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राम रचि राखा - 1 - 8

राम रचि राखा

अपराजिता

(8)

फरवरी शुरु हो गया था। ठण्ड काफ़ी कम हो चुकी थी। फिर भी शाम में छह बजे तक धुंधलका छाने लगता था। उस दिन अनुराग मेरी ओफिस आया। आते ही बोला, “तुम्हारे लिए एक सरप्राईज़ है।“

"क्या...?" मेरी प्रश्नवाचक दृष्टि उसके चेहरे की तरफ उठ गई।

"उसके लिए तुम्हें मेरे साथ चलना होगा...तुम्हारे पास एक-दो घंटे हैं?

"अधिक समय तो नहीं लगेगा...? साढ़े आठ बजे मेरी एक मीटिंग है।"

"तब तक हम वापस आ जाएँगे।"

मैं अनुराग के साथ चल पड़ी।

अनुराग ने अपनी कार एक नए बने हुए हाऊसिंग काम्प्लेक्स के अन्दर रोकी। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ और उत्सुकता भी।

"किसी से मिलना है ?" मैंने पूछा।

"आओ तो..."

मैंने चारो तरफ निगाह दौड़ाई। बिल्कुल नयी कालोनी थी। कुछ फ्लैटों से रोशनी आ रही थी। लेकिन अधिकतर फ्लैट अभी खाली लग रहे थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह मुझे क्या सरप्राईज़ देने वाला था। लिफ्ट से एक बिल्डिंग के ग्यारहवें फ्लोर पर हम आ गये। अनुराग ने जेब से चाभी निकाल कर एक फ्लैट का दरवाजा खोला। हम दोनों अन्दर आ गये। अनुराग ने बिजली का स्विच ऑन किया। पूरा कमरा खाली था। सिर्फ फर्श और दीवारें।

"यह हमारा घर है!" अनुराग की आवाज़ खाली कमरे में गूँज उठी। बहुत ख़ुशी थी उनकी आवाज़ में।

"ह्वाट..!"

"हाँ वाणी, यह हमारा घर है...।", उसने मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में भरते हुए कहा, "हमारा घर...मेरा और तुम्हारा घर।" उनकी आँखों में ख़ुशी तैर रही थी। "मैंने यह घर खरीदा है...अपने लिए...मेरे और तुम्हारे लिए...”

"ओह माई गॉड! यकीन नहीं हो रहा है!" मैं आश्चर्यचकित थी, "तुमने कभी बताया नहीं ?"

“बता देता तो तुम्हारी आँखों में मुझे यह ख़ुशी देखने को कैसे मिलती!"

फिर अचानक अनुराग अपने घुटनों पर बैठ गया और मेरा दायाँ हाथ अपने हाथ में लेकर बोला- विल यू मेरी मी? मेरी आँखें ख़ुशी से छलक उठीं। मैंने लगभग रुँधते गले से कहा "येस, आई विलl"

वह उछलकर खड़ा हो गया और मुझे अपने आलिंगन में ले लिया। मेरे गालों को चूमा और कहा- "आई लव यू सो मच माई डार्लिंग ! "

ओह, कितना खूबसूरत था वह पल! किसी सपने की तरह।

फिर अनुराग मुझे घर दिखाने लगा।

"इस दीवार पर तुम्हारी पेंटिंग्स लगायेंगे और सामने वाली दीवार पर हमारी फोटो रहेंगी...।" हम ड्राइंग रूम में थे।

फिर हम एक दूसरे रूम में आ गये। "इस रूम में तुम्हारा कैनवास रहेगा...यहाँ तुम पेंटिंग्स बनाना। देखो इसकी विंडो कितनी बड़ी है। कितना खूबसूरत दिखेगा बाहर।" फिर हम दूसरे कमरे में आ गये। "यह कमरा हमारे बच्चों का रहेगा...।" अनुराग की बात सुनकर मेरे गाल शर्म से सुर्ख़ हो गये। मैंने उसके सीने में मुँह छिपा लिया।

अनुराग मुझे एक दूसरे कमरे में ले गया जो दोनों कमरों से बड़ा था। "और यह हमारा बेडरूम होगा।" हम खिड़की के पास खड़े हो गये। "यहाँ बस हम और तुम होंगे...हमारा प्यार होगा" अनुराग में पीछे से मुझे अपनी बाहों में भर लिया था। उसने अपनी ठुड्डी मेरे कंधे पर टिका दी।

बाहर कुहरा झरने लगा था। सड़क के लेम्प पोस्टों की रोशनी धुँधली लग रही थी। गाड़ियों की हेड लाईट्स दीयों की तरह टिमटिमा रही थी। अनुराग की गर्म साँसें मेरे कर्ण पट को छू रही थीं। उसने मेरे गालों को चूमा और मेरे कानो में फुसफुसाया "आई लव यू।" मेरी आँखें बंद हो गयीं। ऐसा लगा कि मैं उड़ रही हूँ।

अनुराग ने हाथ बढ़ाकर खिड़की खोल दी। कुहरे का एक झोंका अन्दर आ गया। एकदम से मेरे चेहरे को ठंडा कर दिया। मैं अनुराग की तरफ मुड़ी और उसके सीने पर अपना चेहरा रख दिया। उसने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया। उसकी स्नेहमय उंगलियाँ मेरे पीठ पर और बालों में घूमने लगीं। उसका स्पर्श मेरे प्राणों को छू रहा था।

उसने अपनी उंगली मेरी ठुड्डी पर रखकर मेरा चेहरा ऊपर उठाया। उसकी आँखों में प्रेम और लालसा की अग्नि प्रज्वलित थी। उस अग्नि की लपटें मेरे मेरी आँखों को छूने लगीं, मेरे चेहरे को छूने लगी, मेरे अंतह में उतरने लगी। मेरे होठ सूखने लगे। उसने अपने होठ मेरे होठो पर रख दिए। ओह, शिख से नख़ तक एक विद्युत् दौड़ गई...मेरी धमनियों का रक्त ज्वार सा उफन उठा। मेरी बाहें उनके गले में लिपट गयीं।

हमारी तप्त साँसे एक दूसरे में घुलने लगी। आलिंगन की प्रगाढ़ता बढ़ने लगी। स्पर्श सघन होने लगा। हम बढ़ने लगे बरसाती नदियों की तरह, किसी टूटे बाँध के निर्बाध जलप्रवाह की तरह। हम उफनने लगे पूनम की रात में समुद्र की लहरों की तरह। उस प्रवाह में हमारे वस्त्र गात से अलग होते गये।

हवन कुण्ड से धधकते मेरे अंग प्रत्यंगों पर अनुराग के अधरों का स्पर्श घृत की तरह काम किया । मेरी लपटें और बढ़ने लगीं। कमरे की ठंडी हवा उष्ण हो गई। फर्श के पत्थरों की ठंडक विलुप्त हो गई।

पल-पल आतुरता बढ़ रही थी, एक दूसरे में समाहित हो जाने की, एक दूसरे में विलीन हो जाने की। अनुराग का स्पर्श मेरे गात पर प्रेम की गाथा लिखा रहा था। वह घने मेघों की तरह मुझ पर आच्छादित होकर प्रेमरस की वर्षा कर रहा था। हम एक दूसरे से जुड़ रहे थे। वह मुझमें धड़क रहा था। मैं पल-पल टूट रही थी, पल-पल जुड़ रही थी, पल-पल खिल रही थी।

कामना के अश्व पर सवार होकर हम तृप्ति के शिखर पर पहुँच गये। प्रवाह रुक गया। चेतना लौट आई। हमने अपने वस्त्र पहने। अनुराग ने मेरे माथे और गालों को चूमा।

काफी देर हो चुकी थी। हम जल्दी से वहाँ से निकले। अनुराग ने मुझे ऑफिस छोड़ा। मेरी मीटिंग शुरु होने वाली थी। वह चला गया।

क्रमश..