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अर्पण--भाग (११)

अच्छा ! आप लोगों ने खाना खाया,राज ने सुलक्षणा और श्रीधर से पूछा।।
जी,खाना भी खाया और पार्टी का आनन्द भी उठाया,श्रीधर बोला।।
जी श्रीधर बाबू! आपके गीत ने तो पार्टी में चार चांद लगा दिए, बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी बात का मान रखा और मेरे कहने पर गीत प्रस्तुत किया,राज बोली।!
जी! शहजादी साहिबा का हुक्म जो था, इसलिए मानना ही पड़ा,श्रीधर बोला।।
जी!श्रीधर बाबू! ये हुक्म नहीं था,बस एक छोटी सी गुज़ारिश की थी आपसे,आपकी एहसानमंद हूं जो आपने मेरी बात सुनी,राज बोली।।
कैसी बातें करतीं हैं राज जी! देवनन्दिनी जी की सालगिरह थी,ये तोहफा तो मैं उन्हें दे ही सकता था क्योंकि इन्हें बड़ा तोहफा देने की मेरी हैसियत नहीं है,श्रीधर बोला।।
हैसियत की बातें क्यों करते हैं श्रीधर बाबू! दौलत शौहरत से कुछ नहीं होता, इन्सान की सीरत ही सबकुछ होती है, इन्सानियत ही सच्चा धर्म होता है और आपमें इन्सानियत तो कूट कूटकर भरी है और अगर आगे से आपने कभी ऐसी बातें की तो मैं आपसे रूठ जाऊंगी,देवनन्दिनी बोली।।
अगर ऐसी बात है तो मैं कभी भी आपको रूठने नहीं दूंगा,आप तो ऐसे ही हंसते खिलखिलाते अच्छी लगतीं हैं,आपके चेहरे की मुस्कुराहट सदैव ऐसे ही कायम रहे,श्रीधर बोला।।
श्रीधर की बात सुनकर देवनन्दिनी का मन कमल की भांति खिल उठा,उसके होंठों पर एक प्यारी सी मुस्कान ठहर गई और आंखें शर्म से झुक गई,अब उसे यकीन हो चला था कि श्रीधर के दिल में उसके लिए भी कुछ तो जरूर है।।
श्रीधर! बहुत रात हो चुकी है और बबलू तो सो भी गया है, मैंने उसे भीतर सोफे पर लिटा दिया था,चलो ना अब घर चलते हैं,सुलक्षणा बोली।।
हां! जीजी! मैं भीतर से बबलू को अपनी गोद में उठा लाता हूं,फिर चलते हैं,श्रीधर बोला।।
हां! मैं ड्राइवर से कहती हूं कि मोटर निकाल लें,आप लोगों को घर तक छोड़ आए,देवनन्दिनी बोली।।
ना देवी जी! आप नाहक ही परेशान होतीं हैं,हम चलें जाएंगे,श्रीधर बोला।।
ऐसे कैसे चले जाएंगे? इतनी रात को कोई तांगा भी नहीं मिलेगा और फिर मिल भी गया तो किसी का क्या भरोसा? और फिर ये जरूरी भी तो नहीं कि वो तांगेवाला शरीफ़ ही हो,देखा नहीं आजकल शहर में कितनी वारदातें बढ़ गईं हैं,आए दिन चोरी चकारी की ख़बरें आम हो गईं हैं,राज बोली।।
आप लोग कहते हैं तो ठीक है,हम लोग मोटर से ही चले जाएंगे,सुलक्षणा बोली।।
ये हुई ना बात, मैं ड्राइवर से मोटर निकालने को कहती हूं,तब तक आप बबलू को ले आइए,राज बोली ।।
जी,ठीक है! श्रीधर बोला।।
सुलक्षणा और श्रीधर ने सबसे कहा कि अच्छा तो अब हम चलते हैं और राज ने सबको मोटर मे बिठाकर रवाना कर दिया।।
राज जैसे ही सबको छोड़कर गेट के भीतर आ रही थी तो तभी कमलकिशोर ने उसे पुकारा....
राज....राज....तुम यहां हो और मैं तुम्हें भीतर ढूंढ़ ढूंढ़कर थक गया...
जरा मैं भी तो सुनु कि मेरी तलाश क्यों की जा रही थीं? कोई जलजला या बवंडर तो नहीं आ गया ,जिसे रोकने के लिए मेरी जुरूरत हो, राज बोली।।
तुम मुझसे हमेशा ऐसी उल्टी बातें क्यों करती हो? मुझसे भला ऐसी क्या दुश्मनी है?किशोर बोला।।
क्योंकि तुम हमेशा अपनी विलायतगीरी झाड़ते रहते हो जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है,राज बोली।।
अरे, मैं तो तुमसे ये पूछने आया था कि तुमने कुछ खाया कि नहीं, लेकिन तुम तो हमेशा फालतू की बातें करके मेरा जी जलाती रहती हो,किशोर बोला।।
तुमने खा लिया ना! तो मेरी चिंता छोड़ दो,राज बोली।।
ना! मैं तो सोच रहा था कि हम साथ साथ खाएंगे,किशोर बोला।।
अरे, मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं,तुम जैसा भुक्खड़ अभी तक भूखा बैठा होगा,ऐसा हो ही नहीं सकता,राज बोली।।
तुम कितना गलत समझती हो मुझे, मैं तुम्हारी इतनी चिंता करता हूं और तुम हो कि मुझे टका सा जवाब दे देती हो,किशोर मायूस होकर बोला।।
क्या करूं ?तुम्हारा विलायती गुणगान सुन सुनकर मेरे कान पक गए हैं दिमाग़ भन्ना गया है मुझसे और नहीं सुनी जाती तुम्हारी विलायती बातें,विलायत में ऐसा,विलायत में वैसा, वहां की लड़कियां ऐसी, वहां की लड़कियां वैसी इसलिए तो तुमसे बात करने के लिए बचती रहती हूं,राज बोली।।
लो !जी तो आज के बाद मैं वो बात करूंगा ही नहीं जो तुम्हें नापसंद हो,आज के बाद तो जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगें,तुम दिन को अगर रात कहो तो हम रात कहेंगें,कमलकिशोर बोला।।
बस....बस....किशोर साहब! इतनी मेहरबानी काफ़ी है कि आप विलायती बातें करना बंद कर देगें और इससे ज्यादा कुछ करने की जुरुरत नहीं है,आपकी बातें खत्म हो गई हो तो कुछ खा लें,राज बोली।।
जी,जुरूर! गुलाम को हुक्म करें की आप क्या नोश़ फरमाएंगी,किशोर ने पूछा।।
जी,आज तो आपकी पसंद से काम चला लेंगें,राज बोली।।
जह़ेनसीब, हमारे तो आज नसीब ही खुल गए जो आपने हमारी पसंद को अपनी पसंद कहा,किशोर बोला।।।
जनाब! गलतफहमी में ना रहें,राज बोली।।
अरे,कुछ देर की ही सही ,जरा गलतफहमी में ही जी लेने दीजिए,किशोर बोला।।
ऐसे ही दोनों की बातें चलती रहीं ,साथ साथ खाना भी चलता रहा।।
अब लगभग सभी मेहमान जा चुके थे, इक्का-दुक्का ही बाक़ी थे,उधर कमलकान्त बाबू और देवनन्दिनी,राज और किशोर को साथ साथ बातें करते हुए देख रहे थे, दोनों आपसी नोक-झोंक ,तकरार देखकर कमलकान्त बाबू बोले___
नन्दिनी जी! इन दोनों को साथ साथ देखकर अच्छा लग रहा है ना!काश,
काश! क्या? कमलकान्त बाबू! कहते कहते रूक क्यों गए? नन्दिनी बोली।।
यही कि अगर आपको एतराज़ ना हो तो दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी ना! कमलकांत बाबू बोले।।
अरे! आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली, नन्दिनी बोली।।
और फिर इन दोनों की शादी के बाद इस नाचीज़ को आप अपने काबिल समझें तो....कितने सालों से मैं आश लगाएं बैठा हूं,आपका इंतजार कर रहा हूं कि कभी तो आपकी प्यार भरी नज़र मुझ पर टिकेगी, लेकिन नाकामियां तो जैसे मेरा दामन ही नहीं छोड़ रहीं हैं, आखिर कब तक आप मुझे इन्तजार करवाएंगी, कमलकान्त बाबू ने आज अपने दिल की बात कहते हुए कहा।।
कमलकान्त बाबू! आप ग़लत समझ रहे हैं,मेरा तो पहले से शादी का कोई इरादा ही नहीं था और फिर कभी भी आपसे मैंने कुछ ऐसा नहीं कहा कि आपको लगा हो कि मैं आपसे मौहब्बत करती हूं, नन्दिनी बोली।।
तो क्या आपका जवाब मैं ना में समझूं? कमलकांत बाबू ने पूछा।।
फिलहाल मेरे पास सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज है और उसके बाद ही मैं अपने बारें में सोचूंगी और अगर आज के बाद आप मुझसे इस विषय में बात ना हीं करें तो बेहतर होगा, नन्दिनी बोली।।
ठीक है,जैसी आपकी मर्जी,मैं इन्तज़ार कर लूंगा, जहां इतना किया है तो थोड़ा और सही, कमलकान्त बाबू बोले।।
मैं आपसे ऐसी ही उम्मीद रखती हूं, नन्दिनी बोली।।
और सालगिरह की रात ऐसे ही गिले शिकवे दूर करते हुए बीत गई,किसी के मन में उलझनें थी तो कोई समझ रहा था कि उसकी उलझनें सुलझ गई हैं, लेकिन सबकी जिंदगी में कौन सा मोड़ आने वाला था ? ये उनमें से कोई ना जानता था, लेकिन किसकी क्या उलझनें है? ये ज़िन्दगी को क्या पता? वो तो अपनी रफ़्तार से चलती रहती है।।
इसी तरह उसी जिन्दगी के साथ सब चलते जा रहें थे,इधर राज अब आए दिन किसी ना किसी बहाने से श्रीधर बाबू के घर आती रहती और उधर देवनन्दिनी मिल में श्रीधर की एक झलक पा कर ही खुश हो जाती,उधर श्रीधर के मन में राज के प्रति प्रेम पनप तो गया था लेकिन अभी तक इतनी हिम्मत नहीं हुई थी कि वो राज से अपने मन की बात कह सकें।।
राज भी श्रीधर को अपना बना चुकी थी लेकिन वो तो लड़की थी इसलिए प्रेम का इज़हार करने में उसे संकोच होता था और उधर कमलकिशोर भी ना जाने राज को अपने मन की बात कहना चाहता था कि वो उसे चाहने लगा है अगर राज राजी हो जाए तो वो उससे जल्द ही ब्याह कर लेगा, यहां राज ,कमलकिशोर के प्रेम से अनजान थी और उधर श्रीधर,देवनन्दिनी के प्रेम से अनजान था, कमलकान्त तो सालों से देवनन्दिनी के लिए प्रतीक्षा कर रहा था,उसने देवनन्दिनी से कई बार कहने की कोशिश भी की थी लेकिन देवनन्दिनी हमेशा ये कहकर टाल देती कि अभी राज की जिम्मेदारी उसके पास है।।
तभी एक दिन कमलकान्त बाबू के कहने पर देवनन्दिनी ने राज से बात की रात का खाना खाने के बाद देवनन्दिनी बात करने के लिए राज के कमरें में पहुंची __
राज! मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी....देवनन्दिनी ने राज से कहा।।
जी! दीदी! कहिए,राज बोली।।
वो कमलकान्त बाबू कह रहे थे कि अगर तुम राज़ी हो तो क्यों ना कमलकिशोर और तुम ब्याह के पवित्र बन्धन में बंध जाते,कमलकिशोर की बातों से भी तो साफ़ झलकता है कि वो तुम्हें पसंद करता है,देवनन्दिनी बोली।।
दीदी!ब्याह की इतनी जल्दी भी क्या है? पहले मेरी पढ़ाई तो पूरी हो जाने दीजिए और सच तो ये है कि मैं आपको अकेले छोड़कर जा ना सकूंगी,मेरा आपके सिवा है ही कौन? फिलहाल तो मेरे ब्याह की चिंता आप दिल से निकाल दीजिए और कमलकान्त बाबू से कहिए कि उन्हें अपने भाई के ब्याह की इतनी जल्दी है तो वो और कहीं लड़की तलाश करें,मेरे लिए इन्तज़ार ना करें और वैसे भी उस विलायत रिटर्न नकचढ़े से भला कौन ब्याह करना चाहेगा,राज का जवाब सुनकर फिर नन्दिनी कुछ ना बोल सकी और बोली____
अच्छा तो जैसी तेरी मर्जी,अब चलती हूं, नन्दिनी बोली।।
राज दूसरे दिन श्रीधर के घर पहुंची,तब तक श्रीधर मिल से आ चुका था,उसने सुलक्षणा और श्रीधर से कुछ देर बातें की फिर बोली___
चलिए तो आज कहीं सैर करने चलते हैं।।
भाई मैं तो ना जा पाऊंगी, क्योंकि मुझे बहुत से काम हैं,रात का खाना भी बनाना है,तुम दोनों ही घूम आओ,सुलक्षणा बोली।।
सुलक्षणा दीदी! ये तो ना इन्साफ़ी होगी,आप ना जाएंगी तो मज़ा कैसे आएगा,राज बोली।।
अरे, मैं क्या करूंगी,कबाब में हड्डी बनकर,सुलक्षणा बोली।।
कैसे बातें करती हो ?जीजी! श्रीधर बोला।।
सही तो कहती हूं,मुझे बख्श दो,फिर कभी चल पड़ूंगी तुम लोगों के साथ,अभी तुम दोनों ही जाओ,सुलक्षणा बोली।।
ठीक है तो अगर तुम साथ चलती तो अच्छा होता,श्रीधर बोला।।
कहा ना! तुम दोनों जाओ,अब जिद़ की तो दोनों को थप्पड़ पड़ेगा,सुलक्षणा बोली।।
राज और श्रीधर मोटर में बैठकर सैर को निकल पड़े,आज राज ड्राइवर को संग नहीं लाई थी,आज वो ही ड्राइव कर रही थी।।
दोनों एक तालाब किनारे जा पहुंचे,राज ने मोटर रोकते हुए कहा___
शहजादे! चलिए कुछ देर तालाब की सीढ़ियों पर जाकर बैठते हैं।।
जैसी आपकी मर्जी शहजादी साहिबा! श्रीधर बोला।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....