Moti Mahal - Part (2) books and stories free download online pdf in Hindi

मोतीमहल--भाग(२)

सत्यसुन्दर पायलों की छुनछुन की आवाज़ से फिर से सम्मोहित हो गया,वो बिस्तर से उठा,दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गया,उसे फिर से वो सफ़ेद लिबास वाली लड़की दिखी और वो उसके पीछे पीछे जाने लगा,वो लड़की कभी पेड़ की ओट में छुप जाती तो कभी झाड़ियों में और सत्यसुन्दर उसे ढ़ूढ़ कर फिर उसके पीछे पीछे जाने लगता,वो उसे फिर से मोतीमहल के पास तक ले गई और कुएँ के पास जाकर रूक गई,अब सत्यसुन्दर से ना रहा गया और उसने उससे पूछ ही लिया ___
ऐ...सुनो...आखिर तुम कौन हो ? जिसके पीछे मैं पागलों की तरह भागा चला जा रहा हूँ।।
वो अपनी जगह रूकी और बोली____
तुमने कल भी यही सवाल किया था,क्या सच में तुमने मुझे नहीं पहचाना,उसने सत्यसुन्दर से पूछा।।
नहीं पहचाना सच में,अब बता भी दो कि तुम हो कौन? सत्यसुन्दर ने परेशान होकर पूछा।।
मैं...मैं..फाल्गुनी हूँ,उस लड़की ने जवाब दिया।।
कहाँ रहती हो? यहाँ जंगल में,सत्यसुन्दर ने पूछा।।
नहीं! मोतीमहल के पीछे जो बगीचा है,वहाँ रहती हूँ,मैं मोतीमहल के माली की बेटी हूँ,फाल्गुनी बोली।।
अच्छा! तो रात को यहाँ क्यों आती हो? सत्यसुन्दर ने पूछा।।
दिन को नहीं आ सकती ना,फाल्गुनी ने जवाब दिया।।
आखिर ऐसा क्योँ? कि दिन को नहीं आ सकती,सत्सुन्दर ने पूछा।।
दिन में बहुत काम रहते हैं ना इसलिए नहीं आ सकती,फाल्गुनी बोली।।
ऐसे ही फाल्गुनी और सत्सुन्दर के बीच बातें चलतीं रहीं,अब हर रात का सिलसिला हो गया,आधी रात को सत्यसुन्दर,फाल्गुनी से मिलने जाता और कुछ देर बातें करके अपने कमरें में लौट आता,वो फाल्गुनी को पसंद करने लगा था।।
एक रात फाल्गुनी,सत्यसुन्दर को मोतीमहल के भीतर ले गई,सत्यसुन्दर को डर लग रहा था क्योंकि उसने सुन रखा था कि मोतीमहल में चुड़ैल रहती है,उसने डर के मारे फाल्गुनी का हाथ पकड़ा तो,फाल्गुनी का हाथ बर्फ की तरह ठंडा था,सत्यसुन्दर सोच में पड़ गया लेकिन बोला कुछ नहीं।।
फाल्गुनी,सत्यसुन्दर को मोतीमहल के कच्चे आँगन की ओर ले गई,जो बिल्कुल वीरान पड़ा था,सत्यसुन्दर को समझ नहीं आ रहा था कि फाल्गुनी उसे यहाँ क्यों लाईं है?
अब उससे रहा ना गया और वो फाल्गुनी से पूछ ही बैठा__
आखिर हम लोग यहाँ क्यों आएं हैं ?फाल्गुनी! कैसी वीरान जगह है,मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा।।
कुछ बहुत पुरानी यादें जुड़ी हैं,हमारी इस जगह से ,इसलिए तुम्हें यहाँ ले आई थी,लेकिन मालूम होता है कि तुम्हें कुछ भी याद नहीं,फाल्गुनी बोली।।
हाँ,फाल्गुनी! मुझे सच में कुछ भी याद नहीं और शायद मैं अपने जीवन में इस गाँव में पहली बार आया हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है तो चलो चलते हैं और फाल्गुनी,सत्यसुन्दर को मोतीमहल से वापस ले आई और बोली अब तुम जाओ,बहुत देर हो गई है,मैं भी जाती हूँ,सत्यसुन्दर ने कहा ठीक है और वो अपने डाकबँगले में वापस चला आया और बिस्तर पर आकर लेटकर फाल्गुनी के बारें में सोचने लगा।।
दूसरे दिन सुबह अपनी दिनचर्या के अनुसार वो दफ्दर गया और पास के आदिवासियों के इलाके में पहुँचा,उसे ख़बर मिली थी कि आदिवासी उस जगह से तेंदू और महुएं के पेड़ो की लकडियाँ चुराते हैं,वहाँ से मुआयना करके लौटा तो वो बहुत थक चुका था,उसने दफ्तर के चपरासी से पूछा कि यहाँ टेलीफोन करने को कहाँ मिलेगा,चपरासी ने बताया कि पास में ही एक गाँव हैं,वहाँ के डाकघर में टेलीफोन हैं,आप वहाँ से टेलीफोन कर सकते हैं,आप कहें तो मैं आपके साथ चल सकता हूँ।।
इससे भला और क्या हो सकता है,तो चलो मैं तैयार हूँ,सत्यसुन्दर बोला।।
और दोनों निकल पड़े उस गाँव की ओर टेलीफोन करनें,सत्यसुन्दर ने अपने दोस्त मदन के दफ्तर में फोन करके हालचाल पूछा और कहा कि कितना अच्छा होता अगर तू मेरे पास होता,तुझे एक ख़ास बात बतानी थी।।
ऐसी भी क्या बात है यारा! तो हम वहीं आ जातें हैं,अपने यार के लिए तो ज़ान भी हाज़िर है,जल्दी से बता दे कि कैसे आना है? मदन ने कहा।।
तो ठीक है,आजा यार! मैं तेरा इन्तज़ार करूँगा , कौन सी बस और रेलगाड़ी पकड़नी है,सब सत्यसुन्दर ने मदन को बता दिया।।
तो ठीक है यारा! मैं कल रात की गाड़ी से आता हूँ,स्टेशन पहुँच जाना लिवाने,मदन बोला।।
तू आ तो,मैं पहुँच जाऊँगा सत्यसुन्दर बोला।।
और कुछ देर बात करने के बाद सत्यसुन्दर ने टेलीफोन रख दिया।।
खुशी खुशी शाम को डाकबँगले लौटा,दीनू तब तक चाय ले आया,दो दिन पुराना अख़बार आज पहुँचा था,सत्यसुन्दर उसे पढ़ने बैठ गया।
रात में सत्यसुन्दर फिर से फाल्गुनी से मिलने गया और मिलकर लौट आया,कुछ भी हो जाएंं,चाहे कितनी भी गहरी नींद क्यों ना आ रही सत्यसुन्दर को, वो रात को फाल्गुनी से मिलना नहीं भूलता था।।
दूसरे दिन सुबह सत्यसुन्दर ने दीनू से कहा कि मेरे कमरें में एक और बिस्तर का इंतज़ाम करवा देना,रात को मेरा दोस्त आ रहा है,कुछ दिन ठहर कर जाएगा।।
जी, बाबूजी!ठीक है,सब इन्तजाम हो जाएगा,आप फिकर मत कीजिए,दीनू बोला।।
सुबह सत्यसुन्दर खाना खाकर दफ्दर के लिए निकल गया,शाम को लौटा ,चाय पी और दीनू से बोला कि जरा बाबा से कहकर आओं कि रात को ताँगा तैयार रखेंगें,मैं स्टेशन जाऊँगा अपने दोस्त को लेने,
बाबा,जी मै समझा नहीं,दीनू बोला।।
अरे,रामखिलावन! मुझसे बुजुर्ग हैं तो नाम लेकर बुलाना मुझे अच्छा नहीं लगता,सत्यसुन्दर बोला।।
जी बाबूजी!ठीक है मैं कहकर आता हूँ और उनसे ही बिस्तर का इंतज़ाम करने के लिए भी कहता आऊँगा और मुझे लौटने में देर हो जाए तो बसंती को आवाज लगाकर खाना मँगवा लीजिएगा,वो आपको खाना परोस देगी,दीनू जाते हुए बोला।।
ठीक है,कह दूँगा बसंती से,सत्यसुन्दर बोला।।
काफी़ देर हो गई,दीनू नहीं लौटा,सत्यसुन्दर को भूख भी लग आई थी और उसे रात को मदन को लेने भी जाना था,इसलिए जल्दी खाना खाकर वो थोड़ा आराम करना चाहता था।।
उसने सोचा कुछ देर और दीनू का इन्तज़ार कर लेता हूँ,शायद वापस आ जाए लेकिन वो नहीं लौटा तब मजबूर होकर सत्यसुन्दर ने बसंती को आवाज़ दी।।
घूँघट ओढ़े,घाघरा ओढ़नी में बसंती आई और धीमे स्वर में पूछा।।
आपने बुलाया,बाबू साहब!
हाँ,ना जाने दीनू कब तक आएगा,भूख लग रही है,तुम अब खाना परोस ही दो,सत्सुन्दर बोला।।
जी बाबूसाहब! जो हुकुम! और इतना कहकर बसंती चली गई और कुछ देर बाद थाली परोसकर ले आई।।यही बरामदे में ही बैठकर खा लेता हूँ,तुम खाना स्टूल पर रख दो,सत्यसुन्दर बोला।।
जी,बाबूसाहब!इतना कहकर बसंती स्टूल पर खाना रखने लगी,खाना रखते समय बसंती झुकी और घूँघट में से उसका चेहरा दिखा,सत्यसुन्दर को ऐसा लगा कि वो फाल्गुनी हैं और उसके मुँह से भी धीरे से निकल गया___
फाल्गुनी.... फाल्गुनी नाम सुनकर बसंती हँस पड़ी और बोली___
बाबू साहब! मैं फाल्गुनी नहीं बसंती हूँ,आप भूल गए क्या?
सत्यसुन्दर को अचानक होश आया और बोला__
हाँ...भूल गया था कि तुम्हारा नाम बसंती है।।
सत्यसुन्दर से खाना ठीक से ना खाया गया,वो तो खाते समय यही सोचता रहा कि उसने साफ साफ देखा था कि घूँघट में बसंती नहीं फाल्गुनी थी,भला इतना बड़ा धोखा मुझे कैसे हो सकता है?
मैने फाल्गुनी को नजदीक...बहुत नज़दीक से देखा है!!सत्यसुन्दर ने यही उधेड़बुन बुनते हुए खाना खतम किया,बसंती ने सत्यसुन्दर की जूठी थाली उठाई ही थी कि तब तक दीनू आ गया।।
बाबू जी! मैने रामखिलावन काका! से कह दिया है,वो आपको लिवाने आ जाएंगे रेलगाड़ी के आने के पहले,दीनू बोला।।
ठीक है,जरा रात को चाय वगैरह का इंतज़ाम भी कर देना,थोड़़ी तकलीफ तो होगी बसंती को,सत्यसुन्दर बोला।।
तकलीफ़ किस बात की बाबू जी! अरे ये तो हम लोगों का काम ही है,दीनू बोला।।
अच्छा,ठीक है,अब मैं आराम करने जाता हूँ,रात को जागना भी है और ये कहकर सत्यसुन्दर आराम करने चल गया।।
रात को रेलगाड़ी के आने के पहले रामखिलावन डाकबँगले सत्यसुन्दर को लिवाने पहुँच गया,वो गेट खोलकर डाकबँगले में दाखिल हुआ और दीनू को आवाज लगाई,दीनू आँखें मलते हुए बाहर आया,
रामखिलावन बहुत गुस्से में था क्योंकि कमरें का दरवाज़ा खुला था,रामखिलावन ने दीनू को डाँटते हुए कहा__
ये क्या तरीका है दीनू! तुम्हे यहाँ कि रखवाली के लिए रखा गया है और देखो तो ये हाल है,बाबूजी के कमरे का दरवाज़ा खुला है।।
अरे,दरवाज़ा तो बाबू जी ने खुद बंद किया था,मैने देखा था,दीनू बोला।।
अच्छा!चलो,देखो चलकर दरवाज़ा खुला है और दोनों कमरें के पास गए देखा तो सत्यसुन्दर बिस्तर से गायब था,दीनू आश्चर्य से बोला___
बाबू जी! आखिर इतनी रात को कहाँ गए होगें?
मुझे पता है कि कहाँ गए होगें,चलो टार्च लेकर मेरे साथ चलो,रामखिलावन बोला।।
और दोनों सत्यसुन्दर को ढ़ूढने चल पड़े।।
रामखिलावन ने सत्यसुन्दर को आवाज़ लगाई___
बाबूजी! कहाँ हैं?आप !
रामखिलावन की आवाज़ सुनकर फाल्गुनी बोली___
लगता है कोई आ रहा है,मैं जाती हूँ और इतना कहकर फाल्गुनी चली गई।।
रामखिलावन और दीनू ने देखा कि सत्यसुन्दर कुएँ के पास वाले टीले पर अकेला बैठा है।।
बाबूजी! मैने रात में यहाँ आने को मना किया था ना! फिर आप क्यों चले आएं?अच्छा चलिए आपके दोस्त को लेने स्टेशन जाना है,रामखिलावन बोला।।
अच्छा! ठीक है चलो,सत्यसुन्दर बोला।।
और तीनो डाकबँगले की ओर चल पड़े,दीनू डाक बंगले के भीतर चला गया,रखमखिलावन और सत्यसुन्दर ताँगें में बैठकर स्टेशन की ओर निकल गए।।
दोनों प्लेटफार्म में पड़ी बेंच पर बैठकर रेलगाड़ी का इंतज़ार करने लगे,कुछ देर इंतज़ार करने के बाद रेलगाड़ी भी आ गई,रेलगाड़ी से मदन उतरा,उसके पास ज्यादा सामान नहीं था केवल एक सूटकेस था इसलिए कुली की जरूरत नहीं पड़ी,प्लेटफार्म पर काफ़ी अँधेरा था,केवल दो ही तीन लैम्पपोस्ट जल रहे थे,रामखिलावन ने जैसे ही मदन का चेहरा रोशनी में देखा तो बोल पड़ा___
गजेन्द्र..... गजेन्द्र प्रताप सिंह.....!!
ये क्या ?बाबा! उस दिन मुझे देखकर कह रहे थे,रणजीत सिंह..... और आज मदन को देखकर कह रहे हो गजेन्द्रप्रताप सिंह..... आखिर ये माज़रा क्या है?सत्यसुन्दर ने पूछा।।।
कुछ नहीं बाबू जी! बस ऐसे ही मुँह से निकल गया,रामखिलावन बोला।।
अच्छा! ठीक है,चलिए ताँगें में बैठते हैं,सत्यसुन्दर बोला।।
तीनों ताँगें में बैठे,ताँगा स्टेशन से काफी दूरी तय कर चुका था,रात का अँधेरा और सुनसान जंगल,फिर से वही लड़की के गाने की आव़ाज सुनाई दी____
रामखिलावन बोला ___
इस पर ध्यान मत दीजिए____
ताँगा अँधेरें को चीरते हुए आगें को बढ़ा चला जा रहा था,चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा,रोशनी थी तो बस,ताँगे में लटकी लालटेन की।।
तभी अचानक एक सफेद लम्बा हाथ आया रामखिलावन के ताँगें के सामने से आया और उसने मदन को गर्दन से पकड़कर ताँगें के बाहर पटक दिया,जब तक सब कुछ समझ पाते वो हाथ अचानक राख बनकर हवा के साथ उड़ गया....
मदन को जमीन पर गिरा हुआ देखकर,रामखिलावन और सत्यसुन्दर ताँगें से उतरे और भागकर मदन के नज़दीक जाकर उसे उठाया,मदन से अकेले उठा नहीं जा रहा था,उसकी कमर में कुछ ज्यादा ही चोट आईं थीं,तीनों ताँगें में बैठे और डाकबँगले की ओर चल दिए,डाकबँगले पहुँचकर रामखिलावन और सत्यसुन्दर ने मदन को ताँगें से उतारा , सावधानी से कमरें तक ले गए और बिस्तर पर लिटा दिया।।
रामखिलावन ने दीनू को आवाज देकर कहा कि जरा बसंती बिटिया से कह दो कि सरसों के तेल में दो चार लहसुन की कलियाँ डालकर गरम कर देगी,बाबूजी को कमर में चोट आई है,मालिश हो जाएगीं तो आराम लग जाएगा।।
क्या हुआ ?काका! चोट कैसे लगी,दीनू ने पूछा।।
पहले तुम तेल गरमकर के लाओं,बाद में सारी बात बताता हूँ,रामखिलावन बोला।।
अच्छा,ठीक है,अभी बसंती से तेल गरम करने को कहता हूँ और इतना कहकर दीनू चला गया।।
कुछ देर में दीनू तेल लेकर कमरें में पहुँचा तो देखा कि मदन दर्द से कराह रहा है,दीनू मदन के नज़दीक गया और बोला बाबूजी___
बाबूजी! पेट के बल लेट जाइएं,मैं मालिश कर देता हूँ।।।
मदन को सहारा देकर रामखिलावन और सत्यसुन्दर ने पेट के बल लिटा दिया और दीनू मालिश करने लगा,थोड़ी देर बाद मदन बोला कि अब ठीक लग रहा है।।
तभी सत्यसुन्दर ने रामखिलावन से पूछा____
बाबा! तुम बता सकते हो आखिर वो क्या था?वह़म तो नहीं हो सकता क्योंकि उस हाथ को तो हम दोनों ने भी देखा था।।
बस,बाबू जी! इतना ही कह सकता हूँ कि गाँववाले सच कहते हैं कि उस इलाके मे भूत रहते हैं,रामखिलावन बोला।।
रामखिलावन ने बात पलटने के लिए दीनू से कहा कि जाओं चाय ले आओं और दीनू चाय लेने चला गया,सबने चाय पी,मदन बोला ____
अब सोऊँगा यार! बहुत नींद आ रही है,थक गया हूँ।
रामखिलावन बोला___
ठीक है बाबूजी! आपलोग आराम करों,मैं जाता हूँ,सुबह आऊँगा हाल पूछने और साथ में एक जड़ीबूटी भी लेकर आऊँगा,उसे पानी में उबालकर पी लेगें तो आपका दर्द यूँ दूर हो जाएगा।।
ठीक है बाबा! सुबह मिलते हैं,सत्यसुन्दर बोला।।
दरवाज़ा ठीक से बंद कर लीजिए और इतना कहकर रामखिलावन चला गया।।
सत्यसुन्दर उठा, दरवाज़ा बंद किया,दोनों ने थोड़ी देर बातें की और सो गए।।
सुबह हुई,लगभग नौ बजे रामखिलावन डाकबँगले का गेट खोलकर भीतर दाख़िल हुआ,दीनू बाहर ही था और बगीचें में गुड़ाई निराई कर रहा था,उसने काफी़ सब्जियाँ बो रखी थीं बगीचें में,ज्यादातर उन्हीं सब्जियों का इस्तेमाल होता था खानें में,बाहर की हाट से सब्जियाँ कम ही लेने जाना पड़ता था और वैसे भी हाट हफ्ते में एक बार लगती थी ज्यादा लाकर रखो तो सब्जियाँ बासी हो जातीं थीं।।
अरे, काका! तुम आ गए,दीनू ने रामखिलावन को देखते ही कहा।।
हाँ,ये जड़ीबूटी लाया था बाबू जी के लिए,बसंती से कहना कि दिन में दो बार दे देंगी पानी में उबालकर,रामखिलावन बोला।।
ठीक है काका!दीनू बोला।।
बाबू जी जाग गए क्या? रखमखिलावन ने पूछा।।
ना! अभी तो ना जागें,दीनू ने जवाब दिया।।
ठीक है तो मैं अभी जगाए देता हूँ,तुम बसंती से चाय तैयार करने को बोलो,रामखिलावन बोला।।
ठीक है काका! इतना कहकर दीनू भीतर चला गया और रामखिलावन ने कमरें के दरवाज़े पर दस्तक देकर सत्यसुन्दर को जगा दिया।।
सबने चाय पी और सत्यसुन्दर तैयार होने चला गया,सत्यसुन्दर ने तैयार होकर मदन से कहा___
मैं तो दफ्तर जाऊँगा,तू यही आराम करना।।
नहीं,यार मैं भी फटाफट तैयार हो जाता हूँ,यहाँ अकेले क्या करूँगा,मदन बोला।।
तुझे चोट लगी है,तू यही आराम कर,सत्यसुन्दर बोला।।
नहीं,मैं भी चलूँगा,बस तैयार होकर अभी आया,मदन बोला।।
ठीक है जैसे तेरी मर्जी,सत्यसुन्दर बोला।।
और खाना खाकर दोनों दफ्तर को निकल गए,सत्यसुन्दर ने जंगल में मदन को कई तरह के पेड़ दिखाए जोकि मदन ने शहर में कभी भी नहीं देखें थे,अब मदन का दर्द भी ठीक था,लगता था कि रामखिलावन की जड़ीबूटी से आराम लग गया था।।
दोनों दिनभर जंगल में घूमें तरह तरह के फल खाएं,झरनें का पानी पिया,तरह तरह पंक्षी भी देखे,मदन को वो जगह बहुत भा गई,उसने सत्यसुन्दर से कहा____
यार! कितनी सुन्दर जगह रह रहा है तू! मेरा तो यहाँ एक ही दिन में मन लग गया,कितनी शाँति है यहाँ,ताजी हवा,खुला वातावरण,सच! मैने इतना अच्छा कभी भी महसूस नहीं किया,मदन बोला।।
इसलिए तो बुलाया था तुझे यहाँ,सत्यसुन्दर बोला।।
लेकिन तू तो कह रहा था कि कोई जरूरी बात बतानी हैं,मदन ने कहा।।
हाँ! बतानी तो हैं,सत्यसुन्दर बोला।।
तो बोल ना! क्या बात है!? मदन ने पूछा।।
वो क्या है ना यार! कैसे बताऊँ....सत्यसुन्दर बोला।।
यार! तू तो लड़कियों से भी गया गुजरा है,ऐसे शरमा रहा जैसे माँ बनने वाला हो,मदन ने गुस्से से कहा।।
वो क्या है ना यार! मुझे मौहब्बत हो गई है,सत्यसुन्दर बोला।।
ग़जब यार! तूने तो किला फ़तेह कर लिया,कौन है वो? जरा हम भी तो सुनें,मदने ने चुटकी लेते हुए कहा।।
उसका नाम फाल्गुनी है,सत्यसुन्दर बोला।।
तो चल मिलने चलते हैं,मैं भी तो देखूँ कि भाभी कैसी दिखती है,मदन ने कहा।।
अभी नहीं,रात को ले चलूँगा,वो मुझसे मिलने रात को ही आती है,सत्यसुन्दर बोला।।
अज़ीब बात है,रात को आती है,ऐसा क्यों?मदन ने पूछा।।
वो दिन को नहीं आ सकती,उसे बहुत से काम रहते हैं,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है भाई !तो रात को मिलवा देना,मदन बोला।।
हाँ,यार! जरूर,आधी रात को तैयार रहना,सत्यसुन्दर बोला।।
रात को दोनों नें खाना खाकर,कुछ इधर उधर की बातें की और सो गए,क़रीब बारह बज़े के बाद सत्यसुन्दर ने मदन को जगाया और बोला चलो,तुम्हें उससे मिलाकर लाता हूँ और दोनों ने धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला,गेट के पास पहुँचे,सत्यसुन्दर बोला गेट मत खोलो नहीं तो दीनू गेट के खोलने की आवाज सुनकर जाग जाएगा और हजार तरह के सवाल पूछेगा,वैसे भी बाबा ने रात को वहाँ जाने से मना किया है।।
मदन बोला ठीक है,तो चलो फिर गेट को फाँदकर चलते हैं और दोनों गेट फाँदकर फाल्गुनी से मिलने चल दिए,दोनों मोतीमहल पहुँचे और वहाँ के कुएं के पास वाले टीले पर बैठकर फाल्गुनी का इंतज़ार करने लगें,कुआँ पीछे था और वो लोग आगे की ओर बैठे थे,बहुत देर हो गई लेकिन फाल्गुनी नहीं आई।।
तभी अचानक उस कुएँ में से एक लम्बा सा हाथ निकाला और उसने फिर से पीछे से मदन की गरदन को दबोचा,जब तक सत्यसुन्दर कुछ कर पाता वो हाथ मदन को कुएँ की ओर घसीटे लिए चला जा रहा था,सत्यसुन्दर ये देखकर मदन के पीछे पीछे भागा और उसका पैर पकड़ लिया,वो हाथ लेकिन तब भी नहीं रूका,मदन जोर जोर से अपने हाथ पैर हिलाकर मदद माँग रहा था क्योंकि उसके गले से आवाज़ निकल ही नहीं रही थी।।
अब सत्यसुन्दर को कोई रास्ता नहीं दिख रहा था,मदन को बचाने का तो उसने जोर जोर से हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया,हनुमान चालीसा सुनकर वो हाथ कुएँ में समा गया,जैसे तैसे मदन की जान बची और दोनों डर के मारे काँप रहे थे।।
सत्यसुन्दर बोला___
भाई! तेरे ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
ना जाने क्यों? मुझे भी नहीं पता ,मदन बोला।।
ऐसा करते हैं,तू फाल्गुनी से बाद में मिलना,अभी यहाँ से चलते हैं,सत्यसुन्दर बोला।।
हाँ,यार ! चल,और मैं तो सोच रहा हूँ कि कल रात की रेलगाड़ी से वापस चला जाऊँ,मदन बोला।।
हाँ,यार! मै भी यही कहने वाला था,तेरी जान को बार बार खतरें में नहीं डाल सकता,सत्यसुन्दर बोला।।
और दोनों बातें करते हुए वापस डाँक बँगले चले आएं और आकर बिस्तर पर लेट तो गए लेकिन दोनों को डर के मारे नींद नहीं आ रही थी।।
तो दोनों बातें करने लगें,अब बातों ही बातों में तय हो चुका था कि मदन दूसरे दिन रात को अपने शहर के निकल जाएगा,काफ़ी देर के बाद दोनों को नींद आई।।
सुबह हुई,सत्यसुन्दर ने दीनू से कहा कि____
बाबा से कहना कि रात को ताँगा लेकर आ जाएंगे,मदन रात की गाडी़ से वापस जाएगा।।
इतनी जल्दी! आपने तो कहा था कि वें कुछ दिन ठहर कर जाएंगे,दीनू बोला।।
हाँ,उसे कुछ जुरूरी काम याद आ गया,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है तो दोपहर में काका को संदेशा पहुँचा आऊँगा,दीनू बोला।।
उस दिन मदन ,सत्यसुन्दर के साथ दफ्तर ना गया,वो दिनभर कमरें मे रहा और शाम को सत्यसुन्दर के लौटने के बाद उसने अपने जाने की तैयारी बना ली,रेलगाड़ी का समय बारह बजे के बाद का था तो सत्यसुन्दर बोला,चलो थोड़़ी देर आराम कर लेते हैं,बाबा तो सही वक्त़ पर आ ही जाएंगे और दोनों आराम करने लगें।।
करीब बारह बजे के थोड़े समय पहले रखमखिलावन ताँगा लेकर आ पहुँचा,गेट खोलकर डाक बँगलें में आया और बोला,चलिए बाबूजी!!
गेट खुलने की आवाज सुनकर दीनू भी बाहर आ गया था।।
मदन बोला___
नींद आ रही है यार!एक प्याला चाय मिल जाती तो नींद दूर हो जाती,
और सत्यसुन्दर ने दीनू से चाय लाने को कहा,कुछ देर मे दीनू चाय लेकर हाजिर हो गया।।
सबने चाय पी तब तक बारह बज गए,दीनू ने सूटकेस उठाया और ताँगें की ओर जाने लगा,मदन भी गेट की ओर बढ़ चला।
और तभी अचानक डाँकबँगलें के पास लगें पेड़ से कोई धम्म से कूदा,ज़ो कि किसी लड़की की आत्मा थी,लम्बे बाल खुले हुए,बिना पुतली की आंखें और गला हुआ सफेद शरीर और उसने फिर से मदन की गरदन दबोची और चीख चीखकर कहने लगी___
गजेन्द्रप्रताप! तुम कहीं नहीं जा सकते...मैं तुम्हारे किए की सज़ा तुम्हें देकर रहूँगी और धीरे धीरे उसके हाथ की पकड़ मदन की गरदन पर मजबूत होने लगी,ये नज़ारा देखकर सब सन्न रह गए।।
सत्यसुन्दर उस आत्मा से बोला___
छोड दो इसे,क्यों इसके पीछे पड़ी हो आखिर तुम कौन हो?
मैं....मैं कमलनयनी हूँ,मैं इसे नहीं छोड़ूगी,बड़े दिनों बाद हाथ लगा है और आज मैं अपना बदला लेकर रहूँगी।।
लेकिन इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा? सत्यसुन्दर ने पूछा।।
तभी बसंती ने बहुत समझदारी से काम लिया और उसके पास गंगाजल से भरा कलश था जल्दबाजी मे उसे वही सूझा और लाकर सारा कलश भर पानी कमलनयनी पर पीछे से उड़ेल दिया,गंगाजल पड़ते ही कमलनयनी ग़ायब हो गई।।
मदन को तैसे तैसे फिर सबने सम्भाला,सत्यसुन्दर ने रामखिलावन से पूछा___
बाबा! आखिर ये क्या माज़रा है? आज तो आपको सब खुलकर बताना होगा कि ये कमलनयनी कौन हैं? और ये केवल मदन के ही पीछे क्यों पड़ी है?
हाँ,बाबूजी! इस रहस्य से आज परदा उठ ही जाना चाहिए,मै आज आपको मोतीमहल की उस भयानक रात की सच्चाई बताता हूँ,जिसे सुनकर आपकी रूह काँप जाएगी और रामखिलावन ने कहानी कहनी शुरु की....

क्रमशः___
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