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आवारा अदाकार - Novels
by Vikram Singh
in
Hindi Moral Stories
आवारा अदाकार विक्रम सिंह (1) ’’मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं। हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर,ठोकरें इन्सान को चलना सिखाती हैं। (रामधारी सिंह ’दिनकर’) आप लोगों ने अखबार में कई बार पढ़ा होगा कि फंला जी पहले बस कन्डक्टर हुआ करते थे। इत्तेंफाक से ऐसे ही एक बस में एक बार कोई फिल्म निर्देशक जा रहा था। बस कन्डक्टर के टिकट काटने के अंदाज से निर्देशक इतना प्रभावित हुआ कि उसे अपनी फिल्म में ले लिया........ या अपनी माँ के साथ वो पार्टी में गई थी। वहीं डायरेक्टर साहब ने उसे देखा और
आवारा अदाकार विक्रम सिंह (1) ’’मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं। हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर,ठोकरें इन्सान को चलना सिखाती हैं। (रामधारी सिंह ’दिनकर’) आप लोगों ने अखबार में कई बार ...Read Moreहोगा कि फंला जी पहले बस कन्डक्टर हुआ करते थे। इत्तेंफाक से ऐसे ही एक बस में एक बार कोई फिल्म निर्देशक जा रहा था। बस कन्डक्टर के टिकट काटने के अंदाज से निर्देशक इतना प्रभावित हुआ कि उसे अपनी फिल्म में ले लिया........ या अपनी माँ के साथ वो पार्टी में गई थी। वहीं डायरेक्टर साहब ने उसे देखा और
आवारा अदाकार विक्रम सिंह (2) सही मायने में वह सुबह में दिखती ही नहीं थी। क्योंकि वह सुबह देर से उठती थी। दरअसल वो सुबह से ही उसे तलाशने लगता था। हालत तो यह हो गई थी कि ठंड ...Read Moreमौसम में भी किताब लेकर छत पर हाजिर हो जाता। धूप सेंकते हुए किताब की हर चार लाइन पढने के बाद उसे बरांमदे में देखता अर्थात पाँचवी लाईन बरांमदा हो जातीा। हाँ, वह कई बार बरामंदे में आती भी। वो भी हल्के-फुल्के काम के लिए। जैसे कभी झूठे बर्तन बाहर रखने,कपड़े रखने इत्यादि। दरअसल उसके घर के बरामदे में एक छोटी सी पानी
आवारा अदाकार विक्रम सिंह (3) उसने कहा, ’’अब तुम दोनों निकल जाओ।’’ वह चुप रहा। बबनी ने ही कहा,’’बस दीदी! थोड़ी देर में चले जायेंगे।’’ यह सुन बबीता अपना क्लास करने चली गई। दोनो फिर दुनिया जहान में खो ...Read Moreथोड़ी देर बाद बबनी ने उसे पूछा,तुम मुझे कभी छोड़ोगे तो नहीं? उसने सिर हिला कर ना किया। उसने दूसरा सवाल दागा,’’हम दोनो शादी कब करेंगे।’’ वह हक्का-बक्का सा रह गया। उसे कोई जवाब ही नहीं सूझा। बिना कुछ सोचे समझे कह दिया,’’दस साल बाद कर लेंगे।’’ बबनी ने बड़े आष्चर्य से कहा,’’दस साल बाद। तब तक तो बुढे हो
आवारा अदाकार विक्रम सिंह (4) ’’जी’’ ’’कितना दे रहे हैं?’’ ’’जी बस चार हजार।’’ ’’आप को कितना मिलता है?’ ’हमको पन्द्रह हजार। टैक्नीकल काम का पैसा ज्यादा मिलता हैं। बैठ कर ट्रीप तो कोई भी लिख लेगा।’’ गुरूवंश को ...Read Moreबात पते की लगी। अगले दिन वह एक बियर की बोतल लेकर उसके पास गया और कहा,’’यार! यह बुलडोजर चलाना मुझे भी सीखा दो।’’ उसने कहा,’’यार पढ़े लिखे हो। यह सब सीख कर क्या करोगे?’’ ’’पढ़े लिखे हैें। साथ में यह भी जान जायेगे तो अच्छा है।’’इतना कह कर बियर की बोतल उसके हाथ में पकड़ा दी। ………… कहते हैं उस दिन
आवारा अदाकार विक्रम सिंह (5) उस पूरे दिन गुरूवंश मुँह लटकाये घूमता रहा। न किसी से बात कर रहा था न ही किसी से मिलजुल रहा था। वह अपने-आप को बेबस महसूस कर रहा था। हम सब तो यही ...Read Moreरहे थे कि बबनी उसके बिना नहीं रह पाएगी। लेकिन घड़ी की सुई तो उल्टी घूम गई। दीवानगी अब जुनून में बदल गई थी और जुनून में वह विवके और होशोहवास दोनों गंवा बैठा था। वह अपनी नौकरी छोड़ कर दिन भर बबनी के घर के बाहर घूमता रहता और मौका पाते ही पीसीओ की तरफ भागता था। इसी तरह फोन