Yah Kaisi Vidambana Hai - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

यह कैसी विडम्बना है - भाग ४

“वैभव मैं नाराज़ ज़रूर थी, सूटकेस लेकर जाने के लिए निकल भी पड़ी थी लेकिन तुम्हारे प्यार ने मुझे रोक लिया। जीवन साथी हूँ तुम्हारी, हर क़दम पर तुम्हारा साथ दूँगी, सिर्फ़ तुम मुझे सच्चाई से मिलवा दो।”

“संध्या यह लंबी कहानी है, जिस समय मैं कॉलेज में पढ़ता था तब एक लड़की मुझसे प्यार करने लगी थी, पागल थी वह मेरे लिए। मैं जानता था कि उसके दिल में क्या चल रहा है। दिखने में बहुत ही खूबसूरत और दिमाग़ से भी उतनी ही होशियार। उसे इस बात का बड़ा ही घमंड था। उसे लगता था कि यदि वह किसी को पसंद करेगी तो वह इंसान बहुत ही भाग्यशाली होगा।

एक दिन उसने मुझसे अपने मन की बात कह दी। उसने कहा, वैभव मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम्हारे साथ शादी करना चाहती हूँ।

मेरे दिल में कभी भी उसके लिए ऐसी कोई फीलिंग्स थी ही नहीं। मैंने उसे इंकार कर दिया। वह ये सहन ना कर पाई। मुझे धमकी देते हुए उसने कहा, वैभव तुम्हें यह इंकार बहुत महंगा पड़ेगा, इसकी क़ीमत तो तुम्हें चुकानी ही पड़ेगी। देख लेना, एक दिन तुम ज़रूर पछताओगे। मेरे इंकार को उसने अपमान समझ कर मन ही मन मुझ से दुश्मनी कर ली।

मैंने उस समय उसकी बातों को बचपना समझ कर टाल दिया पर वह उसका बचपना नहीं उसकी ज़िद थी। वह हमारे कॉलेज का आखिरी वर्ष था। जिस दिन मैंने उसे मना किया उसके बाद सिर्फ़ 10 दिन की पढाई ही शेष रह गई थी, उसके बाद छुट्टियाँ थीं और फिर परीक्षा। हमारे परीक्षा के सेंटर भी अलग ही थे, मतलब उसके बाद वह मुझसे मिली ही नहीं।”

“धीरे-धीरे मैं तो सब कुछ भूल गया। समय भी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहा। मुझे पढ़ाने का बहुत शौक था इसलिए मैंने अपने लिए टीचिंग की लाइन पसंद की। मेरा इंटरव्यू बहुत ही अच्छा हुआ और मुझे अपने ही शहर जबलपुर के कॉलेज में नौकरी मिल गई। हॉस्टल की लाइफ के बाद अब अपने परिवार के साथ रहना था इसलिए मैं बहुत ख़ुश था। इसी बीच हमारे रिश्ते की बात भी चलना शुरू हो गई थी। मैं अपने कॉलेज में बहुत ख़ुशी से अपनी टीचिंग में व्यस्त था। एक दिन अचानक मैंने उसी लड़की को मेरे कॉलेज में देखा। मैं हैरान रह गया, वह भी इंटरव्यू देकर यहाँ टीचिंग के लिए आई थी। संध्या मैं नहीं जानता था कि वह मुझसे बदला लेने के लिए ही इस कॉलेज में आई है। वह इतनी ज़िद्दी है और इतना नीचे गिर सकती है, यह बात मेरी समझ से परे थी। ख़ैर वह भी बहुत ही इंटेलिजेंट थी इसलिए उसे भी कोई दिक्कत नहीं हुई। वह भी मेरी ही तरह लेक्चरर बन गई। मेरी और उसकी कभी कोई बातचीत भी नहीं हुई। मुझे देख कर वह अक्सर मुँह फेर कर निकल जाती थी। मैंने भी उससे बात करने की कोशिश नहीं की।”

“इस तरह दो माह गुजर गए। मैं एक दिन स्टाफ़ रूम में अकेला बैठा कुछ पढ़ रहा था। तब वह भी वहाँ आई और मुझे अकेला देखकर उसने तुरंत ही कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। वह मुझसे आकर लिपट गई। मैं घबरा गया और मैंने कहा यह क्या कर रही हो? वह यह सब जानबूझकर अपने प्लान के मुताबिक कर रही थी। कुछ ही पलों में वह पीरियड ख़त्म हो गया। तभी दूसरी सीनियर प्रोफ़ेसर रूम में आईं । दरवाज़ा बंद देखकर उन्होंने खटखटाया, तब वह लड़की मुझे छोड़ो, बचाओ-बचाओ कह कर चिल्लाने लगी। उसने तुरंत ही दरवाज़ा खोल दिया। वह उस प्रोफ़ेसर मैम से लिपट गई और कहने लगी थैंक यू मैम अच्छा हुआ आप समय पर आ गईं वरना…।”

क्रमशः

रत्ना पांडे वडोदरा, (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक