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अर्पण--भाग (७)

देवनन्दिनी से कुछ देर बातें करके श्रीधर अपने केबिन में चला गया लेकिन देवनन्दिनी कुछ परेशान सी हो गई थी श्रीधर की बातें सुनकर, क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी छोटी बहन को ये एहसास हो कि वो बिल्कुल अकेली है और उसका ख्याल रखने वाला कोई नहीं है,वो जल्द ही इस समस्या का समाधान खोज निकालना चाहती थी,वो दिनभर अपने केबिन में चैन से ना रह पाई,उसे लग रहा था कि सच में वो अपनी छोटी बहन का ख्याल नहीं रख पा रही,अपने पिता जी को उनकी मृत्यु के समय उसने जो वचन दिया था कि वो हरदम राज का ख्याल रखेगी वो उस पर खरी नहीं उतर पा रही है।।
देवनन्दिनी ने आज आँफिस का कोई भी काम नहीं किया और ना ही अपने केबिन से बाहर निकली,आज उसका मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था,उसे आज खुद से शिकायत थी कि मिल के काम और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच वो अपनी छोटी बहन को समय नहीं दे पा रही थी,इसी तरह सोचते सोचते दोपहर हो आई,दोपहर के खाने का समय हो आया था तभी रामू ने देवनन्दिनी को आवाज दी और देवनन्दिनी का ध्यान टूटा____
रामू ने देवनन्दिनी से कहा...
दीदी! मैं रामू।।
आजा रामू! अन्दर आजा,देवनन्दिनी बोली।।
दीदी! खाना परोस दूँ,रामू ने पूछा।।
रामू! आज खाना वापस ले जा,खाने का मन नहीं है,देवनन्दिनी बोली।।
लेकिन क्यों दीदी! ,रामू ने पूछा।।
आज मन कुछ उदास सा है,देवनन्दिनी बोली।।
मुझे पता है दीदी! आप क्यों उदास हैं,छोटी दीदी अस्पताल में भरती हैं शायद इसलिए आप परेशान हैं,रामू बोला।।
हाँ! रामू! मैं कितनी अभागन हूँ जो अपनी छोटी बहन को समय नहीं दे पाती,मिल के काम काज और सामाजिक जीवन में इतना उलझ चुकी हूँ कि अपनी प्यारी बहन को ही भूल गई हूँ,देवनन्दिनी ने उदास होकर रामू से कहा।।
लेकिन दीदी! अगर आप कारोबार नहीं सम्भालेंगीं तो फिर कौन है ?आपकी जिम्मेदारियों में हाथ बँटाने वाला,आप अपने कर्तव्य से तो कभी भी पीछे नहीं हटीं,बस आपको अन्य कामों के लिए समय ही नहीं मिलता,इसमें आप कहीं पर भी गलत नहीं हैं,रामू बोला।।
लेकिन दुनिया ये नहीं समझती ना! सब तो मुझे ही दोषी ठहराते हैं,देवनन्दिनी बोली।।
ऐसा नहीं है दीदी! आप इन सबके लिए स्वयं को दोषी ना ठहराएं,पहले आप शान्त मन से खाना खाइए फिर कुछ सोचते हैं इसके बारें में,रामू बोला।।
खाना वापस ले जा रामू! मैं आज खाना ना खा पाऊँगीं,देवनन्दिनी बोली।।
ना दीदी! ऐसा मत कीजिए, घर की और कारोबार की सभी जिम्मेदारियाँ आपके ऊपर हैं,आप खाएँगी पिएँगी नहीं तो आपका शरीर कमजोर हो जाएगा,आपके ही दम पर ही तो हम सब हैं,रामू बोला।
लेकिन आज मैं खुद को कमजोर पा रही हूँ,जिम्मेदारियाँ निभाते निभाते थक चुकीं हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
आप कैसें थक सकतीं हैं ? दीदी! हिम्मत रखिए,सब ठीक हो जाएगा,पहले आप खाना खा लीजिए,रामू बोला।।
रहने दे ना! आज खाने का मन नहीं है,जबरदस्ती मत कर देवनन्दिनी बोली।।
खाना तो आपको खाना पड़ेगा,चाहें थोड़ा ही सही,रामू बोला।।
ठीक है तो,इतनी जिद़ कर रहा है तो लगा दे प्लेट लेकिन थोड़ा ही खा पाऊँगी,देवनन्दिनी बोली।।
ठीक है,रामू बोला।।
और रामू ने नन्दिनी के लिए खाना लगा दिया,खाना खाने के बाद नन्दिनी,रामू से बोली___
तेरे मन में इस समस्या का कोई हल हो तो बता,
दीदी! हैं तो लेकिन,रामू बोला।।
तो बोल,अचानक चुप क्यों हो गया,देवनन्दिनी बोली।।
वो क्या है ना दीदी! आप को छोटी दीदी के साथ बड़ी बहन की तरह नहीं एक दोस्त की तरह पेश आना होगा जितना हो सके आप ज्यादा से ज्यादा समय उनके साथ ब्यतीत करें,उनको अकेला ना रहने दे,वो आपसे छोटीं हैं और आपका बड़प्पन बरकरार रहें इसलिए वो दिल खोलकर आपसे कोई भी बात नहीं करतीं इसलिए किसी ऐसे इन्सान को जरिया बनाइए जो छोटी दीदी के मन की बात आप तक पहुँचा सकें,आपकी समस्या का यही सबसे बड़ा समाधान होगा,रामू बोला।।
बिल्कुल सही कहा तूने रामू! ऐसा तो मैने कभी नहीं सोचा,इसलिए मैं आज तक राज के मन तक ना पहुँच पाई,बड़ी होने के नातें वो मुझे मान देती है शायद इसलिए वो अपने मन की बातें मुझसे दिल खोलकर नहीं कह पाती,यही आज तक मैं ना समझ पाई लेकिन अब मैं ऐसे इन्सान को कहाँ ढूंढूं जो राज के मन की बात मुझ तक पहुँचा सकें,देवनन्दिनी ने रामू से कहा।।
दीदी! अब तो ये आपको स्वयं सोचना पडे़गा,रामू बोला।।
हाँ! याद आया रामू! मैं जानती हूँ कि वो शख्स कौन है? देवनन्दिनी चहकते हुए बोली।
आखिर कौन हैं वो?रामू ने पूछा।।
वो हैं श्रीधर बाबू! मैनें अक्सर देखा है कि जब राज उनके साथ होती है तो बहुत ही खुश नज़र आती है,अब मैं श्रीधर बाबू से कह दूँगी कि वो अब ज्यादातर समय राज के साथ अस्पताल में ही बिताया करें और राज के मन की बात मुझसे बताया करें,देवनन्दिनी बोली।।
तब तो दीदी! ये तो बहुत अच्छी बात है,चलिए आपकी समस्या का समाधान हो गया,अब आप निश्चिन्त हो जाइए,रामू बोला।।
तूने बिल्कुल सही कहा,रामू!,देवनन्दिनी बोली।।
अब आप चिन्ता मत कीजिए,जब तक छोटी दीदी सेहदमंद नहीं हो जातीं तब तक आप श्रीधर बाबू से कहिए कि वो ज्यादातर समय उनके संग अस्पताल में रहें,रामू ने नन्दिनी से कहा।।
यही सही रहेगा ,नन्दिनी बोली।।
तो आज से ही आप इसकी शुरूआत कर दीजिए,आप श्रीधर बाबू से इस विषय पर बात कर लीजिए और अभी ही उन्हें अस्पताल जाने को कहिए,रामू बोला।।
ठीक है तो तू ! अब घर जा ,मैं श्रीधर बाबू से इस विषय पर बात करती हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
रामू ने खाने का डब्बा पैक किया और घर चला गया,इधर नन्दिनी,श्रीधर के केबिन में पहुँची और संकोच करते हुए श्रीधर से बोली____
श्रीधर बाबू! अगर आप बुरा ना मानें तो आपसे कुछ कहना चाहती हूँ...
जी,कहिए! श्रीधर बोला।।
लेकिन कुछ संकोच सा होता है,नन्दिनी बोली।।
जी,जो भी बात है आप बिना संकोच के कह सकतीं हैं,श्रीधर बोला।।
मुझे डर है कि कहीं आप बुरा ना मान जाए,नन्दिनी बोली।
जी देवी जी! भला मैं बुरा क्यों मानने लगा,श्रीधर बोला।।
क्योंकि , काम ही कुछ ऐसा है,नन्दिनी बोली।।
आप बात को कुछ ज्यादा ही खींच रहीं हैं,जो कहना है कहिए,मेरे वश में होगा तो जरूर करूँगा,श्रीधर बोला।।
जी,बात ये है कि राज के मन की बात मैं जान नहीं पाती,मैं उसकी बड़ी बहन हूँ तो वो मेरा बड़प्पन बनाए रखने के लिए अपने मन की बात मुझसे नहीं कह पाती,इसलिए मैं चाहती हूँ कि जब तक वो अस्पताल में है तब तक आप उसके साथ अस्पताल में रहें,नन्दिनी बोली।।
जी,मैं राज जी के पास अस्पताल में तो रह लूँगा लेकिन यहाँ मिल के काम का क्या होगा?श्रीधर ने नन्दिनी से कहा।।
श्रीधर बाबू! आप मिल के काम की बिल्कुल भी चिन्ता ना करें,मैं यहाँ सबकुछ सम्भाल लूँगी और अगर आप मुनासिब समझें तो इस काम के लिए आपके वेतन में भी बढ़ोत्तरी की जा सकती है,देवनन्दिनी बोली।।
कैसीं बातें करतीं हैं आप? देवी जी! क्या मैं इन्सानियत नहीं समझता?हमेशा पैसा ही सबकुछ नहीं होता,जिन्दगी जीने के लिए पैसे के मुकाबले भावनाओं की आवश्यकता अधिक पड़ती है,इन्हीं भावनाओं के बल पर ही तो हृदय एक दूसरे से जुड़े रहते हैं,इसलिए मेरी नज़र में पैसें से ज्यादा भावनाऐं अधिक महत्वपूर्ण हैं,श्रीधर बोला।।
तो क्या मैं यह समझूँ कि आप अस्पताल में राज के पास रहने के लिए राजीं हैं?देवनन्दिनी बोली।।
जी,बिल्कुल! अगर मैं दोनों बहनों के मन को मिलाने का जरिया बन सकता हूँ तो इससे मुझे बहुत खुशी मिलेगी,श्रीधर बोला।।
आप ने यह कहकर मेरे मन का बहुत बड़ा बोझ हल्का कर दिया,मैं बता नहीं सकती कि आपकी रजामन्दी से मुझे कितनी खुशी हो रही है,इसके लिए मैं आपकी सदैव एहसानमन्द रहूँगी,देवनन्दिनी बोली।।
ये कैंसी बातें करती हैं आप? और फिर ये तो मैं इन्सानियत के नाते कर रहा हूँ,आप दोनों बहनों का प्यार सदैव बना रहें,श्रीधर बोला।।
ठीक है तो आप अभी इसी समय अस्पताल रवाना हो जाइए,मैं शाम तक अस्पताल पहुँचती हूँ,नन्दिनी बोली।।
जी बहुत बढ़िया,तो मैं फिर अस्पताल की ओर निकलता हूँ,श्रीधर बोला।।
जी,ठीक है,नन्दिनी बोली।।
जैसे ही श्रीधर अस्पताल जाने को हुआ तो नन्दिनी ने उसे टोकते हुए कहा___
श्रीधर बाबू.....जरा....सुनिए तो___
जी कहिए,कोई बात है,श्रीधर ने पूछा।।
जी...,नन्दिनी बोली।।
कहिए,श्रीधर बोला।।
मैं ये चाहती थी कि राज के पास जब आप जाए तो कुछ चटपटा सा खाने के लिए जरूर ले जाएं,इससे वो खुश हो जाएगी,नन्दिनी बोली।।
वैसे,क्या ले जाऊँ? आप ही कोई आइडिया दे देतीं तो अच्छा रहता,श्रीधर बोला।।
ऐसा कीजिएगा,आप चटपटी सी भेलपूरी बनवा लीजिएगा ,वो बहुत खुश हो जाएगी लेकिन ध्यान रहें कि कोई भी डाक्टर या नर्स ना देख पाएं,नन्दिनी बोली।।
कमाल है! देवी जी! आप मुझे चोरी करने को कह रहीं हैं और साथ साथ ये भी समझा रही हैं कि पुलिस से भी सावधान रहूँ,श्रीधर हँसते हुए बोला।।
माफ़ कीजिएगा,अगर कुछ गलत कह दिया हो तो,नन्दिनी झेंपते हुए बोली।।
जी,नहीं! देवी!जी! मैं तो मज़ाक कर रहा था,श्रीधर बोला।।
तब तो ठीक है,मुझे तो लगा कि आप शायद मेरी बात का बुरा मान गए,नन्दिनी बोली।।
जी,ऐसा कुछ नहीं है तो अब इजाजत है जाने की,श्रीधर बोला।।
जी,बिल्कुल!अब आप जा सकते हैं,अब ना टोकूँगी,नन्दिनी बोली।।
जी,मुझे भी यही यकीन है कि अब आप मुझे ना टोकेगीं , श्रीधर और नन्दिनी दोनों ही इस बात पर ठहाका लगाकर हँस पड़े ,नन्दिनी को हँसते हुए देखकर श्रीधर बोला___
आप अपना खड़ूसपन वाला रवैया छोड़कर अगर कभी कभी इसी तरह दिल खोलकर हँस लिया करें तो आपका मन भी हल्का महसूस किया करेगा।।
जी,अबसे कोशिश करूँगी,देवनन्दिनी हँसते हुए बोली।।
जी,अब तो नहीं रूकूँगा नहीं तो फिर कोई बात निकल पड़ेगी,श्रीधर बोला।।
जी,अब आप जाइए,नन्दिनी बोली।।
जी,हाँ और इतना कहते ही श्रीधर मिल के बाहर आ गया और अस्पताल जाने के लिए ताँगें को रोका।।
इधर नन्दिनी मन ही मन श्रीधर की बातों को सोच सोचकर मुस्कुराती रही.......

क्रमशः....
सरोज वर्मा....