Lobhin book and story is written by Meena Pathak in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Lobhin is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
लोभिन - Novels
by Meena Pathak
in
Hindi Moral Stories
वह सूनी आँखों से टुकुर-टुकुर पंखे को देख रही थी..आँखें धँस गयीं थीं..शरीर हड्डियों का पिंजर बन गया था..चमड़ी झूल कर लटक गयी थी..सिर पर सफ़ेद बालों की खूँटियाँ निकल आयी थीं..शायद कुछ दिनों पहले ही उसका सिर घुटाया गया था..कपड़े के नाम पर ढीली-ढाली ब्लाउज और पेटीकोट था.. अचानक बिजली चली गयी और पंखे की रफ़्तार कम हो गयी उसके होठ सूखने लगे, जैसे ही उसने पास रखे स्टूल से पानी का गिलास उठाना चाहा, गिलास झन्न से नीचे गिर गया हॉल के दूसरे छोर पर दादाजी को दवा पिलाती हुई निधि चौंक पड़ी, घूम कर देखा और जोर से बोली-
वह सूनी आँखों से टुकुर-टुकुर पंखे को देख रही थी..आँखें धँस गयीं थीं..शरीर हड्डियों का पिंजर बन गया था..चमड़ी झूल कर लटक गयी थी..सिर पर सफ़ेद बालों की खूँटियाँ निकल आयी थीं..शायद कुछ दिनों पहले ही उसका सिर घुटाया ...Read Moreथा..कपड़े के नाम पर ढीली-ढाली ब्लाउज और पेटीकोट था.. अचानक बिजली चली गयी और पंखे की रफ़्तार कम हो गयी उसके होठ सूखने लगे, जैसे ही उसने पास रखे स्टूल से पानी का गिलास उठाना चाहा, गिलास झन्न से नीचे गिर गया हॉल के दूसरे छोर पर दादाजी को दवा पिलाती हुई निधि चौंक पड़ी, घूम कर देखा और जोर से बोली-
उस दिन भी सुधा रो रही थी कि तभी गेट खटका उसने जा कर दरवाजा खोला तो देखा उसका जीजा मनोहर खड़ा था उसने भीतर आने के लिए रास्ता दिया और फिर से दरवाजा बंद ...Read Moreदिया मनोहर सब जनता था, माँ काम पर गयी थी मनोहर को पानी देने के लिए वह उठी मनोहर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया सुधा की आँखे रोने के कारण सूज गयीं थीं मनोहर ने उसकी ठोड़ी के नीचे उँगली रख कर उसका चेहरा ऊपर उठा दिया और उसकी आँखों में झाँकता हुआ स्वर में चाशनी सी मिठास घोल कर बोला -
गर्मियों के दिन थे दोनों जेठानियाँ बच्चों के साथ मायके गयीं थीं घर में बस सास-ससुर और नौकर-चाकर थे पति तो रात के अंधेरे में भूत की तरह उजागर हो जाता और सुबह ...Read Moreउतर कर गायब हो जाता इधर मनोहर का आना-जाना बढ़ गया था कुसुम ने हिदायत भी दी थी कि अब उस घर की तरफ आँख उठा कर भी ना देखे पर वह नहीं माना मनोहर के आते ही सुधा खिल उठती थी