Sima par ke kaidi - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

सीमा पार के कैदी - 10

सीमा पार के कैदी-10

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

दतिया (म0प्र0)

10

रात गहरा रही थी।

अजय और अभय चुपचाप पटेल की ढाणी से निकलकर उस दिशा में चले जा रहे थे, जिधर कुछ देर पहले काफिला गया था। कुछ दूर चलकर ही रोशनी दिखी।

निकट पहुंचकर देखा ठीक वैसे ही दस बारह तम्बू तने थे, जैसे आते वक्त इन्होंने डाकुओं के देखें थे।

कुछ देर छिपे रहकर देखने पर पता चला कि केवल एक सैनिक बाहर था, बांकी सैनिक एक बड़े से तम्बू के अंदर थे। उस डेरे के अंदर से जोर से हंसने और ठहाके लगाने की आवाज आ रही थी। बाहर वाला सैनिक कंधे पर बंदूक ताने खाना पकाने में व्यस्त था। जब कि पास में एक ओर भारतीय बंदी बंधे हुए पड़े थे।

अजय और अभय एक कोने में दुबक़े रहे।

कुछ देर बार अचानक ही बाहर वाला खाना पकाता सैनिक भी भीतर चला गया। अजय ने अपना थैला साथ लिया और वह खाने की भट्टी की ओर लपका। एक बड़े सी पतीले मे ंतरकारी पकाई जा रही थी।

अजय ने वही शीशी जो राजधानी में विदेश विभाग के कुत्तों को मिठाई में मिलाकर खिलाई थी, निकाली, और आव देखा न ताव, भट्टी पर पकते बड़े पतीलें में उड़ेल दी। वह तुरंत ही पीछे लौट पड़ा।

सैनिक काफी देर बाद बाहर आया, तब तक दोनों एक कोने में बैठे रहे।

कुछ देर बाद इन लोगों का खाना हुआ। सभी सैनिक बाहर आगये थे और खुले में चाँदनी रात में जमीन में नीचे ही बैठ गये थे। एक-एक थाली में पांच-पांच तथा छै-छै सैनिको ने खाना लिया और जल्दी जल्दी भकोसना शुरू कर दिया।

दम साधे बैठे अजय और अभय इंतजार कर रहे थे।

एक घंटा बाद अजय की दवा का असर शुरू हुआ।

एक-एक करके सैनिक जमीन पर लुड़कने लगे। जब आखिरी सैनिक भी लुढ़क गया तो अजय बोला उठा-’’हुर्रे । अब गये साले पांच-छै घंटे को।’’

निर्भय होकर ये लोग डेरे की ओर बढ़े।

भूख और थकान के कारण भारतीय बंदियों को नींद नहीं आ रही थी। अजय ने उनको झिंझोडा। देखते ही देखते सब के सब उठ कर बैठ गये। अजयने कहा ‘‘ मुबारक हो आप सबको। हम लोग भारतीय बच्चे हैं। आपको कैद करने वाले बेहोश हो चुके हैं। ’’

वे सब चौंकते हुए दोनांे बच्चों को देख रहे थे।

अभय ने तत्परता से उनके बंधन खोले, तब तक अजय ने बेहोशी की दवा वाले तरकारी के पतीले को छोड़कर बांकी बरतन देख डाले। दो पतीलों में चावल और थोड़ा खाना भी बचा था। वह उसने भारतीय लोगों में बांट दिया।

खाते हुये बंदियों की आंखों में खुशी के आंसू बह निकले।

खाने के बाद अजय ने उन सबको सलाह दी कि वे जल्दी से बेहोश सैनिकों की वर्दी निकालकर पहन लें।

फिर क्या था कैदियों की फुर्ती देखने लायक थी। आनन-फानन में सब तैयार थे, सबके चेहरों पर एक अलौकिक तेज दिख रहा था।

संयोग से उतने ही घोड़े थे जितने कैदी आदमी थे। अजय और अभय भी एक एक घोड़े पर बैठ सकते थे।

अजय ने एक पल रूकने को कहा और कुछ सोच कर डेरे के बीच में एक डण्डे से बधे झंडें को देखने लगा फिर फुर्ती से उसे उठाया और अभय को भी एक दूसरा झंडा उठाने का इशारा किया।

बस सेना तैयार थी।

’’जय बजरंग बली’’ के गगनभेदी नारों के साथ सब घोड़े सीमा की ओर दौड़ पड़े।

जब चौकियाँ काफी निकट रह गई, तो अजय ने अपने घोड़े की गति कम की। उसने कैदियो से पूछा कि उनमें से कोई ऐसा है क्या जो सेना की चौकियों से बचते हुए सीमा पार करने का रस्ता जानता हो। एक व्यक्ति ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और कहा कि वह जानता है। अजय ने उसे आगे चलने को कहा। अन्य घोड़े उसके पीछे लपके।

ये ऐसी डगर से गुजर रहे थे जहाँ से दोनों चौकियाँ एक-एक मील दूर थी। सभी कुछ शांति से हो रहा था, कि अचानक ऐसी आहट गूँजी, जैसे कुछ लोग दाँयी ओर से चले आ रहे हों। अजय शंकित हो उठा। इशारा पाकर सब रूक गये।

कुछ देर बाद अंधेरे में पैदल चली आती दस-बारह परछांइया दिखी।

निश्चित ही सेना की एक टुकड़ी चली आ रही थी।

अजय ने एक पल विचार किया और सेना का झंडा ऊपर उठाते हुये वह चीखा- ‘‘ या फतह !’’

-’’या फतह!’’ परछांइयों से दिखते लोगों ने भी पुकार लगाई। लगता था कि उन्हें विश्वास हो गया था कि सामने वाले लोग उनके ही देशवासी सैनिक हैं।

मौका ठीक देखकर अजय ने अपने घोड़े का ऐड़ लगा दी । बाकी सबके घोड़े फिर दौड़ पड़े। अब कोई भय न था। अजय जरूर सोच रहा था कि यदि उन सैनिकों को शक कभी हो गया होगा तो क्या कर लेंगे वैसे भी वे सैनिक पैदल थे, पीछा नहीं कर सकते थे।

सरपट दौड़ते घोड़े भारतीय सीमा पार कर गये। अजय और अभय ने अपने हाथ के झण्डे उतार लिये और उन्ही डण्डों पर अब तिरंगा लहराने लगा।

आगे जाकर वे सब रूके । अजय ने उन सबके घर आदि के बारे में पूछा तो पता लगा कि सभी बंदी आस-पास बसी ढाणियों के थे। अजय उन्हें वरदी उतार कर अपने-अपने घर जाने को कह ही रहा था, कि अचानक उन पर तेज लाईट पड़ी और तेज स्वर गूँजा- ‘‘कौन है उधर?’’

अजय ने अंदाज लगा लिया कि ये भारतीय सैनिक है।

-----12