Akhir wah kaun tha - Season 3 book and story is written by Ratna Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Akhir wah kaun tha - Season 3 is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
आख़िर वह कौन था - सीजन 3 - Novels
by Ratna Pandey
in
Hindi Women Focused
इस कहानी के पहले सीजन में आपने पढ़ा कि सुशीला एक सोलह वर्ष की गरीब मजदूर की बेटी थी। उसकी माँ एक बिल्डिंग पर काम करते समय, गिर कर स्वर्ग सिधार गई थी। पिता तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे। माँ के निधन के बाद एक दिन सुशीला ने जिस बिल्डर के लिए उसकी माँ काम कर रही थी उसे अपनी माँ की जगह काम पर रख लेने के लिए मनाया। बिल्डर ने उसकी दर्द भरी बातें सुनकर उसे काम पर रख लिया। शांता ताई सुशीला की पड़ोसन थी। एक बार शांता ताई कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी विमला की ससुराल गई थी। जब वह लगभग दस बारह दिन में वापस आईं तो उन्होंने महसूस किया कि सुशीला अब उदास रहने लगी है। उन्होंने सुशीला से उदासी का कारण पूछा तो सुशीला ने कहा शांता ताई मुझे माँ की याद आती है। लेकिन कुछ महीनों में ही सुशीला के शरीर में आ रहे बदलाव से शांता ताई को समझ में आ गया कि उसकी उदासी का कारण क्या है। उन्होंने सुशीला से पूछा बिटिया कौन है वह, बता दे तो तेरा ब्याह उसके साथ करा दूंगी।
इस कहानी के पहले सीजन में आपने पढ़ा कि सुशीला एक सोलह वर्ष की गरीब मजदूर की बेटी थी। उसकी माँ एक बिल्डिंग पर काम करते समय, गिर कर स्वर्ग सिधार गई थी। पिता तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके ...Read Moreमाँ के निधन के बाद एक दिन सुशीला ने जिस बिल्डर के लिए उसकी माँ काम कर रही थी उसे अपनी माँ की जगह काम पर रख लेने के लिए मनाया। बिल्डर ने उसकी दर्द भरी बातें सुनकर उसे काम पर रख लिया। शांता ताई सुशीला की पड़ोसन थी। एक बार शांता ताई कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी विमला
उधर सुशीला का बेटा राजा भी मन ही मन दुखी रहता था। पिता के नाम बिना उसे भी जीवन में कठिनाइयों का सामना आए दिन ही करना पड़ता था। कई बार अपमान का सामना भी करना पड़ता था। वह ...Read Moreथा कि अपनी माँ सुशीला से पूछ ले कि आख़िर उसका बाप है कौन? कौन है जो उन्हें इस तरह छोड़ कर चला गया? लेकिन कभी भी उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी; अपनी जीभ खोलने की। सुशीला ने अपना खून पसीना बहा कर अपने बेटे राजा को एक अच्छा जीवन देने का संकल्प लिया था। सुशीला चाहती थी कि
राजा के द्वारा पिता के बारे में पूछते ही सुशीला को ऐसा लगा मानो हवा का एक तूफ़ानी झोंका आकर उसके कानों से टकरा गया है। वह सहम गई, घबरा गई। उस समय ऐसा लग रहा था मानो समय ...Read Moreगया है। एकदम शांति थी, कहीं कोई हलचल नहीं थी। सुशीला की आँखें नीचे और राजा की आँखें टकटकी लगाए सुशीला के चेहरे पर टिकी हुई थीं। अपनी माँ को इस तरह उदास, डरा हुआ देखकर राजा ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, “माँ ऊपर देखो, मेरी तरफ़ देखो माँ।” सुशीला ने अपनी भीगी पलकों को ऊपर उठाया।
राजा के आख़िर क्यों पूछने पर सुशीला ने कहा, “राजा मैं ख़ुद इतनी छोटी थी कि कहाँ जाती, क्या करती? अपने आप को किस-किस से बचाती? यहाँ तो हर गली, हर नुक्कड़ पर भेड़िए ताक लगाए खड़े रहते हैं। ...Read Moreमैं चुपचाप यहीं रह गई। यहाँ तो कम से कम शांता ताई का सहारा था। पहले महीने तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि मेरे गर्भ में तुम्हारा जन्म हो चुका है; लेकिन जब पता चला तब मैंने सोचा …” “क्या सोचा था माँ …?” “मैंने सोचा था क्यों ना इस इंसान के सामने ही मैं तुम्हें जन्म देकर
अपनी माँ की ऐसी हालत देख कर राजा ने उसे पानी पिलाया। आज जब राज़ खुल ही गया था तो सुशीला बरसों से सीने में दफ़न अपने मन के सारे घाव मानो खोल-खोल कर राजा को दिखा रही थी, ...Read Moreरही थी। सुशीला ने कहा, “राजा श्यामा मैडम अपना यह अपमान शायद कभी भी भूल नहीं पाएंगी कि उनके होते हुए भी उनका पति किसी और के साथ जबरदस्ती … सुना है, तलाक ले रही हैं श्यामा मैडम। बच्चे क्या करेंगे बेचारे, पता नहीं? राजा तुम्हें तो भगवान ने ही पिता के प्यार से, उस सुख से वंचित रखा। लेकिन