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मोतीमहल - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Horror Stories
आधी रात का समय .... सुनसान स्टेशन,खाली प्लेटफार्म, अमावस्या की रात,चारों ओर केवल अँधेरा ही अँधेरा, आ रही तो बस केवल आवारा कुत्तों के भौंकने की आवाज,प्लेटफार्म पर कहीं कहीं लैम्पपोस्ट लगे जिनसे बिलकुल फीकी और पीली रोशनी आ रही है,रोशनी इतनी हल्की है कि किसी का भी चेहरा देख पाना मुश्किल है।। तभी स्टेशन के प्लेटफार्म पर रेलगाड़ी रूकी,रेलगाड़ी से एक आदमीं हैट लगाएं ,ओवरकोट पहनें बाहर उतरा,उसके पास उसका सूटकेस और एक बिस्तरबंद था,उसनें यहाँ वहाँ नज़रें दौड़ाईं लेकिन उसे कोई भी कुली ना दिखा जो उसका समान उठा सकें,स्टेशन एकदम सुनसान था,एक भी इंसान वहाँ नहीं
आधी रात का समय .... सुनसान स्टेशन,खाली प्लेटफार्म, अमावस्या की रात,चारों ओर केवल अँधेरा ही अँधेरा, आ रही तो बस केवल आवारा कुत्तों के भौंकने की आवाज,प्लेटफार्म पर कहीं कहीं लैम्पपोस्ट लगे जिनसे बिलकुल फीकी और पीली रोशनी ...Read Moreरही है,रोशनी इतनी हल्की है कि किसी का भी चेहरा देख पाना मुश्किल है।। तभी स्टेशन के प्लेटफार्म पर रेलगाड़ी रूकी,रेलगाड़ी से एक आदमीं हैट लगाएं ,ओवरकोट पहनें बाहर उतरा,उसके पास उसका सूटकेस और एक बिस्तरबंद था,उसनें यहाँ वहाँ नज़रें दौड़ाईं लेकिन उसे कोई भी कुली ना दिखा जो उसका समान उठा सकें,स्टेशन एकदम सुनसान था,एक भी इंसान वहाँ नहीं
सत्यसुन्दर पायलों की छुनछुन की आवाज़ से फिर से सम्मोहित हो गया,वो बिस्तर से उठा,दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गया,उसे फिर से वो सफ़ेद लिबास वाली लड़की दिखी और वो उसके पीछे पीछे जाने लगा,वो लड़की कभी पेड़ की ...Read Moreमें छुप जाती तो कभी झाड़ियों में और सत्यसुन्दर उसे ढ़ूढ़ कर फिर उसके पीछे पीछे जाने लगता,वो उसे फिर से मोतीमहल के पास तक ले गई और कुएँ के पास जाकर रूक गई,अब सत्यसुन्दर से ना रहा गया और उसने उससे पूछ ही लिया ___ ऐ...सुनो...आखिर तुम कौन हो ? जिसके पीछे मैं पागलों की तरह भागा चला जा
बहुत सालों पहले एक जमींदार हुआ करते थे जिनका नाम गजेन्द्रप्रताप सिंह था,कई गाँवों की जमींदारी उनके हाथ में थीं,वो बहुत ही अय्याश किस्म के इंसान थें,उनकी पत्नी बहुत ही नेकदिल और भक्तिभाव रखने वाली महिला थीं,वो अपने पति ...Read Moreबच्चों से बहुत प्यार करतीं थीं,खूब बड़ी जमींदारी थी तो रूपए पैसे की कोई कमी ना थी,खूब अनाप शनाप पैसा था गजेन्द्र प्रताप सिंह के पास,कुछ तो उसने गाँव के लोगों से दुगना लगान वसूल करके कमाया था।। गजेन्द्र प्रताप की पत्नी सावित्री बहुत मना करती उसे लेकिन उसे तो दूसरों को कष्ट पहुँचाकर बहुत मजा आता था,लेकिन सावित्री
गजेन्द्र मना मनाकर हार गया लेकिन कमलनयनी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी,वो समाज मे माँगभर कर गजेन्द्र की दुल्हन का दर्जा पाना चाहती थी लेकिन इस बात के लिए,गजेन्द्र कतई राज़ी ना था,उसने कहा कि धर्मपत्नी सिर्फ़ एक ...Read Moreहै जो कि मेरे पास है,दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे।। उधर फाल्गुनी और रणजीत का प्यार बढ़ता ही जा रहा था और इस बात की खुशी फाल्गुनी के चेहरे पर साफ साफ दिखाई देती थी,फाल्गुनी के चेहरे का निखार देखकर एक दिन कमलनयनी ने पूछ ही लिया___ क्या बात है फाल्गुनी? आजकल चेहरे का निखार दिनबदिन बढ़ता
कुछ ही देर में कमलनयनी ने खाना तैयार कर लिया और रणजीत से बोली___ चलो खाना तैयार है!! जी नहीं! मैं अकेले थोड़े ही खाऊँगा,तुम भी खाओ तभी अच्छा लगेगा,रणजीत बोला।। पहले तुम खा लो,बाद में मैं खा लूँगीं,कमल ...Read Moreना जी ना! ऐसा कहीं होता है कि बनाने वाला बैठा रहे और जिसने कुछ ना किया हो वो खा ले,रणजीत बोला।। अरे,तुम मेरे मेहमान हो तो पहले तुम खाओ,कमल बोली।। ना जी !कहा जाए तो तुम मेरी मेहमान हो,ये घर मेरे रिश्तेदार का है,रणजीत बोला।। अच्छा,ठीक है,मै ही मेहमान हूँ,लो अब तो खा लो,कमल बोली।। ना जी! संग में