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जनजीवन - 5

चिन्ता, चिता और चैतन्य

चिन्ता, चिता और चैतन्य

जीवन के तीन रंग।

चिन्ता जब होगी खत्म

तब होगा जीवन में

आनन्द का शुभारम्भ।

चिन्ता देती है विषाद, दुख और परेशानियां

और देती है

सकारात्मकता मे

अवरोध का अहसास

इससे हममें जागता है चिन्तन।

चिन्ता के कारण पर

धैर्य, साहस और निडरता से करो प्रहार

जिससे होगा इसका संहार।

ऐसा न होने पर

चिन्ता तुम्हें ले जाएगी

चिता की ओर

तुम्हारे अस्तित्व को समाप्त कर देगी।

चिन्ताओं से मुक्ति देगी

कलयुग में सतयुग का आभास

सूर्योदय से सूर्यास्त तक

चैतन्य में जीवन जीने का

हो प्रयास

परम पिता परमेश्वर से

यही है मानव की आस।

भविष्य का निर्माण

अंधेरे को परिवर्तित करना है

प्रकाश में

कठिनाइयो का करना है

समाधान

समय और भाग्य पर है

जिनका विश्वास

निदान है उनके पास

किन रंगों और सपनों में खो गए

सपने हैं कल्पनाओं की महक

इन्हें हकीकत में बदलने के लिये

चाहिए प्रतिभा

यदि हो यह क्षमता

तो चरणों में है सफलता

अंधेरा बदलेगा उजाले में

काली रात की जगह होगा

सुनहरा दिन

जीवन गतिमान होकर

बनेगा एक इतिहास

यही देगा नई पीढ़ी को

जीवन का संदेश

यही बनेगा सफलता का उद्देश्य।

कवि की कथा

मैं हूँ कवि

समाज में हो सकारात्मक परिवर्तन

यही है मेरा चिन्तन, मनन और मन्थन

इसीलिये करता हूँ

काव्य-सृजन

श्रोताओं की वाह-वाही

देती है तृप्ति।

वे कारों में आते

कविता सुनकर

वापिस चले जाते,

मैं भी

सम्मान में मिले

पुष्प गुच्छ छोड़कर

अपनी कविता के साथ

चुपचाप

चल पड़ता हूँ

अपने घर की ओर,

सोचता हूँ

कविता देती है प्रसिद्धि

किन्तु रोटी का

नहीं है प्रबंध,

भूखे पेट

पानी पीकर

तृप्त हो जाता हूँ

और फिर चल पड़ता हूँ

अगले सृजन और

अगली प्रस्तुति के लिये,

यही है दिनचर्या

यही है जीवन

यही है जीवन का आरम्भ

और यही है

जीवन का अन्त।

बुजुर्गो के सपने

वह वृद्ध

अनुभवों की जागीर समेटे

चेहरे पर झुर्रियाँ

जैसे किसी चित्रकार ने

कैनवास पर खींच दी हैं

आड़ी-तिरछी रेखाएं

टिमटिमाते हुए दिए की लौ में

पा रहा है उष्णता का आभास,

वह दुखी और परेशान है

अपनी अवस्था से नहीं , व्यवस्था से,

यह नहीं है , उसके सपनों का देश

वह खो जाता है

मनन और चिन्तन में।

भयमुक्त ईमानदारी की राह

नैतिकता से आच्छादित

सहृदयता, समरसता एवं सद्चरित्र से परिपूर्ण

समाज के सपने देखता था वह

किन्तु विपरीत स्थितियाँ

सोचने पर कर रहीं हैं मजबूर

फिर भी

चेहरे पर है आशा का भाव

परिवर्तन की अपेक्षाएं

सूर्यास्त के साथ ही

वह चल पड़ा

अनन्त की ओर

पर उसकी आशा

आज भी

वातावरण में समाहित है

एक दिन देश में परिवर्तन आएगा

उसका सपना साकार हो जाएगा।

जीवन पथ

हमारा व्यथित हृदय

है वह पथिक

जिसे कर्तव्य-बोध है

पर नजर नहीं आता

सही रास्ता।

आदमी कभी-कभी

सही मार्ग की चाहत में

कर्तव्य-बोध होते हुए भी

हो जाता है

दिग्भ्रमित।

इस भ्रम के आवरण को हटाकर

जीवन को

रात की कालिमा से निकालकर

स्वर्णिम प्रभात की दिशा में

जो व्यक्तित्व को ले जाता है

वही जीवन में

सुखद अनुभूति प्राप्त कर

सफल कहलाता है।

हमें

जीवन-पथ में

इस संकल्प के साथ

समर्पित रहना चाहिए

कि कितनी भी बाधाएं आएं

कभी भी

विचलित या निरुत्साहित न हों।

जब धरती-पुत्र-व्यक्तित्व

पूरी मेहनत

लगन

सच्चाई

और दूरदर्शिता से

संघर्ष करता है

तब वह कभी भी

पराजित नहीं होता,

ऐसी जिजीविषा

सफल जीवन जीने की

कला कहलाती है

और प्रतिकूल समय में

मार्गदर्शन कर

जीवन-दान दे जाती है।