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सीमा पार के कैदी - Novels
by राजनारायण बोहरे
in
Hindi Children Stories
फौजी जासूस केदारसिंह अपने दोनों बेटों के साथ सीमा की एक चौकी पर आये हुए थे और सब लोग सीमा पार की दूसरे देश की चौकी की ओर ताक रहे थे।
कुछ देर बार एक फौजी ट्रक सीमा पार की चौकी पर आकर रूका और उसमें से सेना के जवानों के साथ दस-बारह ऐसे लोग उतरे जो देखने में बड़े गरीब और परेशान लग रहे थे। उन दस बारह लोगों को सीमा पार की चौकी के जवानों ने भारत की सीमा पर बनी इस चौकी की ओर इशारा कर के जाने की अनुमति दे दी तो वे लोग उन जवानों के प्रति हाथ जोड़ कर श्रद्धा प्रकट करते हुए उस देश की सीमा पार करते हुए ऐसी जगह में से आगे बढ़ने लगे जिसे नो मैन्स लैण्ड कहा जाता है, यानी कि दोनों देश की सीमाओं के बीच की जगह जहां किसी देश का कब्जा नही होता था।
सीमा पार के कैदी 1 बाल उपन्यास राजनारायण बोहरे दतिया (म0प्र0) एक फौजी जासूस केदारसिंह अपने दोनों बेटों के साथ सीमा की एक चौकी पर आये ...Read Moreथे और सब लोग सीमा पार की दूसरे देश की चौकी की ओर ताक रहे थे। कुछ देर बार एक फौजी ट्रक सीमा पार की चौकी पर आकर रूका और उसमें से सेना के जवानों के साथ दस-बारह ऐसे लोग उतरे जो देखने में बड़े गरीब और परेशान लग रहे थे। उन दस बारह लोगों को सीमा पार की चौकी के जवानों ने भारत की सीमा पर बनी
सीमा पार के कैदी2 बाल उपन्यास ...Read More राजनारायण बोहरे दतिया (म0प्र0) 2 बाल जासूसों की एक संस्था बनाई गई थी, अजय और अभय उसके सक्रिय सदस्य थे। आपस में विचार करके अगले दिन उन्होंने अपने चीफ मिस्टर सिन्हा को सीमा पर गरीबों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में लिखा और यह बताया कि वे दोनों गोपनीय रूप से ऐसे बे गुनाह लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं, कोई योजना बनाई जाये। कुछ दिनों के बाद ही मिस्टर सिन्हा ने इन दोनों को दूसरे देश भेजने का प्रोग्राम बनाया और इनकी सुरक्षा
सीमा पार के कैदी3 बाल उपन्यास ...Read More राजनारायण बोहरे दतिया (म0प्र0) 3 इसके बाद उनकी यात्रा आरंभ हुई । पहले पैदल ,इसके बाद ऊँटों से। अभय को बड़ा मजा आया ! मीलों दूर तक फैली रेत ही रेत, जो कहीं ऊँची कही भयानक खाइयों का रूप धारण किये थी। ऊँट बड़ी मस्ती से चला जा रहा था। अभय ने अपना ऊंट दौड़ा दिया, हिचकोले खाता हुआ अभय प्रसन्नता में डूबा जा रहा था। वह भारत का अन्तिम शहर था। शाम होते-होते एक्स, वाय व जेड वहाँ पहुँचे। बाजार में विशेष राजस्थानी
सीमा पार के कैदी -4 बाल उपन्यास ...Read More राजनारायण बोहरे दतिया (म0प्र0) 4 सीमा पार करके अब वे उसी पहाड़ी के नीचे बसी ढाणी की ओर बड़े जा रहे थ जिसके बारे में भारत के पटेल ने बताया था। आस पास की छोटी छोटी झाड़ियां और धीरे- धीरे बढ़ता अंधेरा उनका सहायक बन रहा था। लगभग एक घंटा चलने के बाद अंधेरे में दूर, एक धीमा सा उजाला दिखने लगा । लगता था कि ढाणी नजदीक ही थी। वे बहुत धीमे से कदम बढ़ाते हुये बिना आवाज करे आगे बढ़ने लगे।
सीमा पार के कैदी5 बाल उपन्यास ...Read More राजनारायण बोहरे दतिया (म0प्र0) 5 तीनों अपने रास्ते बढ़े। आधी रात को इन्हें वह ढाणी दिखी। बौने आकार की छोटी-छोटी झोपड़ियों वाली उस ढाणी में मुश्किल से बीस-पच्चीस झोपड़ी थी। पटैल को बुलाकर पत्र दिखाया तो उसने बड़ी आव भगत की और रात को ही खाना बनवाकर खिलाया। दूसरे दिन यह लोग अपने पथ पर बढ़ चले। इसी प्रकार ढाणियों के बाद कस्बा, फिर शहर और अन्त में प्रांतीय राजधानी पहुँचकर उन्होंने विश्राम किया। प्रान्तीय खुफिया विभाग का प्रान्तीय कार्यालय इसी शहर मे था।