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Manto ki Chuninda Kahaniya by Saadat Hasan Manto | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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मंटो की चुनिंदा कहानियाँ by Saadat Hasan Manto in Hindi
Novels

मंटो की चुनिंदा कहानियाँ - Novels

by Saadat Hasan Manto Matrubharti Verified in Hindi Short Stories

(267)
  • 22k

  • 63.8k

  • 21

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ...Read Moreमें) खोलियाँ यानी कोठड़यां थीं जिन में ये लोग अपनी ज़िंदगी जूं तूं बसर कर रहे थे। नाज़िम को एक फ़िल्म कंपनी में बहैसियत-ए-मुंशी यानी मुकालमा निगार मुलाज़मत मिल गई थी। चूँकि कंपनी नई क़ायम हुई थी इस लिए उसे छः सात महीनों तक ढाई सौ रुपय माहवार तनख़्वाह मिलने का पूरा तयक़्क़ुन था, चुनांचे उस ने इस यक़ीन की बिना पर ये अय्याशी की डूंगरी की ग़लीज़ खोली से उठ कर बांद्रा की किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे ले लिए।

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कोट पतलून

(13)
  • 1k

  • 2.8k

नाज़िम जब बांद्रा में मुंतक़िल हुआ तो उसे ख़ुशक़िसमती से किराए वाली बिल्डिंग में तीन कमरे मिल गए। इस बिल्डिंग में जो बंबई की ज़बान में चाली कहलाती है, निचले दर्जे के लोग रहते थे। छोटी छोटी (बंबई की ...Read Moreमें) खोलियाँ यानी कोठड़यां थीं जिन में ये लोग अपनी ज़िंदगी जूं तूं बसर कर रहे थे।

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खुद फ़रेब

(11)
  • 826

  • 2.4k

हम न्यू पैरिस स्टोर के प्राईवेट कमरे में बैठे थे। बाहर टेलीफ़ोन की घंटी बजी तो इस का मालिक ग़यास उठ कर दौड़ा। मेरे साथ मसऊद बैठा था इस से कुछ दूर हट कर जलील दाँतों से अपनी छोटी ...Read Moreउंगलीयों के नाख़ुन काट रहा था उस के कान बड़े ग़ौर से ग़यास की बातें सुन रहे थे वो टेलीफ़ोन पर किसी से कह रहा था।

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ख़ुदा की क़सम

(13)
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  • 4k

इधर से मुस्लमान और उधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिन में ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इस के बावजूद उन में ...Read Moreजा रहे थे। ग़ल्ला ना-काफ़ी है। हिफ़्ज़ान-ए-सेहत का कोई इंतिज़ाम नहीं। बीमारियां फैल रही हैं। इस का होश किस को था। एक इफ़रात-ओ-तफ़रीत का आलम था।

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ख़ुवाब-ए-ख़रगोश

  • 743

  • 1.9k

सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, ...Read Moreताक़ में से मेरी चूड़ियों का बक्स उठाला। पर ऐसे कि अम्मी जान को ख़बर न हो।“”

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ख़ुशिया

(11)
  • 1.5k

  • 5.3k

बनवारी से काले तंबाकू वाला पान लेकर वो उस की दुकान के साथ उस संगीन चबूतरे पर बैठा था। जो दिन के वक़्त टायरों और मोटरों के मुख़्तलिफ़ पुर्ज़ों से भरा होता है। रात को साढे़ आठ बजे के ...Read Moreमोटर के पुरज़े और टायर बेचने वालों की ये दुकान बंद हो जाती है। और उस का संगीन चबूतरा ख़ूशिया के लिए ख़ाली हो जाता है।

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ख़ोरेश्ट

  • 620

  • 1.9k

हम दिल्ली में थे। मेरा बच्चा बीमार था। मैंने पड़ोस के डाक्टर कापड़िया को बुलाया वो एक कुबड़ा आदमी था। बहुत पस्तक़द, लेकिन बेहद शरीफ़। उस ने मेरे बच्चे का बड़े अच्छे तरीक़े पर इलाज किया। उस को फीस ...Read Moreतो उस ने क़ुबूल न की। यूं तो वो पार्सी था लेकिन बड़ी शुस्ता व रफ़्ता उर्दू बोलता था, इस लिए कि वो दिल्ली ही में पैदा हुआ था और तालीम उस ने वहीं हासिल की थी।

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गर्म सूट

(11)
  • 1.1k

  • 3.1k

गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी ...Read Moreउदास करदेती थी। उस को इस बदबू ने भी इतना तंग नहीं किया था जितना कि अब उस के गर्म सूट ने उसे तंग कर रखा था।

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गुलगत ख़ान

  • 513

  • 1.6k

शहबाज़ ख़ान ने एक दिन अपने मुलाज़िम जहांगीर को जो उस के होटल में अंदर बाहर का काम करता था उस की सुस्त-रवी से तंग आकर बर-तरफ़ कर दिया। असल में वो सुस्त-रो नहीं था। इस क़दर तेज़ था ...Read Moreउस की हर हरकत शहबाज़ ख़ान को ग़ैर-मुतहर्रिक मालूम होती थी।

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गुस्लख़ाना

  • 730

  • 1.8k

सदर दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते ही सड़ियों के पास एक छोटी सी कोठड़ी है जिस में कभी उपले और लकड़ियां कोइले रखे जाते थे। मगर अब इस में नल लगा कर उस को मर्दाना ग़ुस्लख़ाने में तबदील कर ...Read Moreगया है। फ़र्श वग़ैरा मज़बूत बना दिया गया है ताकि मकान की बुनियादों में पानी ना चला जाये। इस में सिर्फ़ एक खिड़की है जो गली की तरफ़ खुलती है। इस में ज़ंगआलूद सलाखें लगी हुई हैं।

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गौरमुख सिंह की वसीयत

(12)
  • 899

  • 2.8k

पहले छुरा भौंकने की इक्का दुक्का वारदात होती थीं, अब दोनों फ़रीक़ों में बाक़ायदा लड़ाई की ख़बरें आने लगी जिन में चाक़ू छुरियों के इलावा कृपाणें, तलवारें और बंदूक़ें आम इस्तिमाल की जाती थीं। कभी कभी देसी साख़त के ...Read Moreफटने की इत्तिला भी मिलती थी।

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घोगा

  • 713

  • 1.7k

मैं जब हस्पताल में दाख़िल हुआ तो छट्ठे रोज़ मेरी हालत बहुत ग़ैर होगई। कई रोज़ तक बे-होश रहा। डाक्टर जवाब दे चुके थे लेकिन ख़ुदा ने अपना करम किया और मेरी तबीयत सँभलने लगी। इस दौरान की मुझे ...Read Moreबातें याद नहीं। दिन में कई आदमी मिलने के लिए आते। लेकिन मुझे क़तअन मालूम नहीं, कौन आता था, कौन जाता था, मेरे बिस्तर-ए-मर्ग पर जैसा कि मुझे अब मालूम हुआ, दोस्तों और अज़ीज़ों का जमघटा लगा रहता, बाअज़ रोते, बाअज़ आहें भरते, मेरी ज़िंदगी के बीते हुए वाक़ियात दुहराते और अफ़सोस का इज़हार करते।

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चन्द मुकालमे

  • 670

  • 1.8k

“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीfए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अल्लाह अल्लाह है आप ने हिम्मत ...Read Moreतो ख़ान-ए-काअबा की ज़यारत कर ली। हमारी तमन्ना दिल ही में रह जाएगी दुआ कीजिए ये सआदत हमें भी नसीब हो।”

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चुग़द

  • 957

  • 3.4k

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ...Read Moreभोंडे और लचर और बेहूदा तरीक़ों से अमल में आते हैं। एक बाक़ी रह जाता है, इस में आप अपनी शायरी रख लीजीए या अपनी ज़ेहानत और ज़कावत भर दीजीए...... मुझे हैरत है... तुम सब तजरबाकार हो। औसत आदमी के मुक़ाबले में ज़्यादा समझदार हो। जो हक़ीक़त है, तुम्हारी आँखों से ओझल भी नहीं।

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चूहे-दान

  • 1k

  • 2.7k

शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद ...Read Moreउन से यही मालूम होता है कि उस ने काफ़ी मेहनत की है। अगर चूहे पकड़ने का कोई फ़न नहीं है तो उस ने अपनी ज़ेहानत से उसे फ़न बना दिया है। उस को आप कोई चूहा दिखा दीजिए, वो फ़ौरन आप को बता देगा कि इस तरकीब से वो इतने घंटों में पकड़ा जाएगा और इस तरीक़े से अगर आप उसे पकड़ने की कोशिश करें तो इतने दिन लग जाऐंगे।

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चोरी

  • 795

  • 2.6k

स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी ...Read More

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चौदहवीं का चाँद

  • 708

  • 1.9k

अक्सर लोगों का तर्ज़-ए-ज़िंदगी, उन के हालात पर मुनहसिर होता है। और बाअज़ बे-कार अपनी तक़दीर का रोना रोते हैं। हालाँकि इस से हासिल-वुसूल कुछ भी नहीं होता। वो समझते हैं अगर हालात बेहतर होते तो वो ज़रूर दुनिया ...Read Moreकुछ कर दिखाते। बेशतर ऐसे भी हैं जो मजबूरियों के बाइस क़िस्मत पर शाकिर रहते हैं। उन की ज़िंदगी उन ट्राम कारों की तरह है जो हमेशा एक ही पटरी पर चलती रहती हैं। जब कंडम हो जाती हैं तो उन्हें महज़ लोहा समझ कर किसी कबाड़ी के पास फ़रोख़्त कर दिया जाता है।

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जाओ हनीफ़ जाओ...

(12)
  • 832

  • 2.1k

चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज ...Read Moreफ़िल-फ़ौर ख़ातमा होना चाहिए।

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सिगरेट और फाउन्टेन पेन

(20)
  • 1.6k

  • 4.1k

सिगरेट और फाउन्टेन पेन “मेरा पारकर फिफ्टी वन का क़लम कहाँ गया।” “जाने मेरी बला ” “मैंने सुबह देखा कि तुम उस से किसी को ख़त लिख रही थीं अब इनकार कर रही हो” “मैंने ख़त लिखा था मगर अब मुझे क्या मालूम ...Read Moreवो कहाँ ग़ारत होगया।” “यहां तो आए दिन कोई न कोई चीज़ ग़ारत होती ही रहती है मैंटल पीस पर आज से दस रोज़ हुए मैंने अपनी घड़ी रख्खी सिर्फ़ इस लिए कि मेरी कलाई पर चंद फुंसियां निकल आई थीं दूसरे दिन देखा वो ग़ायब थी।”

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सिराज

(15)
  • 1k

  • 2.8k

नागपाड़ा पुलिस चौकी के उस तरफ़ जो छोटा सा बाग़ है। उस के बिलकुल सामने ईरानी के होटल के बाहर, बिजली के खंबे के साथ लग कर ढूंढ़ो खड़ा था। दिन ढले, मुक़र्ररा वक़्त पर वो यहां आ जाता ...Read Moreसुबह चार बजे तक अपने धंदे में मसरूफ़ रहता। मालूम नहीं, उस का अस्ल नाम क्या था। मगर सब उसे ढूंढ़ो कहते थे, इस लिहाज़ से तो ये बहुत मुनासिब था कि उस का काम अपने मुवक्किलों के लिए उन की ख़्वाहिश और पसंद के मुताबिक़ हर नसल और हर रंग की लड़कियां ढूंढता था।

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सौदा बेचने वाली

(24)
  • 1.5k

  • 4.4k

सुहैल और जमील दोनों बचपन के दोस्त थे...... उन की दोस्ती को लोग मिसाल के तौर पर पेश करते थे। दोनों स्कूल में इकट्ठे पढ़े। फिर इस के बाद सुहैल के बाप का तबादला होगया और वो रावलपिंडी चला ...Read Moreलेकिन उन की दोस्ती फिर भी क़ायम रही। कभी जमील रावलपिंडी चला जाता और कभी सुहैल लाहौर आ जाता।

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स्वराज के लिए

(12)
  • 1.4k

  • 3.5k

मुझे सन याद नहीं रहा। लेकिन वही दिन थे। जब अमृतसर में हर तरफ़ “इन्क़िलाब ज़िंदाबाद के नारे गूंजते थे। इन नारों में, मुझे अच्छी तरह याद है, एक अजीब क़िस्म का जोश था.... एक जवानी.... एक अजीब क़िस्म ...Read Moreजवानी। बिलकुल अमृतसर की गुजरियों की सी जो सर पर ऊपलों के टोकरे उठाए बाज़ारों को जैसे काटती हुई चलती हैं.... ख़ूब दिन थे। फ़िज़ा में जो वो जलियांवाला बाग़ के ख़ूनीं हादिसे का उदास ख़ौफ़ समोया रहता था। उस वक़्त बिलकुल मफ़क़ूद था। अब उस की जगह एक बेख़ौफ तड़प ने ले ली थी.... एक अंधा धुंद जस्त ने जो अपनी मंज़िल से ना-वाक़िफ़ थी।

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हरनाम कौर

(38)
  • 1.7k

  • 4.9k

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह-व-सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था। निहाल सिंह की अधेड़ ...Read Moreतेज़ आँखों के सामने वो खुला मैदान था जिस पर वो बचपन में बंटों से कबड्डी तक तमाम खेल खेल चुका था। किसी ज़माने में वो गांव का सब से निडर और जियाला जवान था।

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