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प्रतीक्षा (पार्ट 1)

जनवरी के महीने की रात।मौसम बेहद ठंडा था।य कोहरे की वजह से बिजली के लट्ठों पर लगे बल्बों का प्रकाश टिमटिमाता नजर आ रहा था।
प्लेटफॉर्म पर कोई आता जाता नजर नही आ रहा था।मुसाफिर लोग ठंड से बचने के लिए टिन शेड या वेटिंग रूम में दुबके हुए बैठे थे।कुछ यात्री टी स्टाल या ट्रालियों के इर्द गिर्द गर्म चाय की चुस्कियां लेकर ठंड को दूर भगाने का असफल प्रयास कर रहे थे।
स्टेशन एक अनाम वीरान सी खामोशी में डूबा था।दूर तक किसी के बोलने की आवाज सुनाई नही दे रही थी।स्टेशन पर खामोशी थी।लेकिन दायी तरफ बने लोको शेड में लाइनों पर चलते इंजनों का शोर जरूर था।
ठंड के मौसम में पेड़ भी शांत थे।
इतनी ठंड के बावजूद वह फुटओवर ब्रिज के पास खुले में लगी बेंच पर बैठा था।बेंच के पीछे कुछ दूरी पर पीपल का विशाल पेड़ था।बेंच के पास लगे लट्ठे पर लगा बल्ब फ्यूज होने के कारण आस पास अंधेरा था।उसकी ट्रेन आने में एक घण्टे की देरी थी।
पिछले महीने उसकी मुलाकात अकस्मात माया से हो गयी थी।वह रात भी बिल्कुल ऐसी ही थी।वह इसी बेंच पर बैठा ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था।
दिलली मेल प्लेटफॉर्म पर आते ही खोमचे वालो की आवाजों से प्लेटफॉर्म गूंज उठा था।चाय पूड़ी की आवाजें।उसके सामने फर्स्ट क्लास का डिब्बा आकर रुका था।ट्रेन से यात्री चढ़ने और उतरने लगे।वह बेंच पर बैठा हुआ डिब्बे की तरफ देखने लगा।ठंड की वजह से सारे दरवज्र और खिड़कियां बन्द थे।प्लेटफॉर्म के बांयी ओर से उसे एक युवती आती हुई दिखाई दी।उसके कंधे पर बेग लटका हुआ था।वह फर्स्ट क्लास के कोच के पास आकर खड़ी हो गयी।हाथ बढ़ाकर दरवाजा खोलते ही कोच के अंदर जल रहे ब्लाबो का प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ा था।उसके चेहरे को देखते ही वह पहचान गया।उसके होठो पर अनायस उस युवती का नाम उभर आया,"माया।"
वह उस युवती को पहचान गया।वह माया ही थी।
माया कोच में चढ़कर दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि वह उसके पास जा पहुंचा।उसको देखते ही माया उसे पहचान गयी।उसे उम्मीद नही थी कि इतने लंबे अंतराल के बाद भी माया उसे पहचान लेगी
"अरे राज,"दरवाजा बंद करना भुलकरबोली,"तुम यहाँ?"
उसे उम्मीद नहीं थी कि माया से एक दिन इस तरह अचानक मुलाकात हो जाएगी।उन दिनों की यादों पर वर्षो की धूल पड़ चुकी थीं।पर आज वर्षो बाद माया को अपने सामने देखकर यादों का धुंधलापन मिटने लगा था।अतीत की यादों के पन्ने फड़फड़ाकर खुलने लगे।
माया उसके साथ रेलवे स्कूल में पढ़ती थी।उसका भाई रे रेलवे में डॉक्टर था।उसके माता पिता जयपुर में रहते थे।वह भाई के पास रहकर पढ़ रही थी।वह शोख,चंचल और फेशनेबल थी।उसके भाई को अस्पताल के पास ही बंगला मिला हुआ था।जो स्कूल से ज्यादा दूर नहीं था।वह कपड़ो की बड़ी शौकीन थी।जब भी कोई पीरियड खाली होता।वह घर जाकर कपड़े बदल आती।उसकी इस आदत पर सब आश्चर्य करते थे।
माया का रंग सांवला था पर नेंन नक्श सूंदर थे।उसके होठो पर हर समय मुस्कुराहट थिरकती रहती।चिड़िया की तरह हर समय चहकना उसका स्वभाव था।वह चुप नही रह सकती थी।क्लास में भी हर समय बोलती रहती।क्लास में टीचर पढ़ा रहे होते तब वह किताब खोलकर पास बैठी सहेली से बोलती रहती