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जर्नलिज़्म - Novels
by Neelam Kulshreshtha
in
Hindi Moral Stories
फ़ोन पर दूर के रिश्ते के देवर की आवाज़ है, भाभीजी ! इस बार आपको हमारे शहर आना ही होगा. कब से टाल रही हैं.
क्या करूँ कुछ ना कुछ व्यस्त्तायें चलती ही रह्ती हैं.
आप मेरी बात सुनेगी तो उछल पडेंगी, दौड़ती हुई हमारे यहाँ चली आयेंगी.
ऐसी क्या बात हो गई ?
आपका मैंने अपनी पार्टी के मिनिस्टर के साथ लंच फ़िक्स करवा दिया है. एक जर्नलिस्ट को और क्या चाहिये ?---कॉन्टेक्टस. यह तो एक सुपर डुपर कॉन्टेक्ट है.
जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (1) फ़ोन पर दूर के रिश्ते के देवर की आवाज़ है, "भाभीजी ! इस बार आपको हमारे शहर आना ही होगा. कब से टाल रही हैं. " "क्या करूँ कुछ ना कुछ व्यस्त्तायें चलती ही रह्ती ...Read More" "आप मेरी बात सुनेगी तो उछल पडेंगी, दौड़ती हुई हमारे यहाँ चली आयेंगी. " "ऐसी क्या बात हो गई ?" "आपका मैंने अपनी पार्टी के मिनिस्टर के साथ लंच फ़िक्स करवा दिया है. एक जर्नलिस्ट को और क्या चाहिये ?---कॉन्टेक्टस. यह तो एक सुपर डुपर कॉन्टेक्ट है. " फ़ोन उसके हाथ से छूटते छूटते बचा, "भला मैं मिनिस्टर के
जर्नलिज़्म नीलम कुलश्रेष्ठ (2) श्री वर्मा ने एक मीटिंग में ये बात बताई थी, "बहुत वर्षो पहले ठाकुरों का पूरे उत्तर प्रदेश में दबदबा था. कारण ये था कि उनके परिवार का एक सद्स्य घर से घोड़े पर निकाल ...Read Moreथा. उसका मन जहाँ आता था, वहाँ एक तलवार गाढ़ देता था. बस उसके आस् पास का इलाका उसकी जागीर बन जाता था. मजाल है कोई उसकी उसकी तलवार को हाथ भी लगा दे. यदि किसी में हिम्मत होती तो उसे हट्टे कट्टे ठाकुर से लड़ना होता था. इसी तरह उस तलवार के इर्द गिर्द गांव बसता जाता, इसी तरह