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जर्नलिज़्म - 1

जर्नलिज़्म

नीलम कुलश्रेष्ठ

(1)

फ़ोन पर दूर के रिश्ते के देवर की आवाज़ है, "भाभीजी ! इस बार आपको हमारे शहर आना ही होगा. कब से टाल रही हैं. "

"क्या करूँ कुछ ना कुछ व्यस्त्तायें चलती ही रह्ती हैं. "

"आप मेरी बात सुनेगी तो उछल पडेंगी, दौड़ती हुई हमारे यहाँ चली आयेंगी. "

"ऐसी क्या बात हो गई ?"

"आपका मैंने अपनी पार्टी के मिनिस्टर के साथ लंच फ़िक्स करवा दिया है. एक जर्नलिस्ट को और क्या चाहिये ?---कॉन्टेक्टस. यह तो एक सुपर डुपर कॉन्टेक्ट है. "

फ़ोन उसके हाथ से छूटते छूटते बचा, "भला मैं मिनिस्टर के साथ खाना खाकर क्या करूँगी ?"

" हम सब चलेंगे. वे अपने बारे में कुछ प्रकाशित करवाना चाह रहे हैं. बाद में ये सम्बन्ध आपके लिए कितना यूज़फुल हो सकता है ---यू नो ---स्काई इज़ द लिमिट. "

" मुझे आसमान छूने में कोई दिलचस्पी नहीं है. "उसने जानबूझकर रिसीवर इतनी ज़ोर से रक्खा कि वे दोबारा ऎसे प्रस्ताव की हिम्मत ना जुटा पाये.

पत्रकारिता के आरम्भिक कल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों को तुर्शी से प्रश्न दागते देखकर व खाने की टेबल पर टूटते देखकर उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस से किनारा कर लिया था. इतने वर्षो तक काम करके उसे लगा है कि वह् जर्नलिज़्म की परिभाषा सीख चुकी है लेकिन अभी कहाँ---कितना भी जानने पर भी हम कहाँ जान पाये हैं ---इस अबाध फैले क्षेत्र को ?

भारी भरकम आवाज़ में एक फ़ोन मिलता है", मैं सरस्वती एजुकेशन ट्रस्ट का प्रेसिडेंट एम. एल. वर्मा बोल रहा हूँ. "

"जी कहिये ?"

"मेरे ट्रस्ट का डेंटल कॉलेज है, होटल मेनेजमेंट इंस्टीटयूट है, नर्सेस एंड आया ट्रेनिंग सेंटर है. कमप्यूटर क्लासेस हैं. मैं जर्नलिज़्म डिपार्टमेन्ट खोल लिया है स्टूडेंट्स, फ़ेकल्टी सब तैयार है क्या आप दो तीन घंटे हमारे यहाँ दे सकेंगी?"

"मुझे सोचना पड़ेगा. "

"आप हमारे यहाँ आइये तब बात करते हैं.

निश्चित किए समय पर वह उस इंस्टीटयूट का बड़ा गेट पास करती है. सारी इमारत की सुघड़ता, सुंदर रेशमी पर्दे, बरामदे में सजे चाइना क्ले के बड़े फलावर वास उसका मन मोह लेते हैं.

उसके विज़िटिंग कार्ड भिजवाते ही उसे अन्दर बुलवा लिया जाता है, "रियली आई एम ग्लेड टु मीट यू. "

वह बहुत सजग रह्ती है कि इस तबके के लोग जब तक अपना मतलब ना हो तब तक `ग्लेड `नहीं होते. वर्मा जी बताते हैं, "मेरी कंस्ट्रक्शन कम्पनी है बट आई वॉन्ट टु डु समथिंग फ़ॉर सोसायटी इसलिए मैंने व मिसिज़ चावला ने ये एजुकेशन ट्रस्ट बनाया था. ये सेल्फ़ फ़ाइनेंस इंस्टीटयूट है. जितना रुपया आता है वो इसी में लगाता चलता हूँ. "

सेल्फ़ फ़ाइनेंस इंस्टीटयूट यानि शिक्षा के क्षेत्र में कुछ कर गुज़रने वाले लोग इन्हे स्थापित करते हैं. भारी भरकम फ़ीस से इनके खर्च पूरे होते हैं. उसका बहुत बड़ा अंश इसके मालिकों की जेब में जाता है.

वह शंकित से है, "क्या छात्र जर्नलिज़्म पढ़ना चाहेंगे ?"

"क्यों नहीं ?देखिये पहले` वर्ल्ड `में`मोनार्की `थी. "उन्होंने अपने बाये हाथ की उंगली को पकड़कर कहा फिर दूसरी को पकड़ते हुए बोले, "फिर ये दुनिया ` इंडस्ट्रियलिस्ट ` के हाथ में चली गई, अब एजुकेशनिस्ट का समय आ गया है. यानि कि `ज्ञान ` यानि कि `बिल गेट `. यानि कि आप जैसे लो गों का बोलबाला होने वाला है तो सतयुग आयेगा हा----हा---हा"

"सर ! आजकल दूरदर्शन पर मायथोलोजीकल सीरियल्स आ रहे है उन्हें देखकर लगता है कि आज भी उसी युग में जी रहे हैं. कैसा सतयुग ?बेकार ही लोग आज के युग को कलयुग कहते हैं. "

" नो--नो, दिस इज़ रियली कलयुग. बाकी युगों में तो एक बॉर्डर लाइन होती थी कि ये देवता है, ये दानव लेकिन अधिकतर लोग देवता का मुखौटा लगाए हैं, असल में हैं दानव हा--हा--हा. "

वह उनके तर्क पर चकित है. वो नौकरी की बात करने आई थी, बात दार्शनिक होती जा रही है , वह चुपके से घड़ी देखते हुए पूछती है, "सर !वो जर्नलिज़्म डिपार्टमेंट की बात ?"

"हम यहाँ तीन ट्रस्टी थे. उनमें एक मिसिज़ चावला थी जो कोऑर्डीनेटर का काम करतीं थीं, मैं अपना कंस्ट्रक्शन का बिज़नेस देखा करता था. अब वो ये काम छोड़कर चली गई हैं. अब आप बतौर एक ट्रस्टी हमारे इंस्टीट्यूट को संभाल लीजिये. "

जी ?"उसे हंसी आ रही है, ये अहिंदीभाषी प्रदेश है इसलिए वो समझ नहीं पा रहे कि हिंदी की लेखक या पत्रकार कोई हस्ती नहीं होते. "सॉरी सर!आई एम वेरी कमिटेड टु जर्नलिज़्म.

"आपसे छोड़ने की बात नहीं कर रहा हूँ. आई वॉन्ट टु पुट योर जर्नलिज़्म इन एजुकेशन. आपने इतने वर्ष काम किया है, अब आपको अपना हक मिलना चाहिये. जर्नलिस्ट कैन मेक रिलेशंस विद एनीबडी. जर्नलिस्टस आर वेरी गुड पी आर ओ`ज़. "

वह ऊपर आसमान से नीचे आ गिरती है, किंचित क्रोधित है, " वॉट डु यु मीन ? जर्नलिस्टस् आर नॉट पी आर ओ`ज़. "

` मेरा मतलब है दोनों का काम एक ही है, बस नाम अलग अलग है. . "

"ग़लत, हम लोग लोगों से सूचना निकालने लेने के लिए संपर्क करते है न कि उनसे किसी कंपनी का काम निकलवाने के लिए पटाने का. "

`आप तो बुरा मान गई. मेरा मतलब यह नहीं था. जैसे आपको कोटा, भोपाल जाकर पत्रकारिता विश्वविद्ध्यालय में संपर्क करना पड़ेगा. आपका जो ख़र्च होगा उससे दो हज़ार रुपया आपको अधिक दिया जायेगा. हम साथ जायेंगे तो आपको और पैसा दिया जाएगा। "

" मैं वैसे भी शहर से बाहर जाकर काम नहीं करती. `

" यहाँ के कोऑर्डीनेटर को बाहर जाना ही होता है. "

" मैं बस यहाँ की यूनिवर्सिटी में जा सकती हूँ. "

"चलिए यही सही. हमारे यहाँ ऑडिट के लिए सरकारी अफ़सर आते है तो उन्हें ये ऑफ़िस दिखाना, उन्हें लंच पर ले जाना. वो दस पचास हज़ार रुपये माँगें तो उन्हें रुपये देना ये तो कर ही सकती हैं. "

उसे लगता है कि वह् दोबारा धड़ाम से नीचे गिर गई है. "आप मुझे क्या समझ रहे हैं?आपको एक जर्नलिस्ट नहीं एक इंडस्ट्री के लिए लाइज़न ऑफ़िसर चाहिये, आई वॉन्ट टु लीव. "वह कहते हुए उठती है, उसकी आँखों में दो चार बार देखी लाइज़न ऑफ़िसर्स महिलाओं की तसवीर उभर आती है. दोपहिये दौड़ाती इस कम्पनी से उस कंपनी दौड़ती रह्ती हैं. उसे आश्चर्य हो रहा है कि उसके उम्र की महिला को कोई लाइज़न ऑफ़िसर बनाने की सोच भी सकता है.

"प्लीज़ ! सिट डाउन, आई एम सॉरी ! नाराज मत होइये, मैं कोई और चीफ कोऑर्डीनेटर तलाश लूँगा, आप जर्नलिज़्म सम्भालिये, कल आप इसी समय आइए तब डिस्कस करेंगे. "

वह कम उम्र की होती तो इतना सुनने के बाद पलट कर ना आती लेकिन समझ चुकी है कि अंगद ने रावण के दरबार में पैर जमाया होगा तो उसे पीछॆ हटाने का ख्याल भी मन में आया होगा तो उसने मसलकर रख दिया होगा. पत्रकारिता की उलटी सीधी छवि के बीच उसे उजली छवि बनानी है. बनानी क्या है बनाती चली आई है. सप्ताह में तीन दिन तीन घंटों की नौकरी, वह भी मंनपसंद क्षेत्र में, फिर भी ये ट्रस्ट छोड़ गई मिसिज़ चावला से पता लगाना होगा इस एम्पायर व वर्माजी के बारे में. वह फ़ोन मिलाती है, " मैं आपके डेंटल क्लीनिक में एक बार आई थी. "

"ओ ! यस. पत्रकारों को कोई नहीं भूलता. "

"जी सरस्वती एजुकेशन ट्रस्ट के वर्मा जी ने मुझे जर्नलिज़्म डिपार्टमेंट खोलने का ऑफर दिया है. "

" इट `स योर पर्सनल मेटर, मैं क्या सलाह दूँगी ?"

"आपने उसे क्यों छोड़ा ?

"मैंने एक ट्रस्टी की तरह इन दस वर्षो में अपना सब रुपया, दिमाग, अपनी इनर्जी सब कुछ लगा दिया. जब अच्छी तरह सेट हो गया, पैसा बरसने लगा तो वर्माजी अपना हक जमाने आ गये. उनकी आवाज़ गीली हो कांप रही है, घर में रहने वाली उस स्त्री की तरह जो मध्य वयस में घर के पिंजरे में फँसी बोलती है। इसी तरह बोलती है.

" सॉरी मैं डम !आई हर्ट यू, क्या मैं जर्नलिज़्म डिपार्टमेंट शुरू कर दूँ क्योंकि सीधा सादा हिसाब है मेरा काम उन्हें पसंद नहीं आता तो वो मुझे निकाल सकते हैं या मैं इंस्टीटयूट छोड़ सकती हूँ. इस शहर में मुझे बीस वर्ष से लोग जानते हैं. यदि कोई पत्रकार इतने वर्ष काम करके गाड़ी ना खरीद पाये तो एथिक्स वाला होगा. "

वह धीमे से हंस पड़ी, "आप ख़ुद ही निर्णय लीजिये. " वह उनके बारे में इतना जानती है कि वे एक अच्छी डेंटिस्ट हैं. बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. प्रारम्भ में पिता के छोड़े पैसे से व अपनी टयूशंस से बहिन भाइयो को पढ़ाया. व स्वयम पढ़ीं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के प्रोजेक्ट पर विदेश गई. श्री वर्मा अपना दाँत दिखाने उनके क्लीनिक गए --उसके बाद क्या हुआ कह नहीं सकते हैं. उन्होंने अपनी वरिष्ठ पद पर होते हुए नौकरी छोड़ दी व वर्मा जी व इनके मित्र के साथ सरस्वती इंस्टीटयूट खोला व उसकी प्रगति में जी जान जुट गई थी. बचपन की गरीबी ने उन्हें इतना उन्मत बना दिया था कि वर्मा जी के पैसे व काम के अलावा उन्हें कुछ नहीं सूझता था.

अब वर्मा जी के घर व इंस्टीटयूट के रास्ते में उनका अपना डेंटल कॉलेज है, जो आते जाते वर्मा जी की आँखों में ज़रूर चुभता होगा. सामाजिक ढाँचे में इस जैसी चुनिन्दा स्त्रियां अपना तेज़ दिमाग, अपना शरीर लेकर उपस्थित है. वर्मा व इनका रह्स्य अभी भी पर्दे में है किसने किसको ज़ख्म दिए -पहेली सुलझानी बाकी है.

श्री वर्मा उसे दूसरे दिन भी बहुत उदग्विन व असुंतलित लगते हैं. वे बात नौकरी की ना करके भावुक हो रहे है, " मैं मैं डम चावला को डॉक्टर साहब कहता था. इस इंस्टीटयूट की नींव हमने इस इमारत मे डाली थी. हम दोनों नीचे बैठा करते थे. मैं मानता हूँ कि दस वर्षो में उन्होंने बहुत मेहनत की थी लेकिन बाद में उनमें बहुत `ईगो`पैदा हो गया था. झगड़े के बाद उन्होंने जितने रुपये मेरे वकील से माँगें मैंने दे दिए. मुझे लगता है कि फ़ीमेल्स में` ईगो बहुत होता है. "

`उसे हंसी आ जाती है, "ये इल्ज़ाम तो स्त्रिया पुरुषों पर लगाती है, खैर आप छोड़िये, आप कह रहे थे कि कुछ स्टूडेंट्स जर्नलिज़्म पडढ़ने को तैयार हैं. उन्हें मुझसे मिलवा दीजिये. "

"कौन से स्टूडेंटस ?उन्हें तो कोऑर्डीनेटर ढूँढ़ता है. "

वे साफ़ झूठ बोल रहे हैं, "आप अखबारों में विज्ञापन दीजिये फिर छात्र एप्लाई करेंगे. "

तो उसे स्टूडेंट्स व फ़ेकल्टी तैयार है का ब्लफ़ देकर यहाँ बुलाया गया है. वह विज्ञापन लिखने में लग जाती है. बाद में उसे निदेश दिए जाते हैं, "आप ऎसा करिये अगले महीने यहाँ के विश्व विद्ध्यालय में ज जर्नलिज़्म के लिये एन्ट्रेन्स टेस्ट होगा. ढाई सौ छात्रों ने फ़ॉर्म भरे हैं, सीट है पचास तो बाकी कहाँ जायेंगे ?"

"सर असफ़ल स्टूडेंट्स कौन से हैं पता कैसे लगेगा ?‍‍‍‍"

" वेरी सिंपल !आप विभाग के क्लर्क को चार पाँच सौ पकड़ा कर वो लिस्ट निकलवा लीजिये. उन सबको यहाँ कोर्स आरंभ हो रहा है इसकी जानकारी देते हुए पत्र डाल दीजिये. "

देने दिलाने के नाम पर उसके शरीर में झुरझूरी हो जाती है, "सर !इस तरह का काम मुझसे नहीं होगा, "

अब तक वे एक डेढ़ हज़ार रुपया विज्ञापनों पर खर्च कर चुके है, अपने क्रोध को पीकर उससे कहते हैं, "अच्छा आप ऎसा करिये सोनल से मिल लीजिये. यू नो शी बिलोंग टु अ रॉयल फ़ेमिली. उसका असली नाम है सोनल देवी चौहान. उसके `एटीकेट्स `देखने लायक हैं. हमारा जो लोकल टीवी चैनल है उसमें पी आर ओ है. "

` `मैंने सुना था कि वह तो लीना देसाई का है. "

"उस चैनल के लिये बिल्डिंग हमने दी है, रुपया लीना के पति ने दिया है. "

"मे आई कम इन सर !"

वर्मा जी ज़ोर से हंस पड़ते हैं, "थिंक ऑफ़ डेवल-- डेवल इज़ हीयर. वेलकम सोनल अभी तुम्हारी बात चल रही थी. "

"सर !आपने कैसे मुझे याद किया ?" वह् उनके सामने बैठते हुए पूछती है

वे उसका परिचय करवाते हैं, "इनसे मिलो ये हैं जानी मानी जर्नलिस्ट. "

` `हाय !"वह गर्मजोशी से कहती है, "यू नो मैं डम ! मैं भी जर्नलिस्ट बनना चाहती थी. आपने बाटली वाला कोचिंग क्लास का नाम सुना है ?---नहीं ----यहाँ के सर साठ हज़ार रुपये में मुझे इज़्ररायल के अखबार में ट्रेनिंग के लिए भेजने वाले थे. " उसका माथा फोड़ लेने को मन करता है. हथियारों से लड़ने वाले. हथियार बेचने वाले इज़्ररायल का कहीं कला या शिक्षा में ऊँचा नाम नहीं सुना. वहाँ ऎसा कौन सा तीसमार अखबार है जो यहाँ नहीं होगा. वह् ऊपर से कहती है, "यहाँ भी तो यूनिवर्सिटी में जर्नलिज़्म डिपार्टमेंट है. "

"वो ये बात है मैं डम ! फ़ॉरेन तो फ़ॉरेन ही होता है न. "

वह जिस ऐंठ से अकड़कर मुस्कराती है. उसे लगता है वह् जिन लोगो के बीच बैठी है उसे भी मुस्कराना चहियें. तभी इस इंस्टीट्यूट के हर कोर्स के लिए विदेशी मान्यता ली हुई है, उसे विज्ञापित भी खूब किया जाता है. इस संस्थान के अपने सेल्स एग्जीक्यूटिवस भी हैं जैसे कोई धन्धा हो.

"तो इस वर्ष जर्नलिज़्म डिप्लोमा कर लो. मैं इस वर्ष क्लास आरंभ कर रहा हूँ. "

` `अब मूड नहीं है. मैं मार्केटिंग में घुस गई हूँ. "

वर्माजी कहते हैं, "मैंने तुमसे बात की थी न, हमे युनीवर्सिटी के जर्नलिज़्म डिपार्टमेंट में एन्ट्रेन्स टेस्ट देने वाले छात्रों की लिस्ट चाहिये. "

"सर !वहाँ सेकंड ईयर का स्टूडेंट मेरी जान पहचान का है. मैं अभी उसे फ़ोन मिलाती हूँ. "वह् फ़ोन पर नंबर डायल करने लगती है, "कौन शिरीष बोल रहे हो. ?"

सर स्पीकर ऑन कर देते हैं. उधर से शिरीष की आवाज़ आती है, "हाँ ".

" मैं सोनल बोल रही हूँ. मेरा एक काम करेगा. मुझे तेरे डिपार्टमेंट की इस बार `एन्ट्रेन्स `में एपीयर होने वाले छात्रों की लिस्ट चाहिये. "

"वो किससे मिलेगी ?"

"ये लिस्ट क्लर्क के पास होती है. हेड से मैंने बात की थी वे तैयार नहीं हैं. तू क्लर्क से बात कर. "

"अगर उसने मना कर दिया तो --"

"तो चार पाँच सौ पकडा देना. मैं तुझे बाद में दे दूंगी. "

"चल हट ये गन्दा काम मुझसे नहीं होगा. "

"ओय !अगर नहीं करेगा तो मार्केट में फ़ेल हो जायेगा, एकदम फ़्लॉप जर्नलिस्ट. "वह बड़े नाटकीय स्वर में बोलने लगी, "जानता है जर्नलिस्‍ट का क्या काम है ?पेपर ऑन द टेबल, मनी अन्डर द टेबल -हा----हा--हा. "

इस बात से ख़ुश होकर वर्मा जी तिरछी आँखों से सोनल को शबासी देते है, उनकी आँखें सोनल के चेहरे से हटकर उसे उलाहना देती है, "समझो `जर्नलिज़्म` किसे कहते है.

"ये सब मुझसे नहीं होगा. "

"सोच ले मैं बाद में फ़ोन करूँगी. " फिर वह वर्मा जी से कहती है, " मैं अब निकलती हूँ. "

" ऑफ़िस जा रही हो ?"

"नहीं टीवी प्रोग्राम के एक स्पॉन्सर से मिलना है. "

वह् सोचती है -ऎसे कामों के लिये सच ही `रॉयल एटीकेट्स `चाहिये. वह् चैन की साँस लेती है. अच्छा है सोनल ने जर्नलिज़्म नहीं किया नहीं तो एक और जर्नेलिस्‍ट जर्निलिज़्म को बाज़ारू चौराहे पर खड़ा कर देता. "

समाचार पत्रों में विज्ञापन देने के दौरान उसकी दृष्टि विज्ञापन कॉलम पर फिसलती रह्ती है. कौन कौन से किस किस तरह के विश्वविद्ध्यालय पैदा हो गए हैं डीम्ड यूनिवर्सिटी, डिस्टेंट यूनिवर्सिटी, इंस्टीटयूट ऑफ़ करेस्पोंडेन्स एजुकेशन. हर शहर में दक्षिण के स्टडी व इनफ़ॉर्मेशन इ सेंटर के नामालूम से कोर्स करके बी. ए. यहाँ तक कि एम. सी. ए. या एम. बी. ए. की डिग्री हासिल की जा सकती है.

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