वो भारत! है कहाँ मेरा? - Novels
by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
in
Hindi Poems
आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें ...Read Moreहोकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत है कहाँ मेरा । इन्हीं आशाओं के लिए इस संकलन की रचनाऐं आप सभी के चिंतन को एक नए मुकाम की ओर ले जाऐंगी यही मेरा विश्वास है।
वो भारत! है कहाँ मेरा? ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को
वो भारत! है कहाँ मेरा? 2 vo bharat kahan hai mera 2 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार
वो भारत! है कहाँ मेरा? 3 ...Read More(काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत है कहाँ
वो भारत! है कहाँ मेरा? 4 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश
वो भारत! है कहाँ मेरा? 5 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत
वो भारत! है कहाँ मेरा? 6 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश
वो भारत! है कहाँ मेरा? 7 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो
वो भारत! है कहाँ मेरा? 8 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश
वो भारत! है कहाँ मेरा? 9 ...Read More(काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने
वो भारत! है कहाँ मेरा? 10 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश
वो भारत! है कहाँ मेरा? 11 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश
वो भारत! है कहाँ मेरा? 12 ...Read More (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश