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मैं ग़लत था - Novels
by Ratna Pandey
in
Hindi Moral Stories
भले राम और छोटे लाल एक छोटे से गाँव में रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे बचपन से साथ-साथ खेलते कूदते ही बड़े हुए थे। पूरे गाँव में उनकी दोस्ती के चर्चे थे और हों भी क्यों नहीं उनकी दोस्ती थी ही ऐसी कि यदि ज़रूरत पड़े तो वे एक दूसरे के लिए अपनी जान भी दे सकते थे। भले और छोटे दोस्त होने के साथ ही अच्छे पड़ोसी भी थे। दोनों के परिवारों के बीच भी उनकी दोस्ती के चलते बड़े ही घनिष्ठ सम्बंध थे। भले राम के परिवार में उसके पिता केवल राम, माँ माया और एक बहन सरोज थी। वहीं छोटे लाल के परिवार में उसके पिता मुन्ना लाल, माँ गौरी और बहन छुटकी थी।
गाँव में बारहवीं क्लास तक ही स्कूल था। उतनी पढ़ाई दोनों ने साथ-साथ कर ली थी। अब आगे क्या करना है, यह एक बड़ा ही पेचीदा प्रश्न था। गाँव में इसके आगे पढ़ने के लिए कॉलेज नहीं था और गाँव तथा अपने परिवार को छोड़कर दोनों कहीं बाहर शहर जाना नहीं चाहते थे। क्या करें इसी कश्मकश में कुछ समय और बीत गया। इस खाली समय में वे गाँव के अखाड़े में जाकर कसरत करते और दांव पेंच लगाना सीख रहे थे। कुश्ती का खेल देखकर उन्हें भी यह शौक लगा था। लेकिन यह मात्र शौक तक ही सीमित था। जो केवल कुछ ही दिन उनके साथ रह पाया और कुछ ही दिनों में उनका शौक ठंडा पड़ गया।
भले राम और छोटे लाल एक छोटे से गाँव में रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे बचपन से साथ-साथ खेलते कूदते ही बड़े हुए थे। पूरे गाँव में उनकी दोस्ती के चर्चे थे और हों भी ...Read Moreनहीं उनकी दोस्ती थी ही ऐसी कि यदि ज़रूरत पड़े तो वे एक दूसरे के लिए अपनी जान भी दे सकते थे। भले और छोटे दोस्त होने के साथ ही अच्छे पड़ोसी भी थे। दोनों के परिवारों के बीच भी उनकी दोस्ती के चलते बड़े ही घनिष्ठ सम्बंध थे। भले राम के परिवार में उसके पिता केवल राम, माँ माया
अब चारों आँगन में बैठे भजिये और चाय की चुस्कियों के बीच दुकान खोलने के बारे में चर्चा कर रहे थे। भले राम ने कहा, “बाबूजी हम शहर से अच्छी-अच्छी ऐसी चीजें लेकर आएंगे, जो हमारे गाँव वालों ने ...Read Moreभी उपयोग में नहीं लाई होंगी। नई-नई वस्तुओं के आकर्षण में लोग हमारी दुकान पर खिंचे चले आएंगे।” छोटे ने कहा, “चाचा जी हम दोनों मिलकर बहुत ईमानदारी के साथ दुकान चलाएंगे। गाँव के लोगों के साथ कभी किसी भी तरह की बेईमानी या धोखाधड़ी नहीं करेंगे।” केवल राम ने कहा, “तुम्हारी बातों में दम तो है, क्या बोलते हो
छोटे लाल मन ही मन भले राम की बहन सरोज से प्यार करता था इसीलिए उसने भले से रिश्तेदारी वाली बात कही थी। भले के मुँह से हाँ सुनने के बाद छोटे ने अपने दिल की बात उससे कहने ...Read Moreमन बना लिया। कुछ देर सोचने के बाद छोटे ने कहा, "भले सुन मैं सरोज से शादी करके तुझे मेरा साला बना लेता हूँ। बोल क्या कहता है?" "बात तो पते की है मगर अम्मा बाबू जी से पूछना तो पड़ेगा ना?" "हाँ-हाँ तो वे कौन-सा मना करने वाले हैं। वैसे भी सरोज की उम्र भी शादी लायक तो हो
बेचैनी भरे इंतज़ार के लम्हों को समाप्त करते हुए मुन्ना लाल ने मुस्कुराते हुए कहा "गौरी जाओ भाई हलवा बना कर लाओ, सबका मुँह मीठा करवाओ।" यह सुनते ही सभी की ख़ामोशी मुस्कुराहट में बदल गई और चेहरों पर ...Read Moreभी आ गई। छोटे लाल भी कान लगाकर सुन रहा था। सबकी हाँ सुनकर उसका मन लंबी-लंबी उछालें मार रहा था; जैसे मानो पूनम की रात में सागर की लहरें मोटी-मोटी उछाल मार रही हों। मुन्ना और गौरी भी बहुत ख़ुश थे। बिना ढूँढे, बिना माथापच्ची किए, इतनी अच्छी सुकन्या घर बैठे ही मिल गई थी। बस कुछ ही समय
विवाह संपन्न होने के बाद दूसरे दिन विदाई के पहले दोपहर के भोजन का समय हो रहा था। सभी बाराती खाने के लिए बैठ गए थे। उनके समाज में ऐसी प्रथा थी कि विवाह के बाद जब लड़का पहली ...Read Moreखाना खाने बैठता है तब उसे कुछ ना कुछ नेग देना होता है। कभी-कभी लड़का अपनी मनचाही वस्तु की मांग भी करता है और नेग मिलने के बाद ही वह खाना खाता है। यदि उसकी इच्छा पूरी ना हो तो वह खाने से इनकार कर देता है और ऐसा हो यह तो कोई भी नहीं चाहता। यहाँ तो ऐसी किसी