Education Concept in Valmiki Ramayana books and stories free download online pdf in Hindi

बाल्मीकि रामायण में शिक्षा संकल्पना

बाल्मीकि रामायण एक युग प्रवर्तक रचना है जो हजारों वर्षों से भारतीय समाज का पथ प्रदर्शन करती हुई आज भी लोक ख्याति के सर्वोच्च शिखर पर आसीन है। इस अद्वितीय कृति में साहित्य, दर्शन, धर्म, राजनीति, समाज, इतिहास आदि के अध्ययन के लिए प्रभूत सामग्री की उपलब्धता के साथ ही शिक्षा विषयक बहुमूल्य विचार एवं चिंतन की भी प्रचुरता दृष्टिगोचर होती है। राम राज्य सदृश्य आदर्श सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के मूल मैं सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था के होने का विचार निश्चय ही तर्कसंगत प्रतीत होता है। क्योंकि अच्छे संस्कार और आचरण वाले नागरिक ही उन्नत राष्ट्र एवं समृद्ध तथा सभ्य समाज का निर्माण कर पाते हैं। अतः राम राज्य एवं श्री राम जैसे वृत को चित्रित करने वाली बाल्मीकि रामायण जैसी अनन्य कृति में तदन रूप शिक्षा की संकल्पना की गवेषणा एक सहज जिज्ञासा है

शिक्षा का अर्थ व स्वरूप

रामायण के अनुसार शिक्षा के अर्थ के विश्लेषण के आधार पर शिक्षा के दो स्वरूप दृष्टिगोचर होते हैं जिन का विवेचन आगे अंकित है

प्रथम विशिष्ट शिक्षा

रामायण में शिक्षा के लिए विद्या शब्द का प्रयोग किया गया है किंतु यह विद्या शब्द बला विद्या अबला विद्या ब्रह्मविद्या परा विद्या अपरा विद्या आदि रूप में प्रयुक्त हुआ है। वला तथा अति वला विद्याओं को सभी प्रकार के ज्ञान की जननी बताया गया है

एतत् विद्या द्वे लब्धे ना भवेत् सदृश् : तव
बला च अतिबला चैव सर्व ज्ञानसय मातरो । बाल्मीकि रामायण बालक
बाल सर्ग 22 /17
इन विद्याओं के आविष्कार कर्ता ब्रह्मा बताए गए हैं विश्वामित्र ने इन्हें तब द्वारा प्राप्त किया था परंतु श्री राम ने उत्तम गुणों से समन्वित होने की पात्रता के कारण प्राप्त किया। परा विद्या के अंतर्गत ब्रह्मविद्या आती है तथा अपरा विद्या मैं वेद वेदांग आदि का उल्लेख किया गया है इनके अतिरिक्त रामायण में वर्ण अनुसार विविध विद्याओं का उल्लेख है इन विद्याओं को विशिष्ट कह सकते हैं क्योंकि सामान्यतः यह सर्वजन सुलभ नहीं थी पात्र अपात्र को ध्यान में रखकर ही इन विद्याओं की उपलब्धि संभव थी

नंबर दो सामान्य शिक्षा

साधारण जीवन यापन हेतु, व्यक्तित्व विकास हेतु, देश एवं समाज की आवश्यकता के अनुरूप तत्कालीन बालक बालिकाओं के लिए जो शिक्षा आवश्यक थी उसे सामान्य शिक्षा कहा जा सकता है बाल्मीकि की इस शिक्षा संकल्पना में, व्यक्तित्व का विकास करना सामान्य जीवन के छोटे बड़े सभी कार्यों में दक्ष बनाना तथा परिस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करना वांछनीय था

पंचवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम से आज्ञा लेकर लक्ष्मण द्वारा सुंदर पर्णशाला का निर्माण किया गया यहां पर्णकुटी की निर्माण कला से अवगत होना एवं श्रम का आदर करना एक राज पुत्र को स्वावलंबन की दी गई शिक्षा का अनुकरणीय उदाहरण है । वस्तुतः मानव जीवन की लंबी अवधि में विभिन्न परिस्थितियों के साथ अनुकूलन की शिक्षा का प्रत्यक्ष प्रमाण सीता वन गमन के समय दिखाई देता है जब सीता जी श्री राम से कहती हैं किस समय मेरे लिए क्या आचरणीय है? तथा क्या अनाचरणीय है? किसकी शिक्षा मैं बचपन में ही प्राप्त कर चुकी हूं

अनुशिष्ट असमी माता च पिता च विविध आश्रयम
न असमी संप्रति वक्तव्या वर्तीतव्यम यथा मम। अयोध्या सर्ग 18/10
यहां शिक्षा के लिए --"अनुशिष्ट" शब्द प्रयोग किया गया है अनु उपसर्ग पूर्वक शास धातु से प्रत्यय होने पर यह शब्द निस्पंन होता है जिसका अर्थ विधि--निषेध पूर्वक किसी विषय का निर्देश देना है । "विद्या" शब्द में निहित अर्थ जानने या सीखने से है जबकि शास धातु से सिखाने का बोध होता है। एक में विद्यार्थी का महत्व है जबकि अनुशिष्ट करने में शिक्षक या शिक्षा का महत्व है । अनुशिष्ट करने में शिक्षक का या शिक्षा के स्रोत का अधिक महत्व है। विद्याऐ शिष्य द्वारा अध्ययन, एकाग्रता, चिंतन रूप तप से या गुरुओं की सदाशयता से ही प्राप्त होती है इनमें शिष्य की योग्यता एवं विशिष्ट करण का प्राधान्य है जैसे अस्त्र-शस्त्र की विद्या युद्ध कला में प्रवीण होने के लक्ष्य को पाने वाले व्यक्ति के लिए ही है उसका विशिष्ट करण है जबकि सामान्य शिक्षा का सार्वभौमीकरण है

वास्तव में सामान्य शिक्षा जो बालक बालिकाओं को सामान्य जीवन की तैयारी के लिए बिना किसी विशिष्ट उद्देश्य प्रदान की जाती है उसके भी दो रूप वाल्मीकि रामायण में दृष्टव्य है पहला सुं शिक्षा और दूसरा कु शिक्षा

सुं शिक्षा

अयोध्या के नर नारी सुशिक्षित हैं वे सामान्य जीवन-- मूल्यों में आस्था रखते हैं परस्पर सौहार्द एवं सहानुभूति रखते हैं। प्रेम पूर्वक एक दूसरे के सुख दुख में हिस्सा बांटते हैं। सभी अपने कर्तव्यों का निर्वहन एवं धर्म अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं परिवार के सभी सदस्य नियम धर्म एवं सदाचार के प्रति सचेष्ट है

किष्किंधा में शिक्षा का अधिक प्रचार नहीं है किंतु लोगों में दुराचार भी नहीं है सुग्रीव का मैत्री भाव अंगद तथा हनुमान की स्वामी भक्ति उत्कृष्ट उदाहरण है। हनुमान का ज्ञान बल संयम कथा चरित्र अप्रतिम है उन्हें राजनीतिज्ञ धर्मज्ञ एंवं विभिन्न विद्याओं एवं वेद आदि के पूर्ण ज्ञाता कहा जाता है वे विविध भाषाओं के भी अच्छे ज्ञाता है

कुशिक्षा

सुशिक्षा के विपरीत राक्षसों में कुशिक्षा का प्रचलन था जो अहिंसा के स्थान पर हिंसा, सत्य के स्थान पर असत्य, छल, छद्म, क्रूरता, ब्यभिन्चार तथा स्वेच्छाचारिता को प्रश्नय देती है ये राक्षस ऋषि मुनियों के अग्निहोत्र तथा धार्मिक कृत्य में अकारण ही बाधक है शूरवीर , बलशाली ,वलिंष्ठ तथा उत्तम अस्त्र शस्त्रों के स्वामी होने पर भी यह राक्षस वर्ग कु शिक्षा से ग्रसित होने के कारण अहंकारी व दुराचारी थे जिसके कारण उन्हें अनिष्ट कारी परिणाम भोगने पड़ते हैं। रावण को उत्तम कुल तथा वेद शास्त्रों का ज्ञाता होने का गौरव प्राप्त होने पर भी उसका पाप निवेश कु शिक्षा जनित् है

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के अनेक घटना स्थलों पर सु शिक्षा एवं कु शिक्षा जनित व्यवहार का विश्लेषण एवं उनके शुभ प्रभाव एवं दुष्प्रभाव वह परिणामों का विवेचन किया है। सु शिक्षा जहां एक और मानव में पर दुख कातरता, प्राणी मात्र के सुख की कामना, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, सत्य, अहिंसा, निष्ठा, एकाग्रता आदि उच्च कोटि के मानवीय गुणों को उदभूत करती हैं वहीं दूसरी ओर कु शिक्षा मानव में अहंकार छद्म, दुराचार, स्वेच्छा चरिता आदि के अनिष्ट कारी व्यभिचारी ता का बीजारोपण करती है अतः मानव को सदैव प्रयास पूर्वक सु शिक्षा को ही ग्रहण करना चाहिए क्यों कि---

सुं शिक्षा ही व्यक्ति एवं समाज दोनों को उन्नति के शिखर की ओर ले जाती है

इति
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