बेटी तो आपने देख ही ली है, लेकिन आप हमारा घर परिवार भी देख लेते तो अच्छा रहता", संजीव कुमार जी बोले...
"जी! आप अपना पता ठिकाना मुझे लिखवा दीजिए,मैं जब आपके घर अपनी पत्नी और भाई के साथ आऊँगा तो आने से पहले आपको ख़त लिख दूँगा",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"एक बात आपको और बता दूँ,हमारी बेटी केवल पाँचवीं तक पढ़ी है,क्या आपके पढ़े लिखे भाई को हमारी बेटी पसंद आऐगी",संजीव कुमार जी ने पूछा...
"जी! क्यों नहीं,आपकी बेटी ज्यादा पढ़ी नहीं है तो क्या हुआ,वो सुन्दर,गुणी और संस्कारी तो है",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"जी! उस पर इतनी बहादुर है कि डूबते हुए इन्सान को भी बचा सकती है",सुभाष मेहरा हँसते हुए बोले...
फिर सुभाष की बात सुनकर सब ठहाका मारकर हँस पड़े,दूसरे दिन प्रमोद मेहरा जी संजीव जी का पता ठिकाना लेकर बाम्बे वापस लौट आए और उन्होंने ये खुशखबरी सुरेखा और सुबोध को सुनाई, सुरेखा ये बात सुनकर बड़ी खुश हुई और सुबोध को भी अपने बड़े भाई की इस बात से कोई आपत्ति ना थी,इसलिए लड़का लड़की देखने का सिलसिला भी शुरु हो गया,दोनों परिवारों ने इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी, प्रत्यन्चा को सुबोध पसंद था और सुबोध को प्रत्यन्चा पसंद थी,रिश्ते की बात पक्की होते ही दोनों परिवारों में धूमधाम से शादी की तैयारियाँ होने लगी,
और दो चार महीनों के अन्तराल में ही प्रत्यन्चा प्रमोद मेहरा साहब के घर में उनकी बहू बनकर आ गई, प्रत्यन्चा के आने से घर में चार चाँद लग गए,इतनी खूबसूरत और चुलबुली पत्नी पाकर सुबोध निहाल हो उठा, घर में आते ही प्रत्यन्चा ने सारे काम काज सम्भाल लिए तो उसकी जेठानी सुरेखा को भी बहुत आराम हो गया,दोनों देवरानी जेठानी बहुत प्यार से रहती थीं,घर में इतनी खुशियाँ देखकर कभी कभी सुरेखा को डर लगता कि कहीं उसके घर को किसी की नज़र ना लग जाएंँ....
इसी तरह अभी दोनों की शादी को चार महीने ही बीते थे कि सुबोध की बैंक में नौकरी लग गई और वो वहाँ कैशियर के ओहदे पर लग गया,अब तो जैसे घर में बहार ही बहार आ गई थी,बस दिक्कत इतनी थी कि सुबोध की नौकरी दूसरे शहर में लगी थी और वो अभी प्रत्यन्चा को साथ नहीं लिवा जा सकता था,क्योंकि वो एक अच्छे से घर की तलाश में था जो कि उसे अभी नहीं मिला था,इसी तरह दीवाली की छुट्टियांँ पड़ी और सुबोध सबके साथ दीवाली मनाने घर आया,ये दोनों की पहली दीवाली थी इसलिए सुबोध पन्द्रह दिनों की छुट्टी लेकर आया था...
और उधर जेल में पप्पू गोम्स सबइन्सपेक्टर प्रमोद मेहरा से बदला लेने की फिराक़ में था,इसके लिए वो कई दिनों से जेल से भागने की योजना बना रहा था,उसके साथी जो अभी जेल से बाहर थे,वो उससे जेल में मिलने जाया करते थे और एक दिन पप्पू गोम्स का साथी कल्लू कालिया उससे मिलने जेल में पहुँचा,तब पप्पू गोम्स ने उससे पूछा...
"इन्तजाम हुआ या नहीं"
"अभी नहीं हुआ भाई,ये कमीने हवलदार बिकने के लिए तैयार ही नहीं है,उस हरामखोर प्रमोद मेहरा से डरते हैं",कल्लू कालिया बोला...
"कुछ भी कर कालिया! मेरो को इस जेल से निकाल,मैं उस प्रमोद मेहरा का खून पीना चाहता हूँ",पप्पू गोम्स बोला...
"हाँ! भाई! मैं पूरी कोशिश कर रहा है तेरो को यहाँ से निकलने का,फिकर ना करो,बस दो चार दिन से ज्यादा का वक्त नहीं लगेगा,क्योंकि आपकी कोठरी के पीछे से हम लोग सुरंग खोद रहे हैं",कल्लू कालिया बोला...
"शाबाश! बस जेल से निकलते ही उस प्रमोद मेहरा की खैर नहीं",पप्पू गोम्स बोला...
"सुना है भाई! कि उसके भाई का शादी हो गया है और उसका नौकरी भी लग गया है",कल्लू कालिया बोला...
"बस! उस पर ऐसे ही नज़र रखो और उसकी पूरी जानकारी मुझे लाकर दो",पप्पू गोम्स बोला...
और फिर कल्लू कालिया के मिलने का वक्त खत्म हो गया तो एक हवलदार वहाँ आकर बोला...
"उनसे मिलने का वक्त खतम हो गया है,आप बाहर चलिए",
फिर हवलदार के कहने पर कल्लू कालिया वहाँ से चला गया....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....