Sima par ke kaidi - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

सीमा पार के कैदी - 7

सीमा पार के कैदी 7

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

दतिया (म0प्र0)

7

जब कार्यालय बंद हुये। लोग निकले।

अजय ने मंजूर की ओर इशारा किया, और अभय उसके पीछे लग गया।

तेरह नम्बर की बस में मंजूर मियाँ के पीछे ही अभय बैठा।

अभय को बस में बैठते देख अजय ने राहत की सांस ली। दुकान बंद होते समय उसने रेस्टोरेंट मालिक से वहीं सोने की अनुमति मांग ली।

अपने बस स्टॉप पर मंजूर अली जैसे ही उतरा, अभय भी उतर पड़ा। सांझ का धुंधला सा पड़ता जा रहा था।

बेचारे क्लर्क का मकान अपेक्षाकृत छोटा था, छोटे मोहल्ले में। मंजूर अली एक जगह कुछ लोगों को खड़ा देखकर रूका। उसने पूंछा- ‘‘क्यों भई, कोई खास बजह है क्या ?

वहाँ खड़े लोग सकपका गये। आखिर मंजूर अली विदेश विभाग में था। मिलिट्री शासन में लोगों की जुबानों पर ताले रहते हैं।

बड़ी मुश्किल से एक ने मौन तोड़ा-’’ बात ये है भाई मियाँ, कि सामने वाले कुयें का भूत आज कल रात को यहाँ टहलता है। कई बार लोगों ने देखा कि टहलते हुये वह अचानक ही गायब हो जाता है।

-हूं ...बकबास..तुम भी जुम्मन मियाँ कहाँ का रोना लेकर बैठे हो। अरे लोग चाँद पर जा रहे हैं, तरक्की कर रहे हैं और आपको भूत दिख रहे हैं। ’’मंजूर अली ने बुरा सा मुँह बनाया।

-’’ये बात बिल्कुल सही है- मंजूर मियाँ, तुम्हें पता होगा कि हमारी बस्ती जिस जमीन पर बनी है, इस जगह पहले कब्रिस्तान था। रात के अंधेरे में आज उन्हीं लोगों को रूह यहाँ घूमती हैं जो यहां दफन हुए पड़े हैं। ’’ बूढ़े जुम्मन मियाँ बोेले।

‘‘ठीक है बाबा, खूब घूमे। ’’कहते हुये मंजूर मियाँ घर की तरफ चल दिय़े।

अभय को भूत वाली बात पर माधोपुर की गढ़ी की याद आ गई जहाँ खेल-खेल में अजय और अभय ने प्रेतों की पोल खोली थी। वहाँ भी किस प्रकार प्रेतों का आतंक था। लोग काँपते थे। अंत में वे प्रेत कितने झूठे निकले।

मंजूर अली अपने घर में प्रविष्ट हो चुके थे। बरतन खटकने की आवाज आ रही थी। अभय अपने को छिपाता हुआ झाड़ियों में जा बेठा और रात का इंतजार करने लगा।

रात ग्यारह बजे।

चारों ओर सन्नाटा।

अभय ने वातावरण का जायजा लिया और उसके कदम क्लर्क मंजूर अली के घर की ओर बढ़ गये। मकान के बाहर अहाता बना था।

छलांग लगाकर वह उछला और अहाते की दीवार के भीतर कूद गया। अहाता पार करके उसने खिड़की से भीतर झांका। पहला कमरा खाली था, उसके बाद का दूसरा कमरा दिख रहा था, जिसकी खिड़की दाँयी ओर की खाली जगह में खुलती थी।

अभय ने उधर जाकर देखा, वह खुश हो गया । खिड़की ख्ुाली थी और कमरे में केवल दो प्राणी थे। मंजूर अली व उसकी पत्नि दो पलंगों पर सो रहे थे।

अभय लौटा, अहाते की दीवार से सटकर उसने एक स्थान पर कपड़े उतार कर रखना शुरू कर दिया, केवल अंडरवियर पहने रहा। वह धरती पर झुका और मुट्ठी में धूल लेकर अपने शरीर पर मलना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद उसके सारे बदन पर एक धूमिल आभा छा गई थी।

अब उसने ढूँढकर कोयले का एक टुकड़ा उठाया और एक पत्थर पर घिसकर अंगुली से कोयले का चूर्ण अपने शरीर पर सीधी लकीरों के रूप में लगाने लगा, दो चार जगह उसने दीवार पर पुते चूने का भी प्रयोग किया ओैर कुछ क्षणों बाद वहाँ पर अभय की जगह एक भयानक दरिंदा खड़ा नजर आ रहा था। अब अभय अपने सामान पर झुका, उसमें से पेंसल टार्च और काँच काटने की पेंसल तथा एक इंजेक्शन निकालकर वह खिड़की की ओर बढ़ा।

खिड़की का कांच काट कर वह खिड़की में से होकर कमरें के अन्दर प्रविष्ट हुआ। सबसे पहले उसने लाईट बुझाई, और पेंसल टार्च को जलाकर ऐसे कोने में रख दिया, जहाँ से केवल उसी पर प्रकाश पड़ रहा था।

अब पास आकर गहरी नींद में सोते हुये मंजूर अली को उसने झिझोड़ा।

अधनींदे मंजूर अली ने देखा एक अर्धमानव सा दरिंदा उसे उठा रहा है। आश्चर्य्र से पलकें झपकाता वह उठा। झीने से कमजोर उजाले में अभय का खौफनाक मेक-अप देख क्षण भर में उसे डर महसूस हुआ फिर उसने जाने क्या अंदाज लगाया। वह हकलाते हुये बोला-’क...क...क..को ..कौन हैं आप।

-मैं हिन्दुस्तानी आत्मा हूँ, मंजूर अली तुम्हंे अपने साथ लेने आयी हूँ। ’’ अभय का खरखराता स्वर गूँजा।

मंजूर अली के माथे पर पसीना आ छलकता उठा।

वह फिर बोला- ’’मै...मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। ?

-’’तुमने हजारों हिन्दुस्तानियों को गिरफ्तार किया है।’’

-’’मैंने ...मैने नहीं किया ...उन्हें तो मिलिट्री ने किया है।’’

-’’ उन लोगों के नाम क्या है, जिन्होंने गिरफ्तार किया है।’’

-’’उन सबके नाम फाइल में लिखे हैं।

-’’कौन सी फाइल ,?’’

-’’फाइल नम्बर चौदह । तीसरे रैक में दूसरे खाने में रखी है। उसी में गिरफ्तार भारतीय लोगों के नाम हैं।

-’’शाबास ! मंजूर बेटे।

-’’अब मुझे तो कुछ नहीं होगा। ’’ मंजूर गिड़गिडाया।

- हाँ, अब तुम सो जाओ।’’

और सोते हुये मंजूर ने अनुभव किया कि एक सुई उसकी बांह में चुभती चली गई। जिसका असर तत्काल होने लगा और उसकी आँखें मुंदती चली गई।

अब अभय उसकी पत्नि की ओर मुड़ा, जो जाग गई थी ओर आश्चर्य से अभय को देख रही थी। अभय ने बची हुई सिरिंज की दवा उसकी बांह में लगा दी तो वह भी नींद महसूस करने लगेी। दोनों पति-पत्नि मौत से बाजी लगाने लगे।

उन दोनों से आश्वस्त होकर अभय अपना सामान लेकर खिड़की के रासते बाहर आया और अपना मेकअप मिटा कर कपड़े पहने फिर अपना ट्रांसमीटर सेट निकालकर अभय से सम्पर्क करने लगा।

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