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लोभिन - 1

लोभिन

मीना पाठक

(1)

वह सूनी आँखों से टुकुर-टुकुर पंखे को देख रही थी..आँखें धँस गयीं थीं..शरीर हड्डियों का पिंजर बन गया था..चमड़ी झूल कर लटक गयी थी..सिर पर सफ़ेद बालों की खूँटियाँ निकल आयी थीं..शायद कुछ दिनों पहले ही उसका सिर घुटाया गया था..कपड़े के नाम पर ढीली-ढाली ब्लाउज और पेटीकोट था..| अचानक बिजली चली गयी और पंखे की रफ़्तार कम हो गयी | उसके होठ सूखने लगे, जैसे ही उसने पास रखे स्टूल से पानी का गिलास उठाना चाहा, गिलास झन्न से नीचे गिर गया | हॉल के दूसरे छोर पर दादाजी को दवा पिलाती हुई निधि चौंक पड़ी, घूम कर देखा और जोर से बोली-

"आती हूँ अम्मा ..रुको |"

निधि दादाजी को दावा पीला कर दौड़ती हुई आयी, "पानी चाहिए अम्मा ?"

सिर हिला कर हामी भर दिया उसने | वहीं घड़े से पानी निकाल कर निधि ने उसे पिलाया | ठण्डा पानी पी कर राहत की साँस ली उसने | गड्ढे में धसी आँखें निधि के चेहरे पर टिक गयीं, पपड़ी वाले होंठ मुस्कुराने के लिए खिंच गए | उसने अपना काँपता हुआ हाथ उठा कर निधि के सिर पर रख दिया तभी बगल से खाँसने की आवाज आयी और निधि उस ओर बढ़ गयी |

शहर से लगभग बीस किलोमीटर दूर एक वृद्धाश्रम है | लगभग डेढ़ सौ वृद्ध यहाँ रहते हैं | कुछ तो ठीक हैं पर कुछ की दशा बहुत ही दयनीय है| उन्ही में से एक वह वृद्धा भी हैं, जिन्हें अपना नाम तक याद नहीं या याद है भी तो वह बताती नहीं | दो वर्ष पहले कोई रात के अंधेरे में इन्हें वृद्धाश्रम के गेट पर छोड़ गया था | तब से आज तक इन्हें कोई पूछने वाला नहीं आया |

*

पिछले कुछ महीनों से वह बीमारी से जूझ रही हैं | बुखार चढ़-उतर रहा है | यहाँ पर सब समझते हैं कि उसे कुछ याद नहीं पर उसे सब कुछ याद है | वह किसी को कुछ बताती नहीं | क्या बताती ?..ये, कि जो उसकी आज दशा है..वह उसी की करनी का फल है..कैसे बताती कि कागजों पर अंगूठे की छाप लेने के बाद उसका दामाद ही उसे यहाँ ढकेल गया था..कैसे बताती कि वह कितनी लोभिन है !..पैसों और सुविधाओं के लोभ में अपनी फूल सी बच्ची का सौदा एक नहीं दो बार किया था उसने..कैसे और किस मुँह से बताती ये सब.!.उस दिन मालकिन के कहे शब्द उसकी आत्मा पर घाव कर गए थे..वो घाव आज भी रिसता रहता है..टीसता रहता हैं..सच ही तो कहा था मालकिन ने “धिक्कार है तुझ पर..धिक्कार है !!”

अचानक खट्ट की आवाज से पंखा चल पड़ा | पंखे की गति के साथ ही आज उसकी स्मृतियाँ भी अतीत की ओर तेजी से लौट जाती हैं और उसके सामने एक के बाद एक दृश्य उपस्थित होने लगता है |

*

उस दिन कुसुम, सुधा को अपने साथ पहली बार उस बंगलो पर ले कर गयी थी | वहाँ की मालकिन सुधा को घूर-घूर कर देख रही थी | जैसे ही काम कर के जाने को हुई कुसुम, मालकिन बोली -

“कुसुम ! ये तेरी बेटी है ?”

“हाँ मालकिन, यह मेरी छोटी बेटी है |”

“यह तो बहुत सुन्दर है री !

“गरीब की बेटी है मालकिन, कोई मिले तो इसके भी हाथ पीले कर गंगा नहाऊँ | मेरा जी डरा रहता है, इसी लिए इसे घर पर अब अकेली नहीं छोड़ती | कहीं गरीब की सुंदरता उसका अभिशाप न बन जाय |”

“मेरे नज़र में एक लड़का है, अगर तू कहे तो बात चलाऊँ |” कुछ सोच कर बोलीं मालकिन |

“नेकी और पूछ-पूछ ! आप का बड़ा एहसान होगा मालकिन | बस लड़का इतना कमाता हो कि मेरी बिटिया का पेट भर जाय, इतनी सी इच्छा है मालकिन |” कृतज्ञ भाव से बोलते हुए हाथ जोड़ कर मालकिन के पास फर्श पर बैठ गयी कुसुम |

“पैसों की कमी नहीं होगी तेरी बेटी को | उन लोगो से बात कर के तुझे बताती हूँ |” मालकिन ने आश्वासन दिया |

*

सुधा अभी नवीं में पढ़ रही थी | उम्र कम थी पर रूप और यौवन उसके अंग-अंग से छलक रहा था | मोहल्ले के लम्पट आवारा लड़के उस पर गंदी नजर रखते थे इसी लिए कुसुम हमेशा डरी रहती थी | गंदी बस्ती, गंदे लोग ! पर कहाँ जाती वह उसे ले कर ? इसी लिए अब वह उसकी भी शादी कर देना चाहती थी | बड़ी बेटी की शादी भी इसी डर से उसने जल्दी कर दिया था | अब छोटी की भी कर देना चाहती थी पर उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी बड़े घर से उसका रिश्ता होगा |

*

अगले ही दिन मालकिन ने बताया कि “कल वह लोग तेरी सुधा को देखने आ रहे हैं |” कुसुम मालकिन के प्रति कृतज्ञता के भाव से भरी जा रही थी | आज का दिन उससे काटे नहीं कट रहा था | जल्दी-जल्दी उसने सभी घरों का काम निपटाया और कल आने को मना कर दिया, बहाना बना दिया कि ‘बिटिया की तबीयत ठीक नहीं उसको डॉ० को दिखाने जाना है |’ बहाने बनाने में तो माहिर थी ही वह | रात भर वह सुधा के सुखद भविष्य के सपने बुनती रही | अगले दिन वह सुधा को तैयार कर के अपने साथ ले कर पहुँच गयी | जल्दी-जल्दी साफ़ सफाई कर नाश्ते की तैयारी कर ली कुसुम ने | करीब दस बजे गेट पर दो गाड़ियाँ आ कर रुकीं |

दोनों गाड़ियों में भर कर पूरा परिवार आया था | कुसुम मन ही मन बहुत खुश थी कि उसकी बेटी का रिश्ता इतने बड़े घर में हो रहा है | वह बेटी का माथा सहला कर चूम लेती है | थोड़ी देर बाद ही मालकिन की आवाज पर वह अपने दोनों हाथों में नाश्ते की ट्रे उठाए सुधा के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश कर गयी | सभी की नजरें उस पर से होते हुए सुधा पर अटक गयी | गोरा रंग, सुन्दर नाक-नक्श, लम्बी सी दो चोटियों में बंधे हुए केश, चेहरे पर मासूमियत | सुधा सभी को अपनी तरफ आकर्षित देख कर शरमा रही थी | उसे कुसुम ने खूब समझाया था कि उसका ब्याह एक राजकुमार से हो रहा है | वह ब्याह के बाद महारानियों सा जीवन जियेगी | नादान सुधा मन ही मन उस राजकुमार के सपने देख रही थी और खुश हो रही थी |

बसंती रंग के सलवार कमीज में सुधा और भी निखर गयी थी | उसे देख कर सभी के चेहरे खिल गए | आपस में खुसुर-फुसुर होने लगी तभी मालकिन के बगल में बैठी महिला ने उनके कान में कुछ कहा | सुधा को उन लोगों के पास बैठा कर मालकिन कुसुम को ले कर दूसरे कमरे में चली गयी और वहीं से उसे संकेत द्वारा बताया कि वह किस लड़के से सुधा का रिश्ता करा रही है | लड़के को देख कर कुसुम चौंक पड़ी, उसके चेहरे की खुशी उड़न-छू हो गयी | ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे आकाश पर चढ़ा कर धक्का दे दिया हो और वह रसातल में समाती चली जा रही हो | उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा | वह लगभग चीखती हुई बोली |

“ना मालकिन ना ! मैं अपनी बेटी को कुएं में धकेल दूँगी पर इस लड़के से ना ब्याहूँगी |”

“क्या करती है कुसुम ? किसीने सुन् लिया तो ! जरा धीरे बोल |”

“ना मालकिन ना..मुझे नहीं ब्याहना अभी सुधा को |”

“जरा दिमाग से सोच सुधा..पागल मत बन..बड़े लोग हैं..तेरी बेटी राज करेगी राज !”

“ना मालकिन, मैं अपनी फूल सी बच्ची का हाथ इसके हाथ में ना दूँगीं..मुझपर दया करो |” उस लड़के की ओर संकेत कर कहा कुसुम ने |

“सोच ले कुसुम..रंग-रूप से घर नहीं चलता..चूल्हा नहीं जलता..पेट की आग नहीं बुझती..इतना बड़ा घर मिल रहा है सुधा को..और क्या चाहिए ? रूपये-पैसों की कमी नहीं होगी कभी....तेरी बेटी रानी बन कर रहेगी..रूपये-पैसे..गाड़ी-बंगला सब कुछ है..ब्याह का सारा खर्च भैया ही करेंगे.. तुझे कुछ नहीं करना है..तू हाँ कर दे बस ! अगर तू चाहेगी..तो तेरी बेटी के साथ तेरे हालात भी सुधर जायेगें..तुझे भी किसी प्रकार की कमी नहीं होगी...ना ही यूँ घर-घर का जूठन बटोरना पड़ेगा तुझे..नहीं तो जीवन भर तेरी तरह सुधा भी यूँ ही झूठे बर्तन धोती रहेगी..सोच ले तू.. |” मालकिन उसे समझा कर कमरे से बाहर चली गयीं |

बात तो सही थी मालकिन की, रूप-रंग से घर नहीं चलता | बड़ा दामाद जो गोरा चिट्टा, देखने में सुन्दर सजीला है; पर आये दिन घर में लड़ाई-झगड़ा मचाए रहता है, काम-काज में मन नहीं लगता उसका, रोज-रोज की किच-किच से तंग आ कर उसने बड़ी बेटी को दो-चार घर का काम दिला दिया था जिससे वह उससे दूर रहेगी तो लड़ाई भी नहीं होगी दोनों में और बेटी के हाथ में चार पैसे भी आएँगे |

कुसुम एक झटके से भावनाओं के समंदर से बाहर निकल आयी | अब वह हकीकत के कठोर धरातल पर खड़ी थी | उसका चेहरा सपाट और कठोर हो गया | उधर सभी की बांछे खिली हुई थीं | सुधा को देख कर सभी आँखों ही आँखों में एक-दूसरे से उसके रूप और लावण्य की प्रशंसा कर रहे थे |

थोड़ी देर बाद मालकिन के आते ही कुसुम ने कहा – “आप जैसा उचित समझें मालकिन |”

“ये हुई ना बात ! चल आजा |” चहक उठी उसकी मालकिन |

दोनों ड्राइंगरूम में आ गयी | संभवतः मालकिन ने संकेत कर सब को बता दिया था कि कुसुम मान गयी है | मालकिन ने सुधा के सिर पर दुपट्टा रख दिया | सभी लोग एक-एक कर सुधा के पास आ कर उसे टीका कर कुछ ना कुछ उपहार दे रहे थे, उसके दुपट्टे का आँचल रूपये और जेवर के छोटे-बड़े डिब्बों से भरता जा रहा था | सुधा के किशोर मन की फुलबगिया इतने रूपये और गहनें देख कर खिल गयी | वह तितली बन उड़ चली थी | छोटी उम्र से ही अभाव का जीवन जिया था उसने | अचानक इतने बड़े-बड़े नोट और जेवरात की चमक ने उसकी आँखों में चमक ला दी | मन ही मन वह अपनी दीदी से अपनी तुलना करने लगी | कहाँ वह एक छोटे से घर में ब्याही थी और कहाँ वह इतने बड़े घर की बहू बनने जा रही थी | वह गहनों से लदी फंदी जब कार से अपनी माँ के घर आएगी तो लोगो की आँखे फटी की फटी रह जाएँगीं | अचानक वह सुखद स्वप्न लोक से बाहर आ गयी | कोई उसके सामने खड़ा था | मालकिन ने सुधा का हाथ पकड़ कर उसके हाथ में थमा दिया | सुधा के शरीर में झुरझुरी सी हो गयी | उसने अपनी नजरे जैसे ही ऊपर की, उसके पाँवों तले जमीन खिसक गयी | उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं, उसे लगा जैसे किसी कंकाल को कीमती कपड़े पहना कर उसके हाथ में उसका हाथ थमा दिया गया हो | वह डर कर उठ खड़ी हुई, उसके मुंह से घुटी-घुटी सी चीख निकल गयी | आँचल का सभी शगुन नीचे गिर कर फ़ैल गया | मालकिन समझ गयी, उसने जल्दी से सुधा को संभाल लिया तब तक उसने उसकी उँगली में अंगूठी पहना दी थी | उसके स्पर्श की ठंडक से वह भीतर तक जमती जा रही थी | काला रंग, बिल्ली जैसी छोटी-छोटी गोल आंखे, पिचके गुब्बारे जैसे गाल, लंबा कद, मुँह में मसाला, झुके हुए कंधे, आँखों में चमक ऐसी जैसे किसी बिल्ले ने चूहे को झपट कर पकड़ लिया हो | सुधा गश खा कर गिरने लगी कि दूसरी तरफ से कुसुम ने उसे थाम लिया | कुसुम के चेहरे पर कठोरता के भाव थे | उसने अपनी ममता का गला घोंट दिया था | अंगूठी पहनाने के बाद सभी ने मुँह मीठा किया और मिठाई के डिब्बे व कपड़ों के पैकेट कुसुम को थमा कर वह चले गए | मालकिन ने अपनी गाड़ी से दोनों माँ-बेटी को सामान सहित घर भिजवा दिया |

*

“माँ ! मैं उससे ब्याह नहीं करूँगी, चाहे तू मेरी जान ले ले |” सुधा सिसक-सिसक कर रोये जा रही थी | कुसुम उसे ऊँच-नीच समझा रही थी पर वह मानने को तैयार ना थी |

उसने अपनी बड़ी बेटी को बुला भेजा | बड़ी ने भी सुधा को बहुत समझाया |

“सुधा मेरी बहन ! जिंदगी वैसे नहीं चलती जैसे हम सोचते हैं..पैसा है तो सब कुछ है..नहीं तो कुछ भी नहीं..जिंदगी समझौता है हम जैसो के लिए..तू तो भाग्यशाली है जो इतने बड़े घर में जा रही है..शक्ल सूरत से गृहस्थी नहीं चलती..पैसों से चलती है.. ब्याह के बाद तू उसका ध्यान रखेगी तो वही अच्छा लगने लगेगा |” सुधा की समझ में उसकी एक भी बात नहीं आई | वह रो-रो कर आधी हो गयी थी |

***