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पेशी नम्बर 68 - Novels
by Laxman gour Gour
in
Hindi Thriller
सिगरेट के एक कश के ऊपर दूसरा कश लेता हुआ, चरित्र का इतना कच्चा की कोई भी लड़की या औरत सुंदर हो या फिर दिखने में ठीक-ठाक उसे अपनी वासना बुझाने के लिए कोई ना कोई चाहिए होता था। वो एक नम्बर का पियक्कड़ भी था तो वहीं उसकी आदतों को कोई देख ले तो कोई उसको पूछे तक नहीं.... लेकिन रुकिए... एक ऐसी कला जो उसके दुर्गुणों को ढंक लेने का काम करती थी। जी हाँ, वो गज़ब का वकील था। इतना की कई वकील उसके सामने केस लड़ने तक से डरते थे क्योंकि आज तक उसे कोई केस हरा नहीं सका था। केस को लड़ने का उसका अंदाज इतना कमाल का था की कोर्ट रूम तालियों की गडगडाहट से गूँज उठता था। उम्र यही कोई पैंतीस साल और वकालत का अनुभव मात्र आठ साल का मगर वो अनुभवी और एक ही ढर्रे से केस लड़ने वाले वकीलों की अपेक्षा में बहुत आगे था।लेकिन वो कहते हैं ना। इन्सान चाहे जितना कमाल का क्यों ना हो.... जब उसकी जिन्दगी में राजनीति एंट्री करती है तो फिर उसकी जिन्दगी में भूचाल आना तय होता है। कुछ एक लोगों की तो हस्तियां मिटते हुए आपने और हम सब ने देखी होगी। मगर मेरे हिसाब से लगता है कुछ ऐसा ही ऐसा ही हुआ था हमारे युवा वकील साहब हर्षवर्धन सिंह के साथ।
पेशी नंबर सिक्सटी एट (ट्रेलर) सिगरेट के एक कश के ऊपर दूसरा कश लेता हुआ, चरित्र का इतना कच्चा की कोई भी लड़की या औरत सुंदर हो या फिर दिखने में ठीक-ठाक उसे अपनी वासना बुझाने के लिए कोई ...Read Moreकोई चाहिए होता था। वो एक नम्बर का पियक्कड़ भी था तो वहीं उसकी आदतों को कोई देख ले तो कोई उसको पूछे तक नहीं.... लेकिन रुकिए... एक ऐसी कला जो उसके दुर्गुणों को ढंक लेने का काम करती थी। जी हाँ, वो गज़ब का वकील था। इतना की कई वकील उसके सामने केस लड़ने तक से डरते थे क्योंकि
कानून के हाथों की लंबाई और सत्य की जीत के चर्चे अक्सर सुनने को मिलते हैं।ऐसा लोगों का विश्वास न्याय के देवता माननीय जज साहब और न्यायिक मंदिर कोर्ट के विश्वास के कारण ही होता है। मगर जनता के ...Read Moreविश्वास को भ्रष्टाचारी बादलों का ग्रहण ऐसा लगा,कि दूर होने की कोई संभावना ही दिखाई नहीं देती है।कोई भी सरकारी विभाग अछूता नहीं है।लेकिन अमावस्या की रात्रि में उल्का पिंड की रोशनी का एक अलग ही नजारा होता है। इसी तरह इस भ्रष्टाचारी जमाने में उल्कापिंड रूपी रोशनी चमक रही थी,तो केवल एडवोकेट हर्षवर्धन बाबू की।क्योंकि हर्षवर्धन बाबू अपने नाम
- यह लड़ाई केवल एक हरदेव सिंह की नहीं है,न जाने कितने ईमानदार हरदेव सिंह बेईमान और भ्रष्टाचारों की बलि का बकरा बन जाते हैं। मैं उन सभी ईमानदार ऑफिसर की तरफ से....... " अचानक से यशोदा अपनी कुर्सी ...Read Moreखड़ी होती है।पूरा खड़ा होने से पहले ही लड़खड़ा जाति है।और उसका एक हाथ हर्षवर्धन बाबू के सामने रखे पानी के गिलास से टकराता है। गिलास नीचे गिरता है। आधा पानी वकील बाबू की गोद में और आधा फर्श पर बिखर जाता है कांच का गिलास भी टूट कर बिखर जाता है। जितने भी व्यक्ति ऑफिस में मौजूद होते हैं।