Kaithrin aur Naga Sadhuo ki Rahashymayi Duniya book and story is written by Santosh Srivastav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kaithrin aur Naga Sadhuo ki Rahashymayi Duniya is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - Novels
by Santosh Srivastav
in
Hindi Fiction Stories
मेरे देश के नागा साधुओं को जिनका त्याग, तप और शौर्य इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने सनातन धर्म और देश के रक्षार्थ शस्त्र और शास्त्र एक कमांडो की तरह उठाए।
और खुलते गए द्वार
महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला ....सन 2012 में इलाहाबाद(प्रयागराज) मैं 55 दिन तक चलने वाले महाकुंभ में जाने का इत्तफाक हुआ। दुनिया का अद्भुत अलौकिक नजारा। शाम होते ही मेले में लगी लाइटें जगमगा जैसे आसमान में सितारों की चादर बिछा दी गई हो जैसे 58 वर्ग किलोमीटर के गहने में हीरे जड़ दिए हैं।
करोड़ों की भीड़ में अलग दिखते नागा साधु
मेरे लिए उन्हें देखना, उन पर लिखना मेरी बरसों की चाह का अभूतपूर्व समय था।
मैंने महाकुंभ में बिताए दिनों को नागा साधुओं के अखाड़े में जाना, उनके रहस्यमय जीवन की जानकारी लेना, उनका साक्षात्कार लेना, उनके विषय में बारीक से बारीक जानकारी लेने में ही खर्च किया।
नागा साधुओं पर ऐसा कोई ग्रंथ या पुस्तक मुझे उपलब्ध नहीं हुई जिससे मैं संदर्भ लेती। उपन्यास में नागा साधुओं पर जो कुछ भी मैंने लिखा है वह नागा अखाड़ों से प्रत्यक्ष ली जानकारी के अनुसार है। नागा साधुओं पर लिखना एक चुनौती थी जिसे स्वीकार करते हुए मैंने 2015 से यह उपन्यास लिखना शुरू किया जो 2021 के मार्च में पूरा हुआ। वर्षों की कड़ी मेहनत और नागा साधुओं में मेरी प्रगाढ़ रुचि का परिणाम है यह उपन्यास। इसमें मैंने काल्पनिक कथा भी पिरोई है।
संतोष श्रीवास्तव समर्पण मेरे देश के नागा साधुओं को जिनका त्याग, तप और शौर्य इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने सनातन धर्म और देश के रक्षार्थ शस्त्र और शास्त्र एक कमांडो की तरह उठाए। और खुलते गए द्वार महाकुंभ दुनिया ...Read Moreसबसे बड़ा मेला ....सन 2012 में इलाहाबाद(प्रयागराज) मैं 55 दिन तक चलने वाले महाकुंभ में जाने का इत्तफाक हुआ। दुनिया का अद्भुत अलौकिक नजारा। शाम होते ही मेले में लगी लाइटें जगमगा जैसे आसमान में सितारों की चादर बिछा दी गई हो जैसे 58 वर्ग किलोमीटर के गहने में हीरे जड़ दिए हैं। करोड़ों की भीड़ में अलग दिखते नागा
भाग 2 अंतरिक्ष में न जाने कितने ब्लैक होल हैं। दिखलाई कहाँ देते हैं। नहीं दिखलाई दिया मंगल के मन का ब्लैक होल। जिसमें वह धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। शून्य जैसी स्थिति। हिप्पियों के अड्डे पर अफरा-तफरी मची ...Read Moreकुछ हिप्पी गोवा जा रहे थे, कुछ वाराणसी, कुछ उज्जैन। वह उज्जैन जाने वाले दल में शामिल हो गया। पवन ने उसकी जेब में कुछ नोट रख दिए। दो पैकेट सिगरेट, थोड़ी सी चरस भी- " संभाल कर जाना। चरस रखना गुनाह है। 5 साल की सजा 50 हज़ार जुर्माना। समझे भोलेनाथ। " पवन नहीं जानता था कि संभालने के
भाग 3 नींद नहीं आई। करवटें बदलता रहा। बेचैनी बढ़ती गई। वह बाहर खुले आकाश के नीचे निकल आया। सारी पृथ्वी आकाश के नीचे ही नजर आती है। दूर सप्तर्षि मंडल प्रश्न चिन्ह सा आकाश में विराजमान था। इस ...Read Moreचिन्ह में सात तारे यानी सात नक्षत्र के रूप में सात महान ऋषियों के नाम जगमगा रहे थे। मरीचि, वशिष्ठ, अंगीरसा, अत्री, पुलस्त्य, पुलहा और कृतु। इनके नीचे एक नन्हा सा तारा अरुंधति है। जहाँ सप्तर्षि मंडल है वहीं उत्तर दिशा में सदैव विराजमान रहने वाला ध्रुव नक्षत्र है। बेहद चमकीला और बड़ा। दोनों के बीच सतत बहने वाली आकाश
भाग 4 अगली संध्या कुटिया का फिर वही माहौल। चाय पीते हुए नरोत्तम से रहा नहीं गया। पूछ बैठा -"माता जिज्ञासा बनी हुई है। आप इस वीरान, दुर्गम स्थान में अकेली क्यों और कैसे ?" जानकी देवी कंबल में ...Read Moreचाय के घूंट भर रही थीं। उनकी आँखों में एक लौ सी दिपदिपाई, क्षणांश में बुझ भी गई। लेकिन उन सूनी, सपाट आँखों में अतीत का एक झरोखा सा खुला। झरोखे में प्रवेश करने की नरोत्तम ने कोशिश की। "भोले भंडारी की कृपा ......बड़ा साम्राज्य है हमारा हल्द्वानी में। नाती, पोते, बंगला, गाड़ी, खेत, गाय, बैल सब कुछ। रुद्रपुर में
भाग 5 "एक और पंथ है हमारे समाज में अघोरियों का पंथ। क्या आप उनके बारे में जानती हैं ?"पुरोहित जी ने पूछा। "हाँ मैंने सुना है लेकिन मैं उनके बारे में नहीं जानती। अगर आप कुछ बताएंगे तो ...Read Moreज्ञान में वृद्धि होगी। " उनके बारे में तो आपको अष्टकौशल गिरी अच्छे से बता सकेंगे। " नरोत्तम गिरी ने मुस्कुराते हुए अष्टकौशल गिरी की ओर देखा। "हाँ हाँ क्यों नहीं, हम पहले अघोरी ही थे। " अष्टकौशल गिरी ने चेहरे पर गंभीरता लाते हुए कहा-" सुन सकेंगी माता अघोरियों के जीवन के बारे में। बहुत कठिन और जुगुप्सा भरा