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Amaltaas ke phool by Neerja Hemendra | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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अमलतास के फूल by Neerja Hemendra in Hindi
Novels

अमलतास के फूल - Novels

by Neerja Hemendra Matrubharti Verified in Hindi Moral Stories

(29)
  • 16.6k

  • 67.7k

वो एक वामा हैं मोबाइल फोन की घंटी बजी। मैं उठ कर नम्बर देखती हूँ। यह नम्बर चन्दा चाची का है। आज लम्बे अरसे बाद उनका फोन आया है। मैं उत्सुकतावश तीव्र गति से फोन रिसीव करती हूँ। मेरे ...Read Moreकहने के पश्चात् उधर से चन्दा चाची की आवाज आती है, ’’हलौ,....हलो......स्मृति बेटा ? ’’ हाँ, मैं स्मृति बोल रही हूँ। नमस्ते चाची।’’ प्रत्युत्तर में चाची कहती हैं ’’खुश रहो बेटा।’’ मेैं पुनः पूछती हूँ ’‘ कैसी हैं चाची ! सब ठीक तो है ? ’’ हाँ ...हाँ....बेटा! यहाँ सब कुशल मंगल है।’’ चंदा चाची के इन शब्दों से अत्यन्त

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अमलतास के फूल - Novels

अमलतास के फूल - 1
वो एक वामा हैं मोबाइल फोन की घंटी बजी। मैं उठ कर नम्बर देखती हूँ। यह नम्बर चन्दा चाची का है। आज लम्बे अरसे बाद उनका फोन आया है। मैं उत्सुकतावश तीव्र गति से फोन रिसीव करती हूँ। मेरे ...Read Moreकहने के पश्चात् उधर से चन्दा चाची की आवाज आती है, ’’हलौ,....हलो......स्मृति बेटा ? ’’ हाँ, मैं स्मृति बोल रही हूँ। नमस्ते चाची।’’ प्रत्युत्तर में चाची कहती हैं ’’खुश रहो बेटा।’’ मेैं पुनः पूछती हूँ ’‘ कैसी हैं चाची ! सब ठीक तो है ? ’’ हाँ ...हाँ....बेटा! यहाँ सब कुशल मंगल है।’’ चंदा चाची के इन शब्दों से अत्यन्त
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अमलतास के फूल - 2
एक पल फोन की घंटी बजती जा रही थी ......एक......दो........तीसरी बार। घर में मैं अकेली थी, उस पर काॅलेज पहँुचने की शीघ्रता। लपक कर मैं फोन उठाती हूँ। मेरे हलो कहने के साथ उधर सन्नाटा.....पुनः हलो कहने के साथ ...Read Moreसे आवाज आती है......’’.मैम मंै.....मैं समीर! पहचाना ? मैं समीर हूँ।’’ मैं सुन कर पहचानने का प्रयत्न करने लगी। समीर? कौन समीर? समझ नही पा रही हूँ ये कौन समीर है? स्मृतियों पर जोर डालती हूँ किन्तु कुछ समझ में नही आ रहा है। पुनः वही भारी-सी आवाज.....’’मैम आपने नही पहचाना। मंै समीर हूँ।’’ आवाज मेें ठहराव थी। ’’मै आपसे
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अमलतास के फूल - 3
बिब्बो बड़े शहरों को जहाँ बड़े-बड़े बंगले, बिल्ड़िगें, चैड़ी साफ सुथरी सड़कें, माॅल्स,दुकाने, बड़े-बड़े कार्यालयों में कार्य करते अफसरों, बाबुओं व व्यापारियों का समूह बड़ा बनाता है, वहीं शहरों को बड़ा बनाने में यत्र-तत्र अवैध रूप से ...Read Moreझुग्गी-झोंपड़ियों व उनमें बसने वाले लोंगों का भी योगदान कम नहीं है। सही अर्थों में इन तबके के लोग ही बड़े शहरों के निर्माण कत्र्ता हैं। इन अवैध रूप से बसी बस्तियों में शहरों के आस-पास के गाँवों से आकर रहने वाले लोगों में बहुत से कुशल कारीगर हैं जो जीवन यापन के लिये अपनी झोपड़ी के कम स्थान में
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अमलतास के फूल - 4
पथ-प्रर्दशक यह स्थान पहले छोटा-सा कस्बा रहा होगा। समय के साथ विकसित होता हुआ शनःै-शनैः शहर का रूप ले रहा था। यहाँ मिश्रित आबादी है। एक तरफ मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग के साथ ही अत्यन्त निर्धन वर्ग के ...Read Moreहैं, तो दूसरी तरफ नवधनाढ्य वर्ग के लोगों के बड़े-बड़े बंगलेनुमा मकानों से यह कस्बा पटता जा रहा है। इन नवधनाढ्य लोगों में अधिकतर व्यवसायी व नौकरीपेशा हैं। शहर के पूर्वी छोर पर विकसित हो रहे क्षेत्र में अनेक सरकारी कार्यालयों की बिल्डिगें हैं। यह क्षेत्र व्यवस्थित रूप से बसा है। उसे इस शहर में स्थानान्तरित हो कर आये हुए
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अमलतास के फूल - 5
एकाकी नही है जीवन वह उठी और बालकनी की तरफ खुलने वाली खिड़की का पर्दा एक ओर सरका कर खिड़की खोल दी। बाहर से हवा का एक हल्का-सा झोंका कमरे में आया और उसके वस्त्रों, बालों, ...Read Moreअनुभूतियों को स्पर्श करता हुआ कमरे में विद्यमान प्रत्येक वस्तु को स्पर्श करने लगा। लगी। पेपरवेट से दबे कागज़ के पन्ने फड़फड़ाने लगे। हवा में हल्की-सी ठंड़क थी। यह ठंड़क उसे अच्छी लग रही थी। उसने खिड़की यूँ ही खुली छोड़ दी तथा कमरे को व्यवस्थित करने लगी। चीजों को ठीक करते-करते उसकी दृष्टि दीवार घड़ी की तरफ उठी। घड़ी
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अमलतास के फूल - 6
राजकुमारी राजकुमारी तीव्र गति से टेढ़ी-मेंढी पगडंडियों पर चली जा रही थी। चलते-चलते अस्फुट स्वर में वह स्वयं से बातें करती जा रही थी। वह जब कभी किसी परेशानी में घिरती या कोई कार्य- योजना बनाती तो एकान्त में ...Read Moreआप से बातें कर लेती। अपने कार्य की सफलता-असफलता पर मानों स्वंय ही संतुष्ट होने का प्रयास करती। इस प्रकार अपने आप से बातें करना, बड़बड़ाना उसके स्वभाव में घुल-मिल गया था। उत्तर प्रदेश के छोटे-से शहर उन्नाव के पुसू का पुरवा नामक गाँव की रहने वाली राजकुमारी निर्धन परिवार की महिला थी। सामान्य से कुछ लम्बे कद
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अमलतास के फूल - 7
सूर्योदय चाँदनी घर से निकल कर अनमने ढंग से सड़क के किनारे-किनारे चली जा रही थी। वह सामने की बहुमंजिली इमारत में घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चैका इत्यादि का कार्य करती है। प्रतिदिन वह इसी प्रकार बिखरे बाल, ...Read Moreमैले-से कपड़े पहने अनमने ढंग से कार्य पर निकलती है। उसका मन काम पर जाने का नही होता, किन्तु माँ व पिता की डाँट खाने के डर से उसे काम पर जाना पड़ता है। माँ करे भी तो क्या करे ? यह उसकी मजबूरी है। इन अत्याधुनिक बहुमंजिली इमारतों के पीछे आठ-दस झुग्गियों के समूह में उसकी भी एक झुग्गी
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अमलतास के फूल - 8
गीली घास अंकिता के व्याह को पच्चीस वर्ष पूरे होने में बस एक सप्ताह शेष रह गए हैं। आगामी बारह दिसम्बर को उसके ब्याह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ है। निर्मल कितने प्रसन्न हैं। वह अपनी शादी की इस ...Read Moreको स्मरणीय बनाना चाहते हैं। उन्होने इस दिन के लिए कुछ विशेष तैयारियाँ पहले से कर लीं हैं। मसलन, एक भव्य पार्टी, अतिथियों का स्वागत, खाना-पीना, पार्टी के लिए उपयुक्त स्थान इत्यादि। निर्मल एक निजी कम्पनी में वरिष्ठ प्रबन्धक के पद पर कार्यरत हैं। उम्र पचास वर्ष के आस-पास। बालों में यत्र-तत्र बिखरी सफेदी तथा तथा आँखों पर सुनहरे फ्रेम
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अमलतास के फूल - 9
एक शाम और वह पेन्टिंग आठ वर्ष पूरे हो गये हैं, इस पेन्टिंग को दीवार से चिपके हुए। इन आठ वर्षों में एक भी शाम ऐसी न गुज़री होगी, जब इस पेन्टिंग ने उसके समक्ष ज़िन्दगी ...Read Moreसम्बन्धित कोई ज्वलन्त प्रश्न न खड़ा किया हो। उसे भलि-भाँति याद है सावन ने दूसरी मुलाकात में अपने हाथों से बनाये हुए अनेक खूबसूरत चित्रों में से एक खूबसूरत-सा यह चित्र उसे दिया था। वैसे सावन से उसकी वह दूसरी नही पहली मुलाकात ही थी। पहली बार उन्हांेने एक दूसरे को देखा भर था किसी अजनबी की भाँति। उसे स्मरण
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अमलतास के फूल - 10
वह है मेरे फ्लैट के सामने वाले फ्लैट से आज अचानक रोशनदान से छन कर प्रकाश बाहर आ रहा था। एक वर्ष से बन्द पड़े उस मकान में शायद कोई रहने आ गया है। रोशनदान से छन ...Read Moreआती प्रकाश की किरणों को देख कर मेरे हृदय मे प्रसन्नता के साथ ही साथ आगन्तुक के प्रति उत्सुकता के भाव भी जागृत होने लगे। इसका कारण कदाचित् यह होगा कि इस शहर में आये हुए मुझे एक वर्ष से कुछ ही अधिक हुए हैं। मैं पति के स्थानान्तरण के पश्चात् प्रथम बार दिल्ली से लखनऊ आयी थी तो मन
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अमलतास के फूल - 11
टूटते पंख वह पूर्वी उत्तर प्रदेश का पच्चीस-तीस टूटी-फूटी झोंपड़ियों वाला छोटा-सा गाँव था। उस छोटे-से गाँव में पक्के मकान के नाम पर मुखिया जी का ही घर था, जो आधा कच्चा, आधा पक्का था। राम प्रसाद ...Read Moreसब गाँव में परसादी के नाम से बुलाते हैं, पसीने से लथ-पथ, पुरानी-सी धोती- कुर्ता पहने, सिर को अंगोेछे से ढके अपने बेटे देशराज का हाथ पकड़े खेतों के बीच बनी टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से होता हुआ चला जा रहा था। वह प्रतिदिन लगभग तीन किमी0 दूर स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय में देशराज को छोड़ने जाता हैं।
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अमलतास के फूल - 12
राहें और भी हैं वह तीव्र कदमों से कार्यालय की ओर बढ़ती जा रही थी। घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ ही साथ उसे कार्यालय भी समय पर पहुचना है। यदि वह अकेली होती तो ...Read Moreलिए खाने-पीने की व्यवस्था कहीं पर भी कर लेती। कुछ भी रूखा-सूखा खा कर जीवित रह लेती, किन्तु घर में माँ-पिता जी हैं। उनके लिए सभी कुछ करना है। एक तो वृद्ध शरीर ऊपर से उम्र जनित बीमारियाँ। उनके खाने पीने की अलग से व्यवस्था कर तथा दवा इत्यादि रख कर उन चीजों के विषय में उन्हे समझा कर आने
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अमलतास के फूल - 13
ख़्वाहिशें ’’ रसीदन बुआ आ गयीं..........रसीदन बुआ आ गयीं......’’ कह कर मारिया व तरन्नुम घर के मुख्य गेट से घर के अन्दर की ओर भागीं। घर में उनकी अम्मी फहमीदा रसोई में व्यस्त थीं। लड़कियों के ...Read Moreस्वर सुन कर डाँटते हुए बोलीं, ’’ कमबख्तों इतना क्यों चिल्ला रही हो? क्या हुआ? मारिया व तरन्नुम ने चहकते हुए बताया कि, रसीदन बुआ आ गयीं हैं। ’’ अभी वह अपनी अम्मी को इतना ही बता पायी थीं कि रसीदन बुआ घर के आँगन का दालान पार कर के सीधे उनके घर के आँगन में दाखिल हो चुकी थीं।
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अमलतास के फूल - 14
अनुकरणीय दरवाजे की घंटी बजी। मैं समझ गयी कि वो होगी। वह प्रतिदिन ठीक इसी समय आती है। न कभी शीध्र न कभी विलम्ब। मैंने दरवाजा खोला। मेरा अनुमान हमेशा की भाँति सही था। दरवाजे पर ...Read Moreखड़ी थी। मेरी ओर देखकर एक हल्की-सी मुस्कराहट व अभिवादन के साथ वह अन्दर हाॅल में आ कर वह फर्श पर बैठ गयी तथा दुपट्टे से माथे पर छलछला आयीं पसीने की बूँदों को पोंछने लगी। उसे मेरे यहाँ कार्य करते हुए दो सप्ताह ही हुए हैं किन्तु उसकी कार्यकुशलता देख कर ऐसा लगता है, जैसे उसे काम करते हुए
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अमलतास के फूल - 15 - अंतिम भाग
उसके बाद उसकी समझ में कुछ नही आ रहा है कि वह क्या कर,े क्या न करे, कहाँ जाए? ऐसी अनुभूति हो रही है जैसे अमावस की रात हो, विस्तृत घना जंगल हो, दूर-दूर तक घुप अँघेरे ...Read Moreअतिरिक्त कुछ भी दृश्य न हो। वह अँधेरे में लक्ष्यहीन दिशा की तरफ बढ़ती चली जा रही है। उसके नेत्र अरसे से एक टिमटिमाते हुए दीये की लौ के लिए तरस गये हैं। आज ही दीदी का फोन आया है, पूछ रही थीं, ’’नीना कैसी हो? ठीक तो हो? अपना ध्यान रखना। चिन्ता न करना आदि.....आदि....।’’ उन्होने जितनी सरलता
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