पलायन - Novels
by Kishanlal Sharma
in
Hindi Moral Stories
उसका मन अजीब सा हो रहा था।दिल उदास था।मन मे एक के बाद एक उटपटांग ख्याल आ रहे थे।दिन भर निठल्ला इधर उधर घूमने के बाद वह घर लौटा था।कमरे में आते ही उसे सालू की याद ...Read Moreलगी
सालू आज सुबह दिल्ली चली गयी थी।पिछले काफी दिनों से रमेश सालू को दिल्ली भेजने का आग्रह कर रहा था।वह सालू के बिना नही रह सकता था।इसलिए उसके आग्रह को टालता आ रहा था।
कल रमेश स्वंय आ पहुंचा।उसकी शादी को छ महीने हो चुके थे।छ महीने से सालू मायके नही गयी थी।फोन पर तो वह कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता था।लेकिन रमेश खुद ही अपनी बहन कक लेने आ गया।तब कोई बहाना बनाते हुए नही बना।वह एक सप्ताह की कहकर उसे ले गया।उसने सालू को रोकना चाहा तो वह रोने लगी।औरत के आंसू मर्द की कमजोरी होते है।उसे भी निशा के आंसुओं से हार माननी पड़ी।एक सप्ताह में वापस छोड़ जाने का वादा करके रमेश अपनी बहन को साथ ले गया था।
उसका मन अजीब सा हो रहा था।दिल उदास था।मन मे एक के बाद एक उटपटांग ख्याल आ रहे थे।दिन भर निठल्ला इधर उधर घूमने के बाद वह घर लौटा था।कमरे में आते ही उसे सालू की याद आने लगी ...Read Moreआज सुबह दिल्ली चली गयी थी।पिछले काफी दिनों से रमेश सालू को दिल्ली भेजने का आग्रह कर रहा था।वह सालू के बिना नही रह सकता था।इसलिए उसके आग्रह को टालता आ रहा था। कल रमेश स्वंय आ पहुंचा।उसकी शादी को छ महीने हो चुके थे।छ महीने से सालू मायके नही गयी थी।फोन पर तो वह कोई न कोई बहाना बनाकर
और उनके झगड़े में वह बीच बचाव करने जाने लगा।।औरराम कुमार ड्यूटी पर गया हुआ था। खाना खाने के बाद वह घर लौटा तो विभा के घर का दरवाजा खुला देखकर वह अंदर चला गया।विभा पलंग पर ...Read Moreरही थी।कुछ देर तक वह उसे देखता रहा।फिर वह उसके बगल में लेट गया।रात का सन्नाटा चारो तरफ पसरा पड़ा था।वातावरण शांत खामोश।दूर तक कोई। आवाज शोर नही।कभी कभी किसी कुत्ते के भोंकने की आवाज जरूर वातावरण की खामोशी को चीर कर दूर तक चली जाती थी।रात के एकांत में एक औरत और एक मर्द।वह चुपचाप विभा के बगल में लेटा रहा।कोई
फुटपाथ पर चल रहा था।चौराहे पर आकर वह रुका।दो रास्ते थे.गोमती नगर के एक लंबा दूसरा छोटा।उसने छोटा रास्ता चुना।इस रास्ते मे मीट की दुकानें पड़ती थी।दिन में इधर से निकलते हुए मुँह पर कपड़ा रखना पड़ता था।लेकिन रात ...Read Moreदुकाने बन्द हो चुकी थी।सड़क पर चलने के बाद उसने तंग गली वाला रास्ता पकड़ा था।तंग गली में अंधेरा था।ठंड की वजह से लोग अपने अपने घरों में दुबके पड़े थे।किसी मकान की खिड़की या दरवाजे की झिर्री से प्रकाश निकलकर गली में आड़ी तिरछी रेखा बना रहा था।और धीरे धीरे चलकर वह गली के नुक्कड़ पर आ गया।वह रुका।
"क्या करोगे नाम जानकर""जिसके साथ सोना हो उसका नाम तो पता होना चाहिए""शबनम,"हल्की सी मुस्कराहट उसके होठो पर छलकी थी।"बुरा न मानो तो एक बात---"क्या?'"कब से यह पेशा कर रही हो?""खानदानी पेशा है।लेकिन जब से कॉलेज की लड़कियां भी ...Read Moreधंधे में आने लगी।इधर मन्दा हो गया है।आज कल कोई कोई रात तो बिल्कुल खाली चली जाती है।""अकेली हो?""पति है पर निकम्मा तभी तो यह धंधा करती हूँ।कमाता कुछ नही।लेकिन दारू रोज चाहिए।ग्राहकों के साथ सोओ।फिर निठल्ले पति से भी शरीर नुचवाओ।"वह उससे बाते कर रहा था।तभी एक लड़के ने कमरे में प्रवेश किया था।वह उस लड़के से बोली,"दारू मेज