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निर्णय

नीलम कुलश्रेष्ठ

“हाऊ स्वीट, मैडम !”

“मैडम! आज आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं ।”

“मैडम! आपकी साड़ी का कलर आप पर बहुत ‘सूट’ कर रहा है।”

“अरे! बाबा ! बस भी करो, तुम लोगों ने मेरी इतनी तारीफ़ कर दी है कि मुझे लग रहा है कि मैं और फूलकर बर्स्ट न हो जाऊँ ।” अमि ने झेंपते हुए कहा । तभी बस के ड्राइवर ने हॉर्न बजा दिया । सब लड़कियाँ भागती हुई बस में जा बैठीं । वह भी उनके पीछे जाकर बस के एक कोने में बैठ गयी । आज वह हॉस्टल की लड़कियों के साथ पिकनिक इन्चार्ज बनकर जा रही थी । वह तो पिकनिक पर नहीं जाती, यदि लड़कियां उससे साथ चलने की इतनी ज़िद न करतीं ।

बस अपनी पूरी रफ़्तार के साथ भागी जा रही थी । अमि का मन लड़कियों के शोर, उनकी लापरवाह हंसी, उनके चीख-चीखकर गाने में, किसी में भी तो नहीं लग रहा था । उसे लग रहा था कि वह समय से पहले ही प्रौढ़ हो चुकी है । वह खिड़की से बाहर झांकने लगी, बस न जाने कितने पहाड़ों को छोड़ते हुए घुमावदार पहाड़ी रास्ते पर भागी जा रही थी । अचानक उसकी नज़र एक बादल के टुकड़े पर पड़ गयी जिसने पहाड़ की चोटी को ढंक लिया था लेकिन अब वह उसके ऊपर से धीरे-धीरे हट रहा था । कुछ देर बाद वह बादल का टुकड़ा पहाड़ के ऊपर से हट जायेगा लेकिन उसके जीवन पर पड़ी काले बादल की छांह क्या हट पायेगी ? शायद कभी नहीं । यह सोचकर उसकी आँखें नम हो गयीं । उसने पलकें बंद करके खिड़की के सहारे सिर टिका दिया, अपनी आँखों के आंसुओं को छिपाने के लिये ।

अचानक बस को झटका लगा । वह आगे की ओर झुक गयी। लड़कियों का शोर सुनकर वह चौंक उठी । बस रुक गयी थी । लड़कियों ने बस से उतरना शुरू कर दिया था । फ़ाल की तरफ़ जाने वाला कच्चा रास्ता आ गया था । यहाँ से बस आगे नहीं जा सकती थी । लड़कियों के बहुत कहने पर भी वह आगे फ़ाल पर न गयी । लड़कियों के लंच-बाक्स व अन्य सामान के पास उसने हॉस्टल के नौकर को बैठा दिया और स्वयं एक पगदंडी की तरफ़ बढ़ गयी ।

उसे उस पतली सी, संकरी पगदण्डी पर चलना बहुत भला लग रहा था । पगदण्डी के एक तरफ़ बहुत गहरी गहरी खाइयां थीं, दूसरी तरफ़ छोटे-छोटे पेड़ों की कतार । उसका मन हुआ कि खाई में छलांग लगाकर अपने जीवन का अन्त कर दे लेकिन यह सोचकर रुक गयी कि यदि उसे मरना ही होता तो उसी दिन ही वह ट्रेन से कूद जाती । क्यों बेकार भटकती हुई इस कॉलेज में आ पहुंचती । जब वह चलते-चलते थक गयी, तो एक पेड़ के पीछे खड़े नवदम्पति की ओर आँखें उठ गयीं । उनके हाव-भाव देखकर उसके होंठों पर फीकी-सी मुस्कराहट तैर गयी । वह और समीर भी तो शादी के बाद यहाँ आये थे । वह भी कितनी ख़ुश थी समीर को पाकर । समीर ने ही तो उसे नाम दिया था ‘अमिता’ , लेकिन फिर वह और भी छोटा हो गया था ‘अमि’ । समीर का हाथ पकड़े हुए उसे नीचे पहाड़ों की ऊंचाइयां नापते हुए न जाने कितने दिन बीत गये थे, उसे कुछ भी नहीं मालूम हो पाया था । उसे लगा था कि वह दुनियाँ की सबसे ख़ुश नसीब औरत है जिसे समीर जैसा हम सफर मिला है ।

गर्मियों समाप्त होते ही वे दिल्ली लौट आये थे । दिन भर उसका शाम के इंतज़ार  में कट जाता था । समीर शाम को साढ़े पाँच बजे तक घर आ जाता था । उसके घर पर आते ही उसे ऐसा लगता कि दिन-भर की उदासी उससे बहुत दूर चली गयी है । शाम को कोई न कोई प्रोग्राम बन ही जाता था -कभी मार्केट, कभी पिक्चर, कभी रेस्तरां । अमि इतनी सारी ख़ुशियां अपने आंचल में समेटकर फूली नहीं समा रही थी ।

एक दिन समीर ऑफ़िस से बहुत ख़ुश लौटकर आया था । उसने बताया था कि उसके साथ काम करने वाली रीटा ने उन लोगों को अपने घर चाय के लिये बुलाया है । उस दिन समीर अमि की सजावट का बहुत खयाल रख रहा था । उसी की पसन्द के अनुसार अमि ने डार्क कलर की साड़ी पहनी थी तथा बालों को ‘बीहाइव’ में सेट किया था । समीर भी डार्क सूट में कम सुन्दर नहीं लग रहा था । वे लोग रीटा के घर पहुंचे थे । रीटा ने उन लोगों का मुस्कराते हुए स्वागत किया था । अमि रीटा की तड़क-भड़क देखकर संकुचित हो उठी थी। उसे लग रहा था कि उसका सारा मेकअप रीटा के मेकअप के सामने फीका पड़ गया है । जब तक वह रीटा के घर रही तब तक वह रीटा और समीर की बातों में ‘हाँ, हूँ ’ ही करती रही थी । न जाने क्यों रीटा को पहली बार ही देखकर वह उससे विरक्त हो उठी थी । उसे रीटा का मुँह को विभिन्न कोणों से बनाकर बात करने का ढंग, बात करने का विषय कुछ भी तो न रुचा था । उसे लगा था, रीटा सिर्फ एक सस्ती-सी लड़की है । वे काफी देर बाद घर लौटे थे । व्यावहारिकता के कारण अमि भी रीटा को अपने घर आने के लिये निमंत्रित कर आयी थी । उस दिन घर लौटकर अमि ने पूछा था, “समीर ! रीटा कैसी लड़की है ?”

“क्यों, क्या बात है ? क्या ख़राबी है रीटा में? अच्छी-खासी लड़की है ।तुम देख तो आयी हो ।”

“नहीं, मैं तो वैसे ही पूछ रही थी । मुझे उसका व्यवहार ज़रा भी नहीं रुचा ।”

समीर ने मुस्कराते हुए कहा था, “ओ ! शायद इसलिये न कि वह मुझसे खुलकर बात कर रही थी । तुम्हें उसका व्यवहार अजीब लगा ही होगा । लेकिन वह सारे ऑफ़िस के लोगों से ऐसे ही बात करती है ।”

“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है । रीटा चाहे जैसी भी लड़की हो, लेकिन मुझे तुम पर पूरा-पूरा विश्वास है।” कहते हुए अमि ने समीर के सीने पर सिर रख दिया था । बहुत ही विश्वास के साथ ।

कुछ दिनों बाद ही रीटा उन लोगों के घर आयी थी । फिर तो एक सिलसिला ही शुरू हो गया था- कभी अमि व समीर रीटा के घर चले जाते थे, कभी वह ही उनके घर आ जाती थी । अब अमि को उसकी कोई भी बात अरुचिकर नहीं लग रही थी । शायद वह उसके व्यवहार की अभ्यस्त हो गयी थी । लेकिन फिर भी वह रीटा को सहज रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी । लाख चाहने पर भी ।

कुछ दिन वह माँ के पास रहकर अचानक दिल्ली से इतवार को वापिस लौटी थी, क्योंकि समीर का बहुत दिनों से कोई पत्र नहीं मिला था । उसने अपने फ़्लैट की कालबेल बजायी थी, लेकिन कहीं कोई आहट नहीं सुनायी दी । अचानक उसकी नज़र दरवाजे पर लटके बड़े ताले पर पड़ गयी । हो सकता है समीर कहीं घूमने चला गया हो, वह सोचकर वह बुझ-सी गयी थी । तभी उसे पड़ोस के फ़्लैट से मिसेज वर्मा की आवाज़ सुनायी दी । वह उसे बुला रही थीं, “अमिताजी ! इधर ही आ जाइए । लगता है मिस्टर समीर कहीं घूमने चले गये हैं ।”

वह उदास कदमों से मिसेज वर्मा के फ़्लैट की ओर बढ़ गयी थी ।

“एक बात कहूं, अमिताजी ? यदि आप बुरा न मानें ।” मिसेज वर्मा ने चाय का प्याला अमि को देते हुए कहा था ।

“एक नहीं आप अनेक बातें कहिये । ऐसी क्या बात है जिसे पूछने के लिए मेरी आज्ञा की ज़रुरत पड़ गयी ?” अमिता ने प्याले को पकड़ते हुए कहा था ।

“दरअसल बात आपसे ही सम्बन्धित है । मैं आपसे यह पूछना चाहती थी कि मिस्टर समीर के ऑफ़िस में काम करने वाली रीटा किस ‘टाइप’ की लड़की है, जिसके बारे में आपने पहले भी मुझे बताया था।”

“क्यों ? क्या बात है रीटा के विषय में ?” कहने के साथ-साथ उसका दिल अनजानी आशंका से धड़क उठा था ।

“शायद आपको यह जानकर बुरा लगेगा कि जब से आप अपनी मां के पास गयी हैं, तब से ही रीटा आपके घर में मिस्टर समीर के साथ रह रही है । रोज़ शाम को वे इसी तरह घूमने चले जाते हैं ।”

“यह आप क्या कह रही हैं, मिसेज वर्मा?” कहने के साथ ही उसके साथ से चाय का प्याला छूट गया था।

“मुझे मालूम था कि आप विश्वास नहीं कर पायेंगी, लेकिन आज अपनी आँखों से स्वयं देख लीजिये ।”

अमि का सिर मिसेज वर्मा की बात सुनकर चकरा रहा था । उसे लग रहा था कि काश ! यह सब झूठ हो जो मिसेज वर्मा ने उससे कहा है । अनजाने में ही उसकी आँखों से आंसुओं की झड़ी लग गयी थी । उसे मालूम नहीं पड़ पाया था कि वह कितनी देर तक ऐसे ही रोती रही थी । मिसेज वर्मा की सांत्वना भी कुछ नहीं कर पा रही थी । अचानक वह टैक्सी के रुकने की आवाज़ से चौंक गयी थी । तभी मिसेज वर्मा तेज़ी से उसके पास आयी और बोली थीं, “जल्दी आइए, वे लोग वापिस आ गये हैं ।”

उसने धड़कते दिल से मिसेज वर्मा के फ़्लैट से देखा था कि दो साये उसके फ़्लैट की तरफ़ बढ़ते जा रहे हैं। वह हलकी रोशनी में उनको आंसूभरी आंखों से पहचान गयी थी कि उनमें से एक साया समीर का था दूसरा रीटा का । यदि मिसेज वर्मा उसे सहारा नहीं देती, तो शायद वह वहीं गिर जाती । वह उनके कंधे से लगी रोती रही थी । वह कुछ भी नहीं समझ पा रही थी कि क्या करे ?

अचानक वह डगमगाते हुए पैरों से अपने फ़्लैट की ओर चल पड़ी थी । उसने अपना सारा साहस बटोरकर अपने फ़्लैट की कालबेल बजायी व आने वाले क्षणों के लिये अपने को तैयार करने लगी । तभी दरवाजा खुला था । समीर खुले दरवाजे के बीच हक्का-बक्का सा खड़ा था । उसके मुंह से इतना भर निकल पाया था, “अमि ! तुम?” अमि का गला इतना भर गया था कि वह कुछ भी न बोल पा रही थी । उसे समीर के पीछे से रीटा की आवाज़ सुनायी दी थी, “ओहो ! अमिताजी ! आप हैं?”

अमि को लगा था कि पहली बार उसके नाम के आगे से मिसेज हटाकर रीटा ने उसे अपने नाम के आगे जोड़ लिया है । रीटा कहती जा रही थी, “तो आप समीर का निर्णय जानने आयी हैं । तो आप को बता दूँ कि समीर ने आपसे तलाक लेने के लिए कॉर्ट में ‘एप्लीकेशन’ भी दे दी है । कहिये अब आपका क्या विचार है?”

समीर के मौन ने ही रीटा की बात की पुष्टि कर दी थी । अब उसके लिये बाकी ही क्या बचा था ? वह अपनी सिसकी दबाते हुए वहाँ से भागी थी ।

मिसेज वर्मा के फ़्लैट में जाकर जैसे-तैसे अपना सामान समेटकर दिल्ली से चल पड़ी थी । एक बार तो उसका मन हुआ था कि ट्रेन से छलांग लगाकर सब कुछ समाप्त कर दे, लेकिन यह सोचकर रुक गयी थी कि एक सस्ती-सी लड़की के लिये वह अपने जीवन की अमूल्य निधि को क्यों गंवाये ।

एक क्षण में ही उसकी सारी दुनियाँ नीरस हो चुकी थी । बीतते हुए समय के साथ समीर ने उससे तलाक ले लिया था । वह भी इस पहाड़ी जगह पर आ बसी थी अपनी छोटी-सी दुनियाँ समेटे हुए । उसके दिल की वीरानियाँ धीरे-धीरे पांव फैलाकर उसके अस्तित्व को अपने में समेटती जा रही थीं । उन्होंने उसके अस्तित्व को ढंककर उसके जीवन को हॉस्टल से कॉलेज व कॉलेज से हॉस्टल या फिर पुस्तकों के ढ़ेर तक सीमित कर दिया था । शायद वह इसी तरह ज़िंदगी का बोझा ढोते हुए जीती रहती यदि सुमेश उसकी ज़िंदगी में आंधी की तरह नहीं आ जाता । वह अपने को इस आंधी के थपेड़ों से नहीं बचा पा रही थी । लाख चाहने पर भी ।

एक दिन वह खोयी-खोयी-सी स्टाफ़ रूम में अपने जीवन के बारे में सोचती हुई बैठी थी । अचानक उसे सह प्राध्यापक सुमेश की आवाज़ ने चौंका दिया था । “अमिताजी ! आप इतना गम्भीर क्यों रहती हैं ? बीती हुई यादों की लाश पर रोने से क्या फायदा ? यह ज़िंदगी सिर्फ हमें सभी परिस्थितियों में ख़ुश रहने के लिये मिली है ।”

वह कुछ भी तो न कह पायी थी, बल्कि सुमेश के इस अधिकारपूर्ण स्वर के कारण वह सिहर उठी थी । उसी दिन से अमि को अपने में कुछ अन्तर महसूस होने लगा था । वह अधिक से अधिक ख़ुश रहने का प्रयत्न करने लगी थी, शायद सुमेश के लिये ही । वह अपने कमरे में उसके बारे में ही सोचती न जाने कब तक बैठी रहती, लेकिन जब उसे यथार्थ का खयाल आता, तो घबरा उठती और सोचती, उसे सुमेश के लिये अपने में इस तरह की भावना नहीं लानी चाहिये । वह एक भारतीय विवाहिता स्त्री है जिसके लिये पति के अलावा किसी और के विषय में सोचना भी पाप है । तो क्या पति को अधिकार होना चाहिये कि वह अपनी विवाहिता स्त्री को छोड़कर एक सस्ती-सी लड़की के पीछे भागता फिरे ?”

लेकिन वह इन बातों का कोई भी उत्तर नहीं पा सकी थी ।

सुमेश के आत्मीय व्यवहार ने उसे कुछ कुछ बदलना शुरू कर दिया था । अब फिर से उसने प्रत्येक वस्तु में रुचि लेनी शुरू कर दी थी । उसके चारों ओर की प्रकृति जिसे वह नीरस समझ बैठी थी, अब उसके लिये धीरे-धीरे सरस होनी शुरू हो गयी थी । अब वह प्रत्येक कार्य को बहुत ही उत्साह के साथ पूरा कर डालती थी । सुमेश से भी उसका बदला हुआ व्यवहार छिपा न रहा था । वह भी ख़ुश था कि अमि स्वयं को बदल रही है ।

अचानक अमि को पास आते हुए शोर ने चौंका दिया । उसने देखा, चारपांच लड़कियों में से एक लड़की ने कहा, “मैडम ! आप यहाँ छिपी बैठी है । हम तो आपको खोजते-खोजते थक गये । लंच के लिये सब लड़कियां आपका इंतज़ार कर रही हैं ।”

वह फीकी-सी मुस्कराहट के साथ उठ खड़ी हुई ।

लंच लेते समय, लंच के बाद लड़कियों के बेहूदे शोर...... शायद वह किसी बात से अपने को नहीं जोड़ पा रही थी । उसे लग रहा था कि स्पंदित संसार में एक वह ही जीवित होकर भी मृत है । उसे यह सब कुछ धुंधला-धुंधला-सा लग रहा था । स्वप्निल अवस्था में उसे मालूम भी नहीं हो पाया था कि वह कब वापस लौटी और कब हॉस्टल के अपने कमरे में कुर्सी पर निढाल-सी बैठ गयी । कमरे में शाम का अंधेरा तैर रहा था लेकिन उसकी बिजली जलाने की इच्छा बिलकुल भी नहीं थी । उसी अंधेरे में वह अलसायी-सी बैठी हुई थी । अचानक उसकी नज़र घड़ी पर गयी, “ओह ! छह बज गये ।”

उसे लगा कि उसका सारा शरीर इतनी सर्दी में भी पसीने से भीग उठा है । उसे पिछले दिन की घटना याद आ गयी जब सुमेश ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था । उसके प्रस्ताव को सुनकर उसकी आँखें भीग उठी थीं । उसके मुंह से इतना ही निकल सका था, “तुम्हें मेरे विवाह की बात मालूम ही है । तो फिर क्या यह उचित होगा ?”

“ उचित और अनुचित की क्या परिभाषा है, यह तो मैं जानता नहीं । मैं तो यह सोचता हूँ कि जब समीर ने दूसरी शादी कर ली है, तो फिर क्या तुम्हें दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं है? क्या उसे यह अधिकार है कि वह तुम्हें इतने बड़े संसार में अकेली भटकने के लिये छोड़ दे ? तुम क्या अपना सारा जीवन नितांत अकेले ही बिता पाओगी ? नहीं, अमि ! नहीं । अभी तुम्हारे जीवन का समय बहुत लम्बा है और वह भी न जाने कितने अनगिनत छोटे-छोटे क्षणों से मिलकर बना है । कुछ समय बाद तुम्हें अकेले एक क्षण भी काटना दूभर हो जायेगा ।” सुमेश कहता चला जा रहा था ।

“लेकिन...।”

“मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहा हूँ । तुम स्वेच्छा से अपने निर्णय के बारे में सोच सकती हो । निर्णय कल शाम के सात बजे तक ही कर लेना, क्योंकि तुम जानती हो कि मैं कल सात बजे की ट्रेन से अपनी नयी नौकरी पर जा रहा हूँ ।” कहकर सुमेश तेज़ी से चला गया था । और वह थकी-सी सूनी आंखों से उसे जाते हुए देखती रही थी ।

हॉस्टल के लॉन में लड़कियों के शोर ने अमि का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया । पिकनिक पर गयी लड़कियां हॉस्टल में रह गयी लड़किओं को अपने पिकनिक के अनुभव चटकारे ले-लेकर सुना रही थीं । अचानक एक लड़की ने पूछा, “और इन मैडम का क्या हाल रहा ? क्या वहाँ भी यह हमेशा की तरह मुँह लम्बा करके बैठी रहीं ?”

“और क्या? बेचारी के पास काम ही क्या है सिर्फ मुँह पर बारह बजाने के ।” दूसरी लड़की ने उत्तर दिया ।

अचानक तीसरी ने कहा, “आजकल इनकी सुमेश सर से बहुत पट रही है ।”

“तो फिर शादी क्यों नहीं कर लेतीं? पहले हज़बेंड ने तो इन्हें तलाक दे ही दिया है ।” चौथी ने प्रश्न किया ।

“शी इज़ ए कावर्ड ।” पहली ने मुँह बिचका कर कहा । अमि के कमरे में अंधेरा देखकर वह समझ रही थी कि अमि अपने कमरे में उपस्थित नहीं है ।

अमि उस लड़की की बात सुनकर कमरे में बैठी हुई तिलमिला गयी । तो क्या वह सचमुच ही ‘कावर्ड’यानि कायर है?” उसने अपने दिल में स्वयं ही से प्रश्न किया । उसे लगा कि दिल के किसी कोने में से इस बात का समर्थन ही हो रहा है । अचानक वह बदहवासी की हालत में एक झटके के साथ उठ खड़ी हुई । उसने अपने सूटकेस में जल्दी-जल्दी अपना सामान भर लिया और वॉर्डन के पास जाकर हॉस्टल की औपचारिकता निभाते हुए वह हॉस्टल से बाहर हो गयी । और जब उसे होश आया तब उसने ट्रेन के एक कम्पार्टमेंट में अपने-आपको सुमेश के बहुत नज़दीक बैठे हुए पाया । बहुत ही नज़दीक ।

- श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ