Veer Savarkar book and story is written by Veer Savarkar in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Veer Savarkar is also popular in Biography in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
वीर सावरकर - Novels
by Veer Savarkar
in
Hindi Biography
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
— श्रीमद्भगवद्गीता
संसार में दो प्रकार के पुरुष होते हैं। एक तो वह जो संसार के पीछे चलते हैं और दूसरे वह जो संसार को अपने पीछे चलाते हैं। पहले प्रकार के सभी मनुष्य संसार के प्रवाह में बह जाते हैं और जिनके जन्म और मरण से उनके कुछ निकट सम्बन्धियों के अतिरिक्त और कोई परिचित नहीं होता। किन्तु दूसरे प्रकार के मनुष्य बिरले ही होते हैं, जो अद्भुत शक्ति के द्वारा संसार को अपने पीछे चलाते हैं। ये महापुरुष होते हैं। इनके जन्म और मरण का समस्त देश और जाति पर प्रभाव पड़ता है।
जब देश में धर्म का ह्रास होने लगता है और चारों ओर अधर्म का साम्राज्य फैलने लगता है तो परमात्मा धर्म की रक्षा के लिये किसी महापुरुप को जन्म दिया करता है।
भारत में जब हिन्दु धर्म का ह्रास होने लगा, हिन्दुपति महाराणा प्रताप का रक्त जब उनकी सन्तानों की धमनियों में मन्द गति से प्रवाहित होने लगा, छत्रपति शिवाजी द्वारा संरक्षित हिन्दु जाति जब अपने धर्म और उद्देश्य को भूलने लगी, विजेता बुन्देलखण्ड-केसरी महाराज छत्रसाल की विजय दुन्दुभि का नाद जब हिन्दुओं के श्रवणपुटों से शान्त हो चुका, गुरु गोबिंद सिंह के आदेश और पांचकक्के जब हिन्दुजाति के मस्तिष्क से लुप्त होने लगे,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।— श्रीमद्भगवद्गीता संसार में दो प्रकार के पुरुष होते हैं। एक तो वह जो संसार के पीछे चलते हैं और दूसरे वह जो संसार को अपने पीछे चलाते हैं। पहले प्रकार के ...Read Moreमनुष्य संसार के प्रवाह में बह जाते हैं और जिनके जन्म और मरण से उनके कुछ निकट सम्बन्धियों के अतिरिक्त और कोई परिचित नहीं होता। किन्तु दूसरे प्रकार के मनुष्य बिरले ही होते हैं, जो अद्भुत शक्ति के द्वारा संसार को अपने पीछे चलाते हैं। ये महापुरुष होते हैं। इनके जन्म और मरण का समस्त देश और जाति पर प्रभाव
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के निवास से पवित्र पंचचटी और दण्डकारण्य के मार्ग में नासिक पड़ता है। यह भी पवित्र तीर्थं माना जाता है। इसी नासिक जिले की पवित्र भूमि में एक छोटा-सा ग्राम भगूर है। यह गांव ...Read Moreसावरकर के कारण महाराष्ट्र राज्य में पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था।इसी ग्राम मे चितपावन ब्राह्मण श्री विनायक दीक्षित रहा करते थे। चितपावन ब्राह्मणो का भी इतिहास बहुत रहस्यमय है। ये विगत दो सौ वर्षो से ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध और भारत कीस्वतन्त्रता के लिये निरन्तर प्रयत्न करते रहे हैं। इसीलिये ब्रिटिश साम्राज्य की आंखो मे चितपावन ब्राह्मण सदा खटकते
बालक सावरकर ने ६ वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्त करना आरम्भ कर दिया। यों तो ये इससे भी पहिले अपने माता-पिता से मौखिक शिक्षा ग्रहण करता रहे। रामायण-महाभारत की कथायें और वीर पुरुषों की गाथायें सुनता रहे किन्तु ...Read Moreसितम्बरसन् १८८९ में इन्होंने भारत में ही गुरुमुख से विद्याध्ययन आरम्भ किया । सातवें वर्ष में बालक का मौजीबन्धन भी हो गया । सावरकर प्रतिदिन अपनी माता जी के चरण स्पर्श और उनसे आज्ञा प्राप्त करके पढ़ने जाया करते थे। एक दिन किसी बात से यह माता जी से रूठ गये इसलिये बिना चरण स्पर्श और आज्ञाप्राप्त किये स्कूल चले
नासिक से सन् १९०१ में सावरकर जी ने मैट्रिक की परीक्षाउत्तीर्ण कर ली । उसी वर्ष आप बीमार भी हो गये। बीमारी के दिनो में आपको चिन्ता हुई कि मैं मैट्रिक से आगे की शिक्षा कैसे प्राप्त करूंगा क्योंकि ...Read Moreपैसा पास नहीं कि कालिज का खर्चं सहन कर सके । इनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर ने कहा कि यदि तुम भाऊराव चिपलूणकर की लड़की से विवाह कर लो तो वे तुम्हारी सारी शिक्षा का व्यय उठा सकते है, फलतः सावरकर जी ने उनकी कन्या से विवाह करना स्वीकार कर लिया और उन्होंने ही इनकी शिक्षा का व्यय उठाया।
श्री सावरकर जी श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा की छात्रवृत्ति द्वाराउच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये बम्बई से 9 जून सन् 1906 को चलकर 2-3 जुलाई को इंगलैण्ड पहुॅचे। जहाज पर भी सावरकर जी ने अपना कार्य जारी रखा। इंगलैण्ड ...Read Moreवाले भारतीय यात्रियों से देश तथा धर्म के विषय में वाद-विवाद करना उनका स्वभाव था। जहाज में आपकी एक बंगाली युवक रमेशदत्त तथा एक पंजाबी युवक हरनामसिंह से विशेष भेंट हुई। हरनामसिंह इंगलैण्ड पहुँचने भी न पाया था कि रास्ते से ही उसका विचार वापिस भारतवर्ष लौटने का हो गया। परन्तुसावरकर जी ने उससे आग्रह किया और अपना उद्देश्य समझाया