न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - Novels
by Pranava Bharti
in
Hindi Fiction Stories
1 अंतर्राष्ट्रीय -कला-संस्थान के हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट सुनकर सुगंधा की आँखों में पानी छलक आया | विश्वास होने, न होने की मानसिकता में झूलती सुगंधा को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एशिया का एकमात्र कला-संस्थान ...Read Moreलिए इतने बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर सकता है !लेकिन यह सच था, सब कुछ उसके सामने था | संस्थान का वातावरण यूरोपियन शैली में सिमटकर रह गया था यद्ध्यपि वहाँ प्रत्येक राज्य की कला के प्रशिक्षण का संगम था | इस संस्थान में देश-विदेश के युवा कला के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा प्राप्त करने आते थे | यहाँ प्रत्येक
1 अंतर्राष्ट्रीय -कला-संस्थान के हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट सुनकर सुगंधा की आँखों में पानी छलक आया | विश्वास होने, न होने की मानसिकता में झूलती सुगंधा को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एशिया का एकमात्र कला-संस्थान ...Read Moreलिए इतने बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर सकता है !लेकिन यह सच था, सब कुछ उसके सामने था | संस्थान का वातावरण यूरोपियन शैली में सिमटकर रह गया था यद्ध्यपि वहाँ प्रत्येक राज्य की कला के प्रशिक्षण का संगम था | इस संस्थान में देश-विदेश के युवा कला के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा प्राप्त करने आते थे | यहाँ प्रत्येक
2- प्रो. अशोक चटर्जी उन तीन शुरूआती छात्रों में थे जिन तीनों को संस्थान ने 'पास-आउट' होने के बाद संस्थान में फ़ैकल्टी के रूप में बड़े सम्मान के साथ शिक्षण-कार्य के लिए चुना गया था | यहाँ फ़ैकल्टी के ...Read Moreउम्र की कोई सीमा न थी | हाँ, रिटायरमेंट एक फॉर्मेलिटी थी जिसके बाद भी फ़ैकल्टी अपनी इच्छा व स्वास्थ्य के अनुसार काम कर सकती थी | कोई न कोई 'प्रोजेक्ट' चलता ही रहता | कैम्पस में बॉयज़ और गर्ल्स हॉस्टल्स की बिल्डिंग्स के अतिरिक्त फैकल्टीज़ के लिए भी क्वॉर्टर्स बने थे | खेलने-कूदने का लंबा-चौड़ा ग्राउंड, कैंटीन, पीयून्स, ड्राइवर्स
3-- सुगंधा मंच पर बैठी थी लेकिन इस स्थान तक की उसकी यात्रा बहुत कठिन रही थी | यहाँ पर बैठे हुए भी कहीं पीछे के पृष्ठ जैसे उसकी आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति पलटते जा रहे ...Read More| जब वह शुरू-शुरु में संस्थान में आई थी, उसको गिराने की, वहाँ से भगाने की कितनी कोशिश की गई थी | जिसको सोचकर आज भी उसका मन काँप जाता है | कार्यक्रम चल रहा था और सुगंधा न जाने कहाँ थी ? सुगंधा का परिवार उत्तर-प्रदेश के देवबंद नामक कस्बे में रहता था | उसके पिता की तीन प्यारी
4-- माँ से आज्ञा लेकर दोनों मित्र अगले ही दिन साईकिल से देवबंद पहुँचे | वैसे देवबंद जाना उनके लिए कुछ बड़ी बात नहीं थी | दोनों मित्र छठी कक्षा से लेकर दसवीं तक दो-साल तक तो पैदल ही ...Read Moreकभी कोई ट्रक वाले भाई मिल जाते, कभी किसी की साइकिल की ही सवारी मिल जाती लेकिन कैसे भी वे देवबंद पढ़ने आते रहे | कभी जब रास्ते में थकान लगती तो बीच में पड़ती नदी किनारे गहन वृक्ष की छाँहों में घर से बाँधकर दिया गया खाना खाते हुए भविष्य के बारे में चर्चा भी करते लेकिन कोई ऎसी
5-- "क्यों, यहाँ कैसे?"फ़ैक्ट्री के गेट पर खड़े दरबान (गार्ड) के सामने ही रमेश अकड़कर बोला | "हम इंटरव्यू के लिए आए हैं, उस सामने वाली लाइन में खड़े होने जा रहे हैं ---"राकेश ने धीरे से उत्तर दिया ...Read More"भागो यहाँ से, यहाँ तुम जैसे लोगों का इंटरव्यू नहीं होता ---" "हमें बुलाया है सेठ जी ने ---तुमसे हमें कोई काम नहीं है ---" "मैं तो तुम लोगों को घास भी न डालूँ ---" कहकर उसने दोनों को एक हिकारत भरी नज़र से देखा | गेट के अंदर लोगों की लाइन लगी हुई थी, उन्हें वहीं जाना था |
6-- सेठ दामोदर उन दोनों लड़कों को देखकर खुश हो गए | बहुत तमीज़दार व अनुशासित थे, दसवीं पास थे और दोनों की आगे पढ़ने की इच्छा भी थी | यह सुनकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई | तुरंत दोनों ...Read Moreनौकरी पर रख लिया गया, दामोदर जी की इच्छा थी कि उनका भाई आगे पढ़े किन्तु वह दसवीं भी पास नहीं कर पाया था | "यहाँ काम करोगे तो दोनों को प्राइवेट फ़ॉर्म भरवा दूँगा | फ़ैक्ट्री तुम दोनों का सारा खर्चा उठाएगी | उसकी चिंता मत करना, बस काम में ध्यान देना और ---हाँ, पढ़ाई में भी --"उन्होंने युवाओं
7 -- सेठ दामोदर अपने भाई की हरकत से टूट गए थे | किसी प्रकार लेन -देन करके उन्होंने अपने भाई को कोर्ट-कचहरी और जेल जाने से तो बचा लिया किन्तु उनका मन हर समय भयभीत रहता था | ...Read Moreमानसिक रूप से बीमार रहने लगे, धीरे-धीरे उनका शरीर भी कमज़ोर होता जा रहा था लेकिन वे अपने वचन से पीछे नहीं हटे | उन्होंने अमन और राकेश को आगे पढ़ने के लिए सदा प्रोत्साहित किया | अपने भाई को एक टाँग से चलता देखकर वे असहज हो जाते | दो वर्ष बीत गए थे और दोनों दोस्तों ने प्राइवेट
8 -- सुगंधा की आँखों में आँसू भरे हुए थे | वह इस उत्सव के लिए अपने माता-पिता की प्रतीक्षा में न जाने कबसे पलकें बिछाए थी जो अभी तक नहीं पहुँचे थे | सब लोग संस्था व उसके ...Read Moreमें बोले, डॉ. स्मिथ ने उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की व शुभकामनें दीं कि संस्थान इसी प्रकार के लोगों से प्रगति करता रहे | बाद में उसका नाम पुकारा गया, अब उसे मानिद उपाधि व सर्टिफ़िकेट देने के लिए पुकारा जा रहा था जिसके लिए इतना बड़ा उत्सव रखा गया था | उसका चेहरा उतरा हुआ था, उसके सामने एक लाल
9 --- सुगंधा के सामने मेज़ पर उसकी वर्षों की तपस्या थी पापा व परिवार को देखकर उसका मन भर गया था कैसे चिपट गईं थीं उसकी दोनों बहनें उससे और माँ और पापा की ...Read Moreमें पूरे समय नमी तैरती रही थी इतनी थकान के बावजूद उस रात सुगंधा को नींद नहीं आई साधारण से परिवार में जन्म लेकर अमन शर्मा तथा राकेश अपनी ईमानदारी से एक सगग्र-मिल के मालिक बने थे जिसे वो दोनों बखूबी संभाल रहे थे अब रमेश भी उन दोनों से हर सलाह लेता उसको मिलाकर मिल के तीन