द्वारावती - Novels
by Vrajesh Shashikant Dave
in
Hindi Fiction Stories
उस क्षण जो उद्विग्न मन से भरे थे उस में एक था अरबी समुद्र, दूसरा था पिछली रात्रि का चन्द्र और तीसरा था एक युवक।
समुद्र इतना अशांत था कि वह अपने अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहता हो ऐसे ...Read Moreकी तरफ भाग रहा था। वह चाहता था कि वह रिक्त हो जाय। अपने भीतर का सारा खारापन नष्ट कर दें। अत: समुद्र की तरंगें अविरत रूप से किनारे पर आती रहती थी। कुछ तरंगें किनारे को छूकर लौट जाती थी, कुछ तरंगें वहीं स्वयं को समर्पित कर देती थी। समुद्र अशांत था किन्तु उसकी ध्वनि से वह लयबध्ध मधुर संगीत उत्पन्न कर रहा था।
पिछली रात्रि का चंद्रमा ! अपने भीतर कुछ लेकर चल रहा था। वह उतावला था, बावरा था। उसे शीघ्रता थी अस्त हो जाने की, गगन से पलायन हो जाने की। जाने उनके मन में क्या था?
चन्द्र के मन को छोड़ो, मनुष्य स्वयं अपने मन को भी नहीं जान सका। अपने मन में कोई पीड़ा, कोई जिज्ञासा, कोई उत्कंठा लिए एक युवक अरबी समुद्र के सन्मुख बैठा था। उसे ज्ञात नहीं था कि वह यहाँ तक जिस कारण से आ चुका था उस कारण का कोई अर्थ भी था अथवा नहीं।
श्वेत चाँदनी में समुद्र की तरंगे अधिक श्वेत लग रही थी। जैसे वह पानी चन्द्र के लिए कोई दर्पण हो और उस में चन्द्र अपना प्रतिबिंब देख रहा हो।
उस क्षण जो उद्विग्न मन से भरे थे उस में एक था अरबी समुद्र, दूसरा था पिछली रात्रि का चन्द्र और तीसरा था एक युवक। समुद्र इतना अशांत था कि वह अपने अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहता हो ...Read Moreकिनारे की तरफ भाग रहा था। वह चाहता था कि वह रिक्त हो जाय। अपने भीतर का सारा खारापन नष्ट कर दें। अत: समुद्र की तरंगें अविरत रूप से किनारे पर आती रहती थी। कुछ तरंगें किनारे को छूकर लौट जाती थी, कुछ तरंगें वहीं स्वयं को समर्पित कर देती थी। समुद्र अशांत था किन्तु उसकी ध्वनि से वह