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Ishq Faramosh by Pritpal Kaur | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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इश्क फरामोश by Pritpal Kaur in Hindi
Novels

इश्क फरामोश - Novels

by Pritpal Kaur Matrubharti Verified in Hindi Love Stories

  • 27.4k

  • 80k

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आसिफ बड़ी देर से बेचैनी के साथ ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहल कदमी कर रहा था. अब तक तो खबर मिल जानी चाहिए थी. देर क्यूँ हो रही है? कही कोई गड़बड़ तो नहीं? ये हस्पताल बहुत बेकार है. ...Read Moreतो महंगा है. वैसे इस बात की उसे कोई फिकर नहीं थी, वजह कि उसकी पत्नी जो इस वक़्त अन्दर थी, एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में अधिकारी है, सो सारा खर्चा उसकी कंपनी उठा रही थी. लेकिन इस देरी से उसे बेहद बेचैनी हो रही थी. किरण को अन्दर गए लगभग एक घंटा हो चुका था. अभी तक कोई खबर नहीं. उसकी बेचैनी हर नए मिनट के साथ बढ़ती जा रही थी. थिएटर से निकलने वाले हर व्यक्ति की तरफ वह सवालिया निगाह उठाता, वह उसे अनदेखा कर के चला जाता तो फिर वह परेशान हाल अपनी जगह पर खड़ा हो जाता और दो पल ठहर कर फिर से चहल कदमी करने लगता. मगर बेचैनी थी कि कम होने का नाम नहीं ले रही थी और अन्दर से कोई खबर नहीं आ रही थी. उसका दिल किया थिएटर का दरवाज़ा ठेल कर अन्दर ही घुस जाए और देखे कि ऑपरेशन किस तरह चल रहा है. लेकिन दरवाजे पर खडा छह फुटा तकड़ा गार्ड उसके इस इरादे को सोचते ही नाकाम कर देने के लिए काफी था.

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इश्क फरामोश - Novels

इश्क फरामोश - 1
1. बेटी या बेटा? आसिफ बड़ी देर से बेचैनी के साथ ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहल कदमी कर रहा था. अब तक तो खबर मिल जानी चाहिए थी. देर क्यूँ हो रही है? कही कोई गड़बड़ तो नहीं? ये ...Read Moreबहुत बेकार है. इतना तो महंगा है. वैसे इस बात की उसे कोई फिकर नहीं थी, वजह कि उसकी पत्नी जो इस वक़्त अन्दर थी, एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में अधिकारी है, सो सारा खर्चा उसकी कंपनी उठा रही थी. लेकिन इस देरी से उसे बेहद बेचैनी हो रही थी. किरण को अन्दर गए लगभग एक घंटा हो चुका था. अभी
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इश्क फरामोश - 2
2. बच्चा बदल गया एक हफ्ते बाद किरण बच्ची को लेकर घर पहुँची तो इंग्लैंड से माँ सुजाता का शायद तब तक ये सौंवा फ़ोन रहा होगा. अपनी खराब तबीयत के चलते वे किरण की देख-भाल के लिए आ ...Read Moreपाई थी और इस बात को लेकर उनके मन में भयंकर ग्लानी हो रही थी. किरण ये सब समझ रही थी और हर बार एक ही बात माँ को भी समझाती थी कि उनकी देख-भाल की उसे ज़रुरत नहीं है. हस्पताल में उसकी बहुत अच्छी देख-भाल हो गयी है और घर पर भी पूरा इंतजाम उसने पहले से ही कर
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इश्क फरामोश - 3
3. बेटा होता तो शाम को जब आसिफ दफ्तर से आया तब तक किरण खुद को कुछ हद तक संभाल चुकी थी और साथ ही मन में वे सवाल भी तय कर चुकी थी जो उसे आसिफ से पूछने ...Read Moreहालाँकि उसे अंदाज़ा भी था कि वो उनका क्या जवाब देगा, फिर भी मन की तसल्ली के लिए ये कवायद ज़रूरी थी. सुजाता का अगला फ़ोन आये और वह विस्तार से बात करे उससे पहले उसे जान लेना था कि वह किस ज़मीन पर खडी है. उसके पैरों के नीचे दलदल है या धरती या सिर्फ बादल; जो भ्रम तो
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इश्क फरामोश - 4
4. नींद से जागी सपने देखने की एक उम्र होती है. एक उम्र के बाद उन्हें साकार करने के वक़्त आता है. जब पहले के देखे सपने साकार होते हैं तब नए सपने भी आने शुरू हो जाते हैं. ...Read Moreका सिलसिला कुछ ऐसा है कि कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता. सपने जो सोते आदमी को और गहरी नींद में गाफिल कर के मदहोश खुमारी के आलम में ले आते हैं और फिर एक ही झटके के साथ उसे नींद से जुदा कर के हकीकत की तल्ख ज़मीन पर लावारिस छोड़ उड़न-छू हो जाते हैं. किरण की
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इश्क फरामोश - 5
5. यही कसर बाकी थी रौनक छाबड़ा इस वक़्त एन.सी.आर. के एक मशहूर इलाके नॉएडा की एक पुलिस चौकी में बैठा हुआ है. दरअसल ये एक रिहायशी फ्लैट है, तीन कमरों वाला. जिसे पुलिस चौकी में तब्दील कर दिया ...Read Moreथा. अन्दर के दोनों बेडरूम के दरवाजे खुले थे. उनमें से अन्दर लगी कुर्सियाँ और मेज़ देखे जा सकते हैं. साथ ही दीवार से लगी लकड़ी और लोहे की बेतरतीबी से लगी अलमारियां और उनमें लगी धूल भरी फाईलें. अन्दर के किसी भी कमरे में कोई नहीं था. देखने से लगता था उनमें से एक तो थानाध्यक्ष के दफ्तर के
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इश्क फरामोश - 6
6. जान में जान आयी यही सब सोचता हुआ रौनक बैठा था जब उसने एक वर्दी धारी पुलिस अधिकारी को अन्दर दाखिल होते हुए देखा. टेढ़ी कुर्सी पर बैठा हुआ रौनक काफी देर से उठने का बहाना ही ढूंढ ...Read Moreथा. फ़ौरन उठ खड़ा हुआ. वे उसकी तरफ बढ़े. रौनक भी आगे बढ़ा. बैज पर नाम पढ़ा. सूर्यनारायण सिंह. “रौनक छाबड़ा.” रौनक ने कहा और सिंह के सम्मुख खडा हो गया. हाथ मिलाने के लिए बढ़ाने ही वाला था कि याद आया आज यहाँ एक अपराधी की हैसियत से उसका बुलावा हुया है. फ़ौरन हाथ नीचे कर लिया. लेकिन तभी
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इश्क फरामोश - 7
7. मामला सुलझा नहीं सिंह ने अब तक मोर्चा संभाल लिया था. रौनक ने उसकी तरफ देखा. वह चाहता था कि अब वही बातचीत शुरू करे तो आगे का सिलसिला चल निकले. सिंह ने सोनिया से कहा, "मैडम, आप ...Read Moreशिकायत मैंने पढ़ी है. आपने जो बातें इसमें लिखी हैं ये तो पति-पत्नी का आपस का मामला है जी. आप को आपस में ही बात कर लेनी चाहिए थी. मगर अब चूँकि आप ये बात पुलिस के माध्यम से करना चाहते हो तो जी हमने आप के पति को बुला लिया है. ये बैठे हैं आपके सामने. इनसे अपनी शिकायतें
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इश्क फरामोश - 8
8. कहीं यूँ भी होता है? किरण की ज़िंदगी एक मुस्तकबिल मशीन बन कर रह गयी है. सुबह उठती है. रात भर की मुश्किलों को घसीट कर ज़ेहन से उतारती है. आसिफ के संसर्ग के आवेशों को दिमाग से, ...Read Moreसे उतार फेंकने में खासी जद्दो जहद अब नहीं करनी पड़ती. इसकी वजह तो कई हैं. मगर ख़ास वजह यही है कि अब उसे इसकी आदत सी हो गयी है. बिना किसी उत्तेजना के वह पत्नी होने के फ़र्ज़ को अदा करती है. औरत होने की अपनी जिस्मानी हकीकत आसिफ को सिर्फ इस नाते से परोस देती है कि किसी
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इश्क फरामोश - 9
9. ऐसा भी वक़्त आता है अगले दिन सुबह जब किरण अपने बेडरूम में दाखिल हुयी तो आसिफ सो ही रहा था. किरण ने उसकी तरफ देखा और नज़र घुमा ली. वह अपनी ज़िंदगी तो बर्बाद कर चुकी थी, ...Read Moreऔर आज के दिन को जाने क्यूँ बचा ले जाना चाहती थी. इसी तरह अब उसे जीना था. एक-एक दिन को बचा कर ले जाते हुए, फिसलन भरी राह पर बच-बच कर चलते हुए. एक एक दिन बचा कर ही एक उम्र तक लांघ कर जाना होगा. किरण का दिल इस वक़्त धुंआ-धुंआ हो रहा था. जाने कैसे दिन आ
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इश्क फरामोश - 10
10. ये क्या हुया? भापाजी का वो दिन बेकार नहीं गया था. हालाँकि वकील साहब को साथ लेने का कोई कानूनी नफ़ा-नुक्सान तो नहीं हुया था. लेकिन जिस तरह की सिचुएशन बेटे पर आन पडी थी भापा जी कोई ...Read Moreअसावधानी रख के बाद में पछताने की स्थिति में हरगिज़ नहीं थे. अब जिस्म में जवानी जैसी ताकत नहीं रह गयी है. जिसके चलते भावनात्मक तौर पर शुरू से ही कुछ कच्चे से रहे भापाजी अब बहुत जल्दी घबरा जाते हैं. उनकी तबीयत एकदम गिर जाती है. गायत्री तो हमेशा ही शुगर और गठिया के चलते ढीली-ढीली सी रहती हैं,
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इश्क फरामोश - 11
11. डर काहे का मम्मी को एअरपोर्ट से ले कर आ रही थी किरण. माँ-बेटी का मिलाप तीन साल के बाद हो रहा था. माँ ने देखते ही पहले उसे अपने सामने खड़ा कर के भरपूर नज़र से देखा ...Read Moreएक माँ की नज़र से दिल को तसल्ली हुयी थी. बेटी का जिस्म कुछ भर आया था. मातृत्व की छाप साफ दिखाई दी थी. जो रोज़ साथ रहने वाले को शायद न दिखाई पड़ती. खुद किरण को महसूस नहीं हुयी थी क्यूंकि नीरू के पैदा होने के छः महीने के अन्दर ही उसके सभी कपडे उसे फिट आने लगे थे.
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इश्क फरामोश - 12
12. एक घर हो हमारा सोनिया का हाथ पकडे हुए नीचे उतर कर जब रौनक लिविंग रूम में पहुंचा तब तक भापाजी और गायत्री खाना खा चुके थे और डाइनिंग टेबल से उठ ही रहे थे. भापाजी सीधे जा ...Read Moreसोफे पर बैठ गए, गायत्री हमेशा की तरह अपने बाथरूम में गयीं. उनकी जब से रूट कैनाल ट्रीटमेंट हुयी है वे हर खाने के बाद अपने दांत साफ़ करती हैं. फ्लॉस तो ज़रूर ही करती हैं. बहुत तकलीफ उठाई है गायत्री ने इस दांत में दर्द के मारे. अब बहुत एहतियात बरतती हैं. कभी-कभी कह भी उठती हैं, "बेटा डेंटिस्ट
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इश्क फरामोश - 13
13. यूँ मिलना किसी का अचानक इतवार का दिन पूरे घर के लिए बहद व्यस्तता से भरा रहा. नीरू को अचानक बुखार हो गया. सुबह उठते ही किरण ने डॉक्टर से बात कर के अपॉइंटमेंट लिया. तैयार हो कर ...Read Moreसे निकली तो देखा सुजाता भी तैयार थी. कनिका को सुजाता ने घर पर ही रहने को कह दिया था. दोनों ने जल्दी से नाश्ता किया और बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास गए. नीरू चिडचिडी हो रही थी. नानी से कल जो नयी-नयी दोस्ती हुयी था, आज उसका नामो निशाँ तक नहीं बचा था. सुजाता को थोड़ी मायूसी हुयी.
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इश्क फरामोश - 14
14. वो गुजरा ज़माना सुजाता की फिलिंग के बाद दवाएं बता कर उन्हें अगले हफ्ते की अपॉइंटमेंट दे कर रौनक दोनों को बाहर गाडी तक छोड़ने आया. रास्ते में किरण ने कुछ घर का सामान खरीदा. सुजाता गाडी में ...Read Moreबैठी रहीं. अब धीरे-धीरे जो लोकल एनेसथीसिया का असर कम हो रहा था तो दाढ़ और होंठ के एहसास लौट रहे थे साथ ही आ रहा था दर्द. दाढ़ में खुदाई हुयी थी खराब हिस्सा निकाल दिया गया था. अच्छा खासा घाव था. टीसने लग गया था. यही वक़्त था दर्द की दवा खाने का. सुजाता ने फ्लास्क में से
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इश्क फरामोश - 15
15. कभी छूटा ही नहीं था रौनक आज घर आया तो जैसे वो रौनक नहीं था. कोई और ही था. या शायद जब रौनक था तब उसके बाद किसी एक दिन से उसका रौनक होना छूट गया था. वह ...Read Moreछाबडा हो गया था. आज अचानक एक मरीज़ आयीं और उसकी बेटी ने उसे फिर से रौनक बना दिया था. आज फिर एक बार भापाजी पर रोष हो आया था. ऐसा रोष जो कभी व्यक्त नहीं कर पाया था. मगर अंदर ही अंदर हलके हलके पल रहा था उसके. दिन तो मरीजों के साथ निकल गया था. शाम आज उसकी
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इश्क फरामोश - 16
16. बच बच के निकलना सुजाता दो दिन से सोच रही है कि आसिफ से बात की जाए. मगर आसिफ के पैरों को तो मानो पर ही लग गए हैं. सोमवार को सुजाता दिन भर दांत में दर्द के ...Read Moreढीली तबीयत के चलते अपने कमरे में ही रहीं. वो दिन आसिफ का ऑफ होता है मगर वह घर से गायब रहा. किरण ने कनिका और साजिद से पूछा लेकिन किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी. किरण समझ गयी कि आसिफ को सुजाता का आना और तीन महीने तक घर में साथ रहना पसंद नहीं आया है. मगर इस
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इश्क फरामोश - 17
17. कभी यूँ भी होता तीन दिन बाद जब किरण ऑफिस जा रही थी फिर रौनक का फ़ोन आया. “हेल्लो" फ़ोन ब्लूटूथ पर था. किरण खुद ड्राइव कर रही थी. ड्राईवर आज छुट्टी पर था. “हाय किरण.” हमेशा की ...Read Moreरौनक ने कहा. और इसके बाद बावजूद कि फ़ोन उसने खुद किया था वो किरण के कुछ बोलने का इंतज़ार करता रहा था. ये उसकी पुरानी आदत है. किरण जानती है. मगर अब वो पुरानी वाली किरण नहीं है. वो भी इंतज़ार करती रही. कुछ देर चुप्पी छाई रही. कोई कुछ नहीं बोला. आखिर रौनक को बोलना ही पडा. “आज
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इश्क फरामोश - 18
18. ये भी होना ही था. सुजाता को भारत आये हुए तीन हफ्ते हो चुके थे. दाढ़ का इलाज भी हो चुका था. फिलिंग सही हो गयी थी. क्राउन भी सही तरीके से फिट हो गया था. इस दौरान ...Read Moreपांच बार रौनक से मिलना हुआ. हर बार रौनक ने बेहद आत्मीयता से सावधानी के साथ उनका इलाज किया. आख़िरी सिटींग में क्राउन को थोडा घिस कर उसे बिलकुल आरामदायक बना दिया. “आप कुछ दिन अच्छे से परख लें. अगर ज़रा सी भी उलझन या परेशानी लगे या मसूढ़े में दर्द हो तो आप मुझे फ़ौरन फ़ोन करियेगा. आप को
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इश्क फरामोश - 19
19. आखिर तुम्हे आना था सुबह अभी सिर्फ अनीता ही उठी थी. भापाजी और गायत्री के लिए चाय की ट्रे लगा रही थी कि बाहर के दरवाजे की घंटी बजी. इतनी सुबह तो कोई नहीं आता. मगर हो सकता ...Read Moreभापाजी ने ड्राईवर को जल्दी बुलाया हो. ये सोचते हुए अनीता ने दरवाज़ा खोला तो सामने सोनिया को देख कर चौंक गयी. एक बार को उसे लगा कि शायद आँखों को धोखा हुया है. इस घर में कई साल रहते हुए कभी इतनी सुबह अनीता ने नहीं देखा था सोनिया को. लेकिन सोनिया ही थी. वो भी नहा धो कर
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इश्क फरामोश - 20 - अंतिम भाग
20. कहीं दूर निकल जाएँ बच्चे आज कल रोजाना स्कूल के बाद सीधे भापाजी के घर आने लगे थे. स्कूल के लिए लगाई गयी कार उन्हें यहीं छोड़ने लगी थी. सोनिया ने कुछ सोच कर उनका ये कार्यक्रम बना ...Read Moreथा. ज़ाहिर है भापाजी और गायत्री को इसमें कोई ऐतराज़ नहीं था. गायत्री को बच्चों के नियमित कार्यक्रम न होने से परेशानी थी जो उन्हें लगता था कि बच्चों की उचित परवरिश के लिए ठीक नहीं है. अब इस तरह एक बंधा-बंधाया कार्यक्रम उनके हिसाब से ठीक था. बच्चे शाम तक वहीं रहते. स्कूल का कुछ काम होता तो कर
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