Peshi number 68 - (1) books and stories free download online pdf in Hindi

पेशी नम्बर 68 - 1

कानून के हाथों की लंबाई और सत्य की जीत के चर्चे अक्सर सुनने को मिलते हैं।ऐसा लोगों का विश्वास न्याय के देवता माननीय जज साहब और न्यायिक मंदिर कोर्ट के विश्वास के कारण ही होता है। मगर जनता के इस विश्वास को भ्रष्टाचारी बादलों का ग्रहण ऐसा लगा,कि दूर होने की कोई संभावना ही दिखाई नहीं देती है।कोई भी सरकारी विभाग अछूता नहीं है।

लेकिन अमावस्या की रात्रि में उल्का पिंड की रोशनी का एक अलग ही नजारा होता है। इसी तरह इस भ्रष्टाचारी जमाने में उल्कापिंड रूपी रोशनी चमक रही थी,तो केवल एडवोकेट हर्षवर्धन बाबू की।क्योंकि हर्षवर्धन बाबू अपने नाम से नहीं काम से जाने जाते हैं।मजबूर और बेसहारा लोगों के चिराग बन चुके थे। उनके नेक दिल और सच्चाई की छाप राजस्थान के हर व्यक्ति के जुबां पर थी।

हर्षवर्धन बाबू रोज की तरह 8:00 बजे अपने ऑफिस पर आते हैं। उनके असिस्टेंट उनके पहुंचने से पहले ही पहुंचकर ऑफिस की साफ सफाई व रनिंग कार्य पूरे कर लेते हैं।हर्षवर्धन बाबू रोज की तरह अपने ऑफिस की चौखट पर माथा टेकते हैं,और अंदर प्रवेश करते हैं।

हाथ में काले रंग का एक सूटकेस लिए हुए है।शांति भाव से अपनी गर्दन को झुकाते हुए हैं।वहां बैठे हुए हर व्यक्ति के अभिवादन को स्वीकारते है।और अपनी चेयर की तरफ बढ़ते हैं।इतने में उनकी नजर लगभग 13 से 14 साल के बच्चे पर पड़ती है.बाल बिखरे हुए और उदास चेहरा आंखों में नमी लिए हुए बदन पर बड़ा लंबा एक प्रिंटेड शर्ट और और नीचे सिलवटें भरा हुआ पुराना पाजामा, उसके चेहरे के हाव भाव से यह लग रहा था, कि यह बच्चा बहुत लंबा सफर तय करके आया हुआ है। और बुरी तरह थका हुआ है।इसी दौरान हर्षवर्धन बाबू अपने सूटकेस को काउंटर पर रखते हैं, और ऑफिस में लगे हुए मंदिर की तरफ मुंह करके प्रणाम करते हैं। और अपनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं। ऑफिस में सन्नाटा सा छा जाता है। कोई कुछ बोले , उससे पहले ही हर्षवर्धन बाबू काउंटर से पानी का गिलास उठाते हुए दो घूंट पानी की लेते हैं।और बच्चे की तरफ इशारा करते हुए बोलते हैं!

- बेटे आप कहां से आए हो?
( रुदन भरे स्वर में बच्चा )- सर मैं पदमपुर तहसील के विजयपुरा गांव से आया हूं।

- इतना लंबा सफर तय करके यहां पहुंचे हो आपने चाय पानी पिया या नहीं?
- नहीं सर भैया ने मेरे को चाय पिला दी है। (असिस्टेंट महेश की तरफ इशारा करते हुए )
हमारे गांव में ही अपने पड़ोस में एक भैया है,जो यहां आपके जयपुर में पढ़ाई करते हैं।उन्होंने आपके बारे में हमें बताया,और आपके पास या भेजा है।

- अच्छा,अगर बुरा ना मानो तो मैं आपसे एक बात पूछूं?
हल्का सा मुस्कुराते हुए पूछा।
- पूछ लीजिए सर, बातें तो पूछने और बताने की होती है। उसमें बुरा किस बात का मानना?

- आपने इतना लंबा और बड़ा कुर्ता क्यों पहना है?
- सर यह मेरे पापा की निशानी है।

"इमोशनल स्वर में"
- मतलब आपके पापा....
- आप सही सोच रहे हैं। मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है।मेरे पास उनका यह एक कुर्ता ही है।जब भी मैं किसी बड़े आदमी से मिलता हूं,तो यह कुर्ता पहनता हूं।

आश्चर्य से!
- बड़े आदमी से मिलते हो तब......
- जी हां!इसके पहनने से मेरा आत्मविश्वास बढ़ जाता है। मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं इस दुनिया में अकेला हूं।किसी बड़े आदमी से बात कर रहा हूं तो मैं मेरे दिल की बात आसानी से कह पाता हूं।

"अपनी कुर्सी से थोड़ा सा आगे की तरफ झुकते हैं काउंटर पर सामने रखा आर. टी. का डिब्बा उठाते है और उसमें से एक चम्मच पान मसाला मुंह में डालकर डिब्बा वापस रखते हुए थोड़ा और गहराई में चले जाते हैं"

- क्या आप अपने घर में अकेले रहते हो?
- नहीं सर मेरी मम्मा मेरे साथ रहती है।

"हल्के हल्के अंदाज में पान मसाला चबाते हुए दाएं बाएं देखते हैं।इतने में महेश समझ जाता है कि अब उन्हें पीकदान की जरूरत है महेश काउंटर के पास खड़ा ही पैर से पिकदान थोड़ा सा हर्षवर्धन बाबू की तरफ किसका देता है और फाइलों में डॉक्यूमेंट सेट करने में लग जाता है। पीक दानी में पिक थूक कर"

- विजयपुरा से आप अकेले आए हो।

"पास की कुर्सी पर लगभग 32 से 35 साल की महिला पंजाबी टाइप का हल्के रंग का सूट पहने हुए,सिर पर चुन्नी( दुपट्टा) लिए हुए, नजरें झुकाए उदास मन से बैठी हुई थी। गोद में एक प्लास्टिक का लंबी लंबी डोरी का थैला ( बैग ) दोनों हाथ बेग के ऊपर किए हुए,इस तरह बैठी हुई थी ! मानो कोई गहरी सोच में डूबी हुई हो ।"

"पास बैठी महिला की तरफ इशारा करते हुए"

-नहीं सर मेरी मम्मी मेरे साथ आई है।


"अचानक जट्ट से वकील साहब की तरफ देखती है। दोनों हाथ जोड़कर"
-नमस्ते सर, में ही मोहित की मां हूँ।आज से 2 साल पहले आपने सुना हो तो रायगढ़ पुलिस थाने में एक पुलिस कॉन्स्टेबल हरदेव....... हर..
"अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही बेचारी देवकी की आंखों में आंसू आ जाते हैं कुछ क्षण के लिए अपने आंसुओं को संभालने में बिजी हो जाती है "

- एडवोकेट बाबू!महेश, प्लीज एक गिलास पानी प्रोवाइड करवाना।( मोहित और उनकी मां देवकी की तरफ इशारा करते हुए )

"पास में खड़ा महेश अपने काम को बीच में ही छोड़कर पानी की ट्रे उठाता है। वह देवकी की तरफ ट्रे को बढ़ाता हुआ "
- मैम, पानी लीजिए...

"ट्रे से पानी का गिलास उठाती है!दो घुट लेकर वापस ट्रे में रख देती है वह वकील बाबू की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख कर "

- ईमानदार कॉन्स्टेबल हरदेव सिंह जो अपने लिविंग रूम में फांसी के फंदे से झूलते हुए मिले थे, मैं उसी सच्चे सिपाही की बीवी हूँ।

"आश्चर्यचकित होते हुए "
- अच्छा अच्छा तो मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं?

- सर हमे सहायता नहीं हमें न्याय चाहिए।मैं हरदेव सिंह की बीवी होने के नाते बहुत अच्छी तरीके से उन्हें जानती हूं, वह सुसाइड नहीं कर सकते। हमेशा की तरह उसी दिन भी करीब रात को नो बजे हमारी फोन पर बात हुई थी
"फिर से आंखों में आंसू आ जाते है, पोंछते हुए... रुदन भरे स्वर और भारी मन से "
- उनके बोलने में कोई उदासी नहीं थी। ना ही वह परेशान थे।हम से मजाकिया अंदाज में हमेशा की तरह बात की थी।


- कोई ऐसी अंदरूनी बात होगी जो आपको बता ना सके हो!अंदर ही अंदर परेशान हो रहे हो।
- नहीं सर ऐसा नहीं हो सकता।मोहित से भी उन्होंने बात की,और घर परिवार में सब का उन्होंने हाल पूछा। सर मुझे ऐसा दूर -दूर तक नहीं लग रहा था। कि वह मानसिक रूप से परेशान हो।

"फिर से पिक दानी में पीक थूकते है, थोड़ा सा माइंडली प्रेशर और लेते हैं,और काउंटर पर पड़े हुए पेन को अपनी उंगलियों के बीच लेकर घुमाते हुए "


- कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से..........
- ऐसा कदम उठाने के बारे में सोच नहीं सकते। अगर वह किसी परेशानी में होते तो, सर!में उनके बोलने के अंदाज से पता कर सकती थी। वह आज परेशान है । सुसाइड करने की कोई वजह नहीं हो सकती, वह सुसाइड कर ही नहीं सकते।


" अचानक से थोड़ा एक्टिव होते हैं, पैन को अपने कोट की जेब में लगाते हुए,"
- अगर ऐसा है! तो मैं आपको आश्वासन देता हूं, शहीद हरदेव सिंह को न्याय जरूर मिलेगा।
- मोहित के पापा को न्याय दिलाने के लिए मैं जहां भी गई हूं,सर मुझे सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला। मैं थक चुकी हूं,एक बड़ी उम्मीद के साथ आपके पास आई हूं।और आप भी मुझे आश्वासन ही दे रहे हैं।


" एक नजर सामने दीवार पर लगी शहीद भगत सिंह जी की फोटो पर डालते है फिर...."
- नहीं नहीं ! आप यहां से खाली हाथ नहीं जाओगी, मेरा कहने का मतलब यह नहीं है।मैं आपके न्याय के लिए लडूंगा।

" मोहित की तरफ देखती हुए थोड़ी निराशा भरी मुद्रा में"
- मैं यहां नहीं आना चाहती थी मगर मुझे इस मोहित की वजह से आना पड़ा...


"अचानक बीच में महेश अपने काम से ध्यान हटा कर बोल पड़ता है। "
- क्या आप अपने पति को न्याय नहीं दिलाना चाहती?.....

"काफी देर से चुपचाप शांत मुद्रा में बैठा मोहित,महेश के शब्द सुनकर "
- नहीं भैया मम्मा का कहने का यह मतलब नहीं है मम्मा हमेशा कहती है.. यह न्याय शब्द दिखने में जितना छोटा है उतना ही महंगा है न्याय के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है हमारे पास चुकाने को कुछ भी नहीं है।


" इतनी बात पूरी होने से पहले ही हर्षवर्धन बाबू लपक कर बोल पड़ते हैं।"
- नहीं बेटा न्याय कोई कीमत नहीं मांगता,न्याय सिर्फ और सिर्फ संघर्ष मांगता है । न्याय सबको मिलता हमेशा सच्चाई की ही जीत होती है।
- इसकी लगन और मेहनत के कारण ही तो यह लड़ाई आप की चौखट तक पहुंच चुकी है। रात को एक नजदीकी होटल में काम करता है,दिन में कभी- कभी खेतों में मजदूरी करता है। यह घर भी चलाता है।और अपने पापा के लिए लड़ाई भी लड़ना चाहता है।


" पढ़ने- लिखने और खेलने- कूदने की उम्र में मेहनत और मजदूरी कर घर का खर्च उठाना साथ में पढ़ाई करते हुए, अपने पिता के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने वाले बच्चे को देखकर हर किसी का मन विचलित होना स्वाभाविक है।
फिर भी मोहित को हौसला देते हुए "

- बेटा!जिन के जीवन में युद्ध नहीं होता,वह भी बड़े अभागे होते है।
या तो प्रण को तोड़ा होता है या फिर रण से भागे होते है।।

- आपका बहुत-बहुत धन्यवाद हिम्मत देने के लिए मगर, क्या आप इस लड़ाई में हमारा साथ देंग?
क्रमशः ......