Veer Savarkar - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

वीर सावरकर - 10 - हैदराबाद-सत्याग्रह


निजाम हैदराबाद में हिन्दुओं और विशेषकर आर्यसमाजीयो पर दिन-रात अत्याचार किये जाने लगे। हिन्दुओं के यज्ञोपवीत तोड़े जाते थे, हिन्दुओं को मन्दिर और हवन कुण्ड तक बनाने की आज्ञा नहीं थी, कोई हिन्दुओं का जलसा बिना
स्वीकृति के नहीं हो सकता था । यदि कोई हिन्दू नेता बाहर से आता तो उसकी बहुत-बहुत जांच पड़ताल की जाने लगी । मुसलमान गुण्डे सरासर हिन्दुओं को दिन दहाड़े लूटते, डाका मारते और उनका खून तक भी कर डालते तो उनको कोई दण्ड नहीं दिया जाता था । हिन्दुओं में इसकी प्रतिक्रिया होने लगी और यह हैदराबाद का ही नहीं, अपितु अखिल भारतवर्षीय प्रश्न बन गया। प्रत्येक आर्य के हृदय में यही भावना उठने लगी कि हैदराबाद की इस्लामी सरकार आर्यो की अग्नि परीक्षा लेना चाहती है। वर्त्तमान परिस्थिति में वह किसी अन्य प्रकार से आर्यों के साथ समानता, उदारता और न्याय का व्यवहार करने के लिये तैयार नहीं। निजाम राज्य के आर्यों को कैसी-कैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, किस प्रकार से वहां हमारे प्रचार और संस्कार कार्य में बाधायें डाली जा रही हैं और किस प्रकार से थोड़े से दिनों के अन्दर ही तीन आर्यवीर म० वेदप्रकाश जी, म० धर्मप्रकाश जी, नागरणा और महादेव जी को शहीद किया गया । यह प्रश्न केवल हैदराबाद के आर्यो का ही नहीं, सारे आर्यजगत् का घोर अपमान है। यह समस्त आर्यजगत् के जीवन और मरण का प्रश्न है। सारे आर्यजगत् को इस प्रश्न का सामूहिक उत्तर देना चाहिये। निजाम सरकार के वायदों की परीक्षा पहले भी कई बार हो चुकी है। इस प्रकार समस्त हिन्दूजगत् क्षुब्ध हो उठा और हैदराबाद में आर्यसमाज तथा हिन्दूसभा की ओर से सत्याग्रह की तैयारी होने लगी। अक्तूबर सन् १९३८ के प्रथम सप्ताह में सावरकर जी दिल्ली आये और यहां इन्होने आर्य सार्वदेशिक सभा के सदस्यों से हैदराबाद के सम्बन्ध में बातचीत की और एक सार्वजनिक सभा में भाषण दिया ।
हैदराबाद रियासत में हिन्दुओं और विशेषकर आर्य समाजियो के विरुद्ध जो अत्याचार हो रहे थे, उनके सम्बन्ध मे दिसम्बर मास मे शोलापुर मे एक ऐतिहासिक आर्य सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन के प्रधान बापू जी अणे थे और महात्मा नारायण स्वामी जी मुख्य कार्यकर्ता थे। सावरकर जी भी वहां गये और आपने वहां भाषण दिये। सावरकर जी ने हिन्दू महा सभा की ओर से आर्यसमाज के नेताओं को विश्वास दिलाया कि यदि वह निजाम सरकार के अत्याचारों के विरुद्ध कोई कदम उठायेंगे तो हिन्दू महासभा भी उनका साथ देगी। शोलापुर के आर्य सम्मेलन में निजाम सरकार को चेतावनी दी गई और फिर अवधि समाप्त होने पर धर्मं युद्ध आरम्भ हो गया। जिसमें आर्य समाज तथा हिन्दू सभा के सहस्रों सदस्य जेलों में ठूंस दिये गये और दर्जनों बीरो ने अपने प्राणों की आहुति इस धर्म यज्ञ मे दे दी।
वीर सावरवर ने हिन्दू जनता के नाम एक वक्तव्य प्रकाशित किया—'समस्त हिन्दू जनता हिन्दू संगठनबादी और आर्य समाजी भारतीय जनता की सेवा में निवेदन है कि रविवार २२ जनवरी को भारत भर मे निजाम-निषेध दिवस मनाया जाय। आम हड़ताल, जलसे और जलूस निकाले जाये और जलसों में हिन्दू- महासभा और आर्य समाज की मांगों के समर्थन में प्रस्ताव पास किये जाये तथा धार्मिक हिन्दू अधिकार संघर्ष के लिये प्रत्येक सभा से मिलकर एक-सी आवाज लगाई जाये।' इस आज्ञा के अनुसार, जब तक यह सत्याग्रह चलता रहा, प्रत्येक मास की २२ तारीख को भारत भर में निजाम-निषेध-दिवस मनाया जाता रहा ।
अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का अधिवेशन नागपुर में सावरकर जी की अध्यक्षता में हुआ और उसमें हैदराबाद निजाम के सम्बन्ध में निम्न प्रस्ताव स्वीकार किया गया—
चूँकि हैदराबाद राज्य में हिन्दुओं को न धार्मिक पूजा आदि करने की स्वतन्त्रता है और न वे अपने नागरिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक अधिकारों को ही वर्त्त सकते हैं, और न प्रार्थना करने पर निजाम सरकार ने उनकी उचित और युक्तिसंगत मांगों पर
ध्यान ही दिया; यहीं तक नहीं अपितु हिन्दुओं को यहां तक उनके दिल दुखाकर विवश किया कि वे वहां की सरकार की संकुचित नीति के प्रतिकूल सत्याग्रह आरम्भ करें, यह सभा निश्चय करती है कि उनके इस सत्याग्रह संग्राम में, जो कि निजाम सरकार के प्रतिकूल अपने अधिकारों की अवहेलना होने पर आरम्भ किया है, उनकी पूरी सहायता करें और समस्त हिन्दू जनता से उसे उस समय तक वीरता, कर्मण्यता एवं उत्साहपूर्वक जारी रखने की प्रेरणा करे जब तक कि निजाम राज्य में जनसंख्या के अनुकूल हिन्दुओं के अधिकारों की उन्हें प्राप्ति होकर वहां उत्तरदायित्व पूर्ण शासन की स्थापना न हो जाय ।
इस प्रकार आर्यसमाज और हिन्दू महासभा दोनों का
सम्मिलित सत्याग्रह निजाम सरकार के विरुद्ध चलता रहा । सावरकर जी के व्यक्तित्व और भाषणों से प्रभावित होकर महाराष्ट्र के सहस्रों वीर इस सत्याग्रह में सम्मिलित हुए । अन्त में आर्यसमाज के साथ निजाम सरकार को समझौता करना पड़ा और इसलिये सत्याग्रह भी बन्द कर देना पड़ा।