प्रतीक्षा - Novels
by Kishanlal Sharma
in
Hindi Moral Stories
जनवरी के महीने की रात।मौसम बेहद ठंडा था।य कोहरे की वजह से बिजली के लट्ठों पर लगे बल्बों का प्रकाश टिमटिमाता नजर आ रहा था।
प्लेटफॉर्म पर कोई आता जाता नजर नही आ रहा था।मुसाफिर लोग ठंड से बचने के ...Read Moreटिन शेड या वेटिंग रूम में दुबके हुए बैठे थे।कुछ यात्री टी स्टाल या ट्रालियों के इर्द गिर्द गर्म चाय की चुस्कियां लेकर ठंड को दूर भगाने का असफल प्रयास कर रहे थे।
स्टेशन एक अनाम वीरान सी खामोशी में डूबा था।दूर तक किसी के बोलने की आवाज सुनाई नही दे रही थी।स्टेशन पर खामोशी थी।लेकिन दायी तरफ बने लोको शेड में लाइनों पर चलते इंजनों का शोर जरूर था।
ठंड के मौसम में पेड़ भी शांत थे।
इतनी ठंड के बावजूद वह फुटओवर ब्रिज के पास खुले में लगी बेंच पर बैठा था।बेंच के पीछे कुछ दूरी पर पीपल का विशाल पेड़ था।बेंच के पास लगे लट्ठे पर लगा बल्ब फ्यूज होने के कारण आस पास अंधेरा था।उसकी ट्रेन आने में एक घण्टे की देरी थी।
पिछले महीने उसकी मुलाकात अकस्मात माया से हो गयी थी।वह रात भी बिल्कुल ऐसी ही थी।वह इसी बेंच पर बैठा ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था।
जनवरी के महीने की रात।मौसम बेहद ठंडा था।य कोहरे की वजह से बिजली के लट्ठों पर लगे बल्बों का प्रकाश टिमटिमाता नजर आ रहा था।प्लेटफॉर्म पर कोई आता जाता नजर नही आ रहा था।मुसाफिर लोग ठंड से बचने के ...Read Moreटिन शेड या वेटिंग रूम में दुबके हुए बैठे थे।कुछ यात्री टी स्टाल या ट्रालियों के इर्द गिर्द गर्म चाय की चुस्कियां लेकर ठंड को दूर भगाने का असफल प्रयास कर रहे थे।स्टेशन एक अनाम वीरान सी खामोशी में डूबा था।दूर तक किसी के बोलने की आवाज सुनाई नही दे रही थी।स्टेशन पर खामोशी थी।लेकिन दायी तरफ बने लोको शेड
उसकी इस आदत की वजह से उसे हर पीरियड में टीचर की डांट खानी पड़ती।पर उस पर इसका कोई ज्यादा असर न पड़ता।वह एकदम फारवर्ड थी।वह किसी से भी नही घबराती थी।लड़को से भी धड़ल्ले से बात करती थी।हंसी ...Read Moreकरती थी।स्कूल के कई लड़को के साथ उसका नाम जुड़ा था।यह उसे बदनाम करने की उन लड़कों की चाल थी।जिन्हें वह घास नही डालती थी।इससे वह जरा भी विचलित नही हुई।न ही उसने अपने स्वभाव या आदत में परिवर्तन किया था।वह भी मन ही मन मे माया को चाहने लगा था।उससे प्यार करने लगा था।उसे अपनी बनाने के सपने देखने
माया का पति रमन चंडीगढ़ में इंजीनियर था।और शादी के बाद माया अपने ससुराल चली गई",सही कह रहे हो।लेकिन वह सब अतीत की बात है।अधूरा सपना। रुंंंधध गले से माया बोली।दुख और अवसाद की रेखाएं उसके चेहरे पर उभर ...Read Moreथी।"कैसे माया।मैं समझा नही,"राज की समझ मे उसकी बात नही आई थी।"शादी होने के बाद में जयपुर से चंडीगढ़ चली गयी थी।शादी के बाद भी माया अपने प्रेमी को नही भूली थी।समाज कज नजरो में रमण उसका पति था।लेकिन माया ने उसे दिल से पति स्वीकार नही किया।संजय उसके पास आने का प्रयास करता रहा।लेकिन माया उससे दूरी बनाए रही।किसी