Yah Kaisi Vidambana Hai - 3 in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | यह कैसी विडम्बना है - भाग ३

यह कैसी विडम्बना है - भाग ३

वैभव शांत बैठा हुआ संध्या के गुस्से को देख रहा था। वह समझ रहा था कि संध्या का यह गुस्सा बिल्कुल जायज़ है। वह सोच रहा था कि उसका गुस्सा थोड़ा शांत हो जाए तभी उससे बात करना ठीक रहेगा।

उसने कहा, "संध्या प्लीज़ नाराज़ मत हो। मुझे तुम्हें पहले ही सब बता देना चाहिए था लेकिन अब मैं तुम्हें सब कुछ सच-सच बता दूँगा। बस पहले तुम शांत हो जाओ तुम्हारी नाराज़ी मुझे शर्मिंदा कर रही है। मेरा यक़ीन मानो मैं तुम्हें सब बताऊँगा, बस मुझे विश्वासघाती मत समझना।"

संध्या नाराज़ होकर रजाई से मुँह ढक कर दूसरी तरफ़ करवट करके लेट गई। उसकी आँखों से आँसू बहते ही जा रहे थे। उसे लग रहा था कि उसकी दुनिया उजड़ चुकी है। वह सोच रही थी कि बिना किसी को कुछ भी बताए वह रात को चुपचाप यहाँ से चली जाएगी।

वैभव ने उसे मनाने के लिए अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा, "संध्या प्लीज़ मान जाओ ना।"

संध्या ने एक झटके से दूर होते हुए कहा, "प्लीज़ वैभव मुझे सोने दो, अब हम कल ही बात करेंगे।"

बिस्तर पर चुपचाप लेटे-लेटे वैभव की नींद लग गई। संध्या ने देखा कि वैभव सो गया है उसने तुरंत ही अपना सूटकेस निकाला। उसमें ज़रूरी कुछ थोड़ा-सा सामान रखा और कमरे से बाहर निकल गई। घर से बाहर आँगन में जैसे ही उसने क़दम रखा उसे अपने पाँव भारी लगने लगे मानो वह आँगन से बाहर जाने के लिए तैयार ही ना हों।

अग्नि के समक्ष लिए हुए सात फेरों की ताकत ने संध्या के पैर दहलीज़ के बाहर नहीं जाने दिए । उसे वह सातों वचन याद आ गए जो उन्होंने एक दूसरे को दिए थे। वैभव का प्यार, अपनी सुहाग रात, सब कुछ इन पलों में उसकी आँखों में दृष्टिगोचर हो गए।

वह ख़ुद ही ख़ुद से बात करने लगी। “यह क्या कर रही है संध्या? जीवन साथी है वह तेरा। सात फेरे लिए हैं अग्नि को साक्षी मानकर उसके साथ। क्या इस इम्तिहान की घड़ी में तू मैदान छोड़ कर भाग जाएगी। पढ़ी-लिखी है तू वैभव के कंधे से कंधा मिलाकर मुसीबत का सामना कर सकती है, उससे निपट सकती है। उसे ताकत दे सकती है, हिम्मत दे सकती है और इस घर को रौनक दे सकती है। क्या तू ने वैभव की बात सुनीं? उसकी क्या मजबूरी थी यह जानीं? नहीं! अभी भी बताने में शायद वह डर रहा है। इतना समय हो गया तुझे उसके साथ, क्या उसने कभी भी किसी बात के लिए मना किया? हमेशा इज़्ज़त से पेश आया, कितना ख़्याल रखता है और प्यार तो बेइंतहा करता है। वह एक बहुत ही अच्छा इंसान है। तुझे उसे एक मौका तो देना ही चाहिए। यदि वह करोड़पति होता और व्यवहार खराब होता तब तू क्या करती?” सोचते हुए वह वहीं रुक गई।

“नहीं-नहीं मुझे वैभव का साथ देना चाहिए। उसने मुझे अपनी पत्नी बनाकर मुझ पर भी तो विश्वास किया होगा कि मैं उसका साथ दूँगी। इस पवित्र गठबंधन के सातों वचनों को निभाऊँगी। मैं भी तो वही ग़लती कर रही हूँ, उसे बिना बताए उसका विश्वास तोड़ कर जा रही हूँ। भगवान की यही मर्ज़ी है कि मैं वैभव का साथ दूँ इसीलिए तो यह विवाह हुआ है। माँ भी तो कितना प्यार करती हैं, जान छिड़कती हैं मुझ पर। क्या उन्हें इस तकलीफ़ के समय में धोखा देकर उनका दिल तोड़ कर मैं जा सकती हूँ? इतनी बड़ी ग़लती नहीं-नहीं।”

वह जल्दी से अपने कमरे में वापस चली गई। पलंग के नीचे धीरे से सूटकेस रखकर वह वैभव के पास जाकर लेट गई। उसके माथे का चुंबन लेते हुए उसने पूछा, "वैभव तुम जाग रहे हो ना?" इतना पूछते समय संध्या को वैभव की आँखों के किनारे से आँसू की सूखी हुई रेखा दिखाई दी। जो बह कर शायद अब तक सूख चुकी थी। उसने अपने हाथों से उस रेखा को पोंछते हुए कहा, "नाराज़ हो? मुझे एकदम से गुस्सा आ गया था वैभव, मुझे तुम्हारी बात सुननी चाहिए थी।"

वैभव ने आँखें खोलीं और कहा, “हाँ संध्या जाग रहा हूँ लेकिन शर्मिंदा हूँ, नाराज़ नहीं । तुमसे नज़रें नहीं मिला पाऊँगा, मुझे माफ़ कर दो। मुझे तुम्हें शादी से पहले ही सब कुछ बता देना चाहिए था लेकिन…”

क्रमशः

रत्ना पांडे वडोदरा, (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक

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Ratna Pandey

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O P Pandey

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Nice

Prakash Pandit

Prakash Pandit 1 year ago

Omprakash Pandey

Very interesting story

OM PRAKASH Pandey