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जनजीवन - 11

जीवन का क्रम

मेघाच्छादित नील-गगन

गरजते मेघ और तड़कती विद्युत भी

आकाश के अस्तित्व और अस्मिता को

नष्ट नहीं कर पाते,

वायु का प्रवाह

छिन्न-भिन्न कर देता है

मेघों को,

आकाश वहीं रहता है

लुप्त हो जाते हैं मेघ।

ऐसा कोई जीवन नहीं

जिसने झेली न हों

कठिनाइयाँ और परेशानियाँ,

ऐसा कोई धर्म नहीं

जिस पर न हुआ हो प्रहार,

जीवन और धर्म

दोनों अटल हैं।

मानव रखता है

सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टिकोण,

सकारात्मक व्यक्तित्व

कठिनाइयों से संघर्ष कर

चिन्तन और मनन करके

कठिनाइयों को पराजित कर

जीवन को सफल करता है

नकारात्मक व्यक्तित्व

पलायन करता है

समाप्त हो जाता है

जीवन संघर्ष में मानव

विजय, पराजय या मृत्यु पाता है

विजयी व्यक्तित्व

पाता है मान-सम्मान

होता है गौरवान्वित,

पराजित पाता है तिरस्कार

मृत्यु के साथ ही

समाप्त हो जाता है उसका अस्तित्व

नहीं रहता उसका कोई इतिहास।

जीवन का क्रम

चलता जाता है

आज भी चल रहा है

कल भी चलता रहेगा।

वह अटल है

नीले आकाश के समान

कल भी था

आज भी है

और कल भी रहेगा।

धन और धर्म

गरीबी जन्म देती है अभावों को

अभावों में पनपते हैं अपराध।

अत्यधिक अमीरी भी

दुर्गुणो को जन्म देती है

जुआ, सट्टा, व्यभिचार में

कर देती है लिप्त।

हमारे धर्मग्रन्थों में

कहा गया है

धन इतना हो

जिससे पूरी हों हमारी आवश्यकताएं

पर धन का दुरुपयोग न हो

जीवन

परोपकार और जनसेवा से

पूर्ण हो

पाप-पुण्य की तुलना में

पुण्य का पलड़ा भारी हो

तन में पवि़त्रता

और मन में मधुरता हो

हृदय में प्रभु की भक्ति

दर्शन की चाह हो

धर्म-कर्म करते हुए

लीला समाप्त हो,

निर्गमन के बाद

लोग करें हमें याद।

सुख की खोज

मानव सुख की खोज में

मन्दिर मस्जिद और गुरुद्वारे जाता है

साघु-संतों की संगति करता है

पर सुख नहीं मिल पाता है

जब दुख खत्म होगा

तभी सुख की अनुभूति होगी

सुख का कोई रूप नहीं होता

हम उसे महसूस करते हैं

सुख के लिए

सकारात्मक दृष्टिकोण चाहिए

वह होगा तो

सुख भी साथ-साथ होगा।

समय के हस्ताक्षर

समय अपने हस्ताक्षर

खोज रहा है

थका हुआ

बोझिल आँखों से

परिवर्तन को निहार रहा है,

ईमानदारी के दो शब्द

पाने के लिये

अपने ही ईमान को

बेच रहा है,

उसकी व्यथा पर

दुनिया मे कोई

दो आंसू भी नहीं बहा रहा है,

समय की पहचान मानव

समय पर नहीं कर रहा है,

समय आगे बढ़ता जा रहा है

अपनी इसी भूल पर मानव

आज भी पछता रहा है।

भ्रष्टाचार और समाज

पैट्रोल के दाम

तेजी से बढ़ रहे हैं

उससे भी दुगनी गति से

भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।

खाद्य पदार्थों के आयात-निर्यात में

करोड़ों का लेन-देन हो रहा है।

यही आहार

मानव मस्तिष्क को भ्रमित कर

भ्रष्टाचार करा रहा है।

यह ऐसा अचार हो गया है

जिसके बिना भोजन अधूरा है

जिस मानव ने

सभ्यता और संस्कृति का विकास किया

आज वही

भ्रष्टाचार में लिप्त है।

इसे समाप्त किया जा सकता है

हर आदमी सिद्धांतों पर अटल हो जाए

कभी समझौता न करे

भ्रष्टाचार स्वमेव समाप्त हो जाएगा

देश इससे मुक्त होगा

स्वर्णिम भारत का सपना

साकार हो जाएगा।

कुलदीपक

कुलदीपक अपना है

अपना भी सपना है

उसका जीवन

उज्ज्वल हो

प्रभु के प्रति उसमे

श्रद्धा, भक्ति और समर्पण हो

जीवन संगीतमय हो

शान्ति, प्रेम और सद्भाव हो

सेवा, सत्कर्म, सदाचार और सहृदयता से

उसके जीवन का श्रृंगार हो

मान-सम्मान पाकर भी

अभिमान से दूर

सुखमय जीवन और

सेवा में समर्पण

ऐसा कुलदीपक हो

सपना अपना पूरा हो।