Ishq Faramosh - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क फरामोश - 2

2. बच्चा बदल गया

एक हफ्ते बाद किरण बच्ची को लेकर घर पहुँची तो इंग्लैंड से माँ सुजाता का शायद तब तक ये सौंवा फ़ोन रहा होगा. अपनी खराब तबीयत के चलते वे किरण की देख-भाल के लिए आ नहीं पाई थी और इस बात को लेकर उनके मन में भयंकर ग्लानी हो रही थी. किरण ये सब समझ रही थी और हर बार एक ही बात माँ को भी समझाती थी कि उनकी देख-भाल की उसे ज़रुरत नहीं है. हस्पताल में उसकी बहुत अच्छी देख-भाल हो गयी है और घर पर भी पूरा इंतजाम उसने पहले से ही कर रखा है.

आज भी यही सोच कर उसने माँ का फ़ोन लिया था कि वही बातें दोहराई जायेंगी. लेकिन आज उनकी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं हुयी. सुजाता ने इधर-उधर की, उसकी सेहत की, बच्ची की सेहत और दूसरी छोटी छोटी बातों के बाद छूटते ही पूछा, "बेटा, बच्ची जब पैदा हुयी थी तो तुम होश में थीं न? "

"हाँ मम्मी, लेकिन आप ये बात क्यूँ पूछ रही हैं?" किरण कुछ हैरान हुयी.

"यूँ ही. वैसे ही. अच्छा एक बात बताओ. कहीं तुम्हें ऐसा तो नहीं लगा कि बच्ची बदल गयी हो." उनकी आवाज़ में जो झिझक सी थी वो किरण समझ नहीं पाई.

"यह कैसी बात कर रही हो माँ ? ऐसा भी कभी होता है क्या? और क्यूँ कोई मेरा बच्चा बदलेगा?"

किरण झुंझला गयी थी. जानती है सुजाता की आदत है अक्सर बाल की खाल निकालने की. लेकिन ये क्या बात हुयी भला? डॉक्टरों पर शक करना और वो भी इस तरह का वाहियात शक?

"बेटा, अब क्या बताऊँ. मैं बहुत दिनों से परेशान हूँ इस बात को लेकर. इसलिए तुम से दो टूक बात करना चाहती हूँ. पूरी तरह से याद कर के बताओ. ऑपरेशन के बारे में और किस तरह बच्ची पैदा हुयी थी. एक एक बात याद कर के बताओ. मेरी परेशानी दूर करने का यही एक तरीका है."

किरण बेतरह उलझ गयी. ये क्या कह रही है माँ?

"मम्मी, मुझे साफ़ साफ़ बताइए क्या मामला है. आप मुझे स्ट्रेस दे रही हैं. आप ठीक तो हैं? क्या हो गया है?" परेशानी में और गंभीर मसलों पर बात करते हुए किरण औपचारिक हो आती थी. वर्ना लाड से कई बार माँ भी कहती थी. कभी-कभी परेशानी में उनका नाम सुजाता ही निकल आता था किरण के मुंह से और फिर दोनों ही हंस पड़ती थी.

माँ और किरण के बीच माँ बेटी से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था. इसकी एक बड़ी वजह दोनों के बीच उम्र का बहुत कम अंतर होना भी था. केवल उन्नीस साल का. जल्दी हुयी शादी की पहली संतान थी किरण. उसके बाद और कोई संतान हुयी नहीं और फिर किरण के पिता उसके पांच साल की होते न होते भरी जवानी में ही टाइफाइड की बीमारी के बिगड़ जाने से गुज़र गए.

माँ ने आगे पढ़ाई की. प्रशासनिक प्रतियोगिता पास की और आई. ए. एस. की ठाट भरी नौकरी की. अब रिटायर हो कर इंग्लैंड में बस गयी हैं. वहां ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेस्सेर हैं. दोबारा शादी नहीं की. वजह जानने की न किरण ने कभी कोशिश की न माँ ने कभी ज़िक्र किया. खुद किरण ने बहुत देर से पैंतीस की उम्र में शादी की और अब चालीस की उम्र में पहले बच्चे को जनम दिया है.

"बेटा. मैं चाहती तो नहीं थी कि तुमसे ये बात कहूँ लेकिन मेरा दिल बेचैन है. तुम्ही मेरी बेचैनी को विराम दे सकती हो. याद कर के बताओ एक-एक बात." माँ के स्वर में तड़प और प्रार्थना दोनों ही थे.

किरण उदास हो आयी. माँ को इस क़दर कातर उसने कभी नहीं सुना था. दिल किया उड़ कर माँ के पास चली जाये सात समंदर पार. लेकिन इस वक़्त संभव नहीं था. हालात और उसका स्वास्थ्य कोई भी इस बात की फिलहाल इजाज़त नहीं देते थे. माँ खुद लम्बी बीमारी से जूझ रही थी. वे भी नहीं आ सकती थी वर्ना ये बातें फ़ोन पर नहीं होती. और पूरा माजरा जानने के बाद तो किरण समझ गयी कि माँ यहाँ होतीं तो इस तरह की उलझन पैदा ही नहीं होती.

"माँ, मैं बताउंगी एक-एक बात. लेकिन पहले मुझे बताओ माजरा क्या है. ये सवाल क्यूँ उठा है आपके मन में? मैं समझ नहीं पा रही हूँ. प्लीज बताओ." उसके स्वर में आजिजी सुन कर माँ ने शायद उधर फैसला किया और इसी के साथ ही किरण को एक लम्बी सी सांस उस पार से सुनायी दी.

वह दम साध कर सुनने को तैयार हो गयी. बेहद गंभीर मसलों पर माँ ऐसे ही पूरी तरह से एक प्रशसनिक अधिकारी बन जाती थीं और फिर हर बात बेहद गंभीर और गौर-तलब होती थी. आपको पूरी तरह चौकस पाबन्द रह कर सुनना होता था.

"बेटा, जब बच्ची पैदा हुयी तो आसिफ का उसी वक्त मुझे फ़ोन आया, मैं तुम्हारी तरफ से खबर के इंतजार में थी. मुझे तुमने बता ही दिया था कि लेबर पेन शुरू हो गए हैं और तुम हस्पताल पहुँच गयी हो. सो मैं चौकस थी. आसिफ ने खुशी से उमगते हुए मुझे बताया था कि बेटा हुआ है. वो बहुत खुश था. बार बार कह रहा था मैंने तो किरण को पहले ही कहा था कि लड़का होगा. देखा आपने माँ? मैं सही निकला. मैंने उसे मुबारकबाद दी थी और कहा कि तुम जब होश में आओ तो मेरी तुमसे बात करवाए और जब बच्चा नर्सरी से माँ के पास आये तो उसकी भी आवाज़ सुनाये. "

किरण भौंचक्की रह गयी. उसके मुंह से निकला, " माँ उसने झूठ क्यूँ बोला भला? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. ये क्या बात है? आप को ठीक से याद है आप ने ठीक से सुना था? फ़ोन लाइन में खराबी तो नहीं थी?"

"हाँ बेटा. बिलकुल यही सब कहा उसने. मैं भी खुश थी बेटा. और सोने की तैयारी करने लगी कि अब सब लोगों को सुबह उठ कर ही फ़ोन करूंगी. और तभी जब मैं आधी नीन्द में थी तो आसिफ का दोबारा फ़ोन आया. मुझे लगा तुमसे बात करवाने को किया होगा लेकिन हैरत भी हुयी कि ऑपरेशन के आधे घंटे के बाद ही तुमसे कैसे बात हो पायेगी, लेकिन इस बार मेरी चौंकने की बारी थी. वह बहुत हडबडाया सा था. कह रहा था ...माँ मैंने आपको गलत कह दिया था. बेटा नही बेटी हुयी है. मुझे वार्ड बॉय ने गलत जानकारी दे दी थी. अभी डॉक्टर बाहर आयी हैं तो मुझे सही बात पता लगी है. बेटी हुयी है. बाद में आपकी बात किरण से करवाउंगा और उसने फ़ोन बंद कर दिया. मैं हैरान परेशान थी कि ये सब क्या गड़बड़ घोटाला है."

किरण यह सुन कर तो और भी ज्यादा हैरान परेशान हो गयी थी. "मम्मी, ये क्या कह रही हैं आप? ये सब हुआ और मुझे आप अब बता रही हैं. इतने दिनों के बाद? ये क्या कहानी है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. "

सुजाता ने जैसे उसकी बता सुनी ही नहीं. वे कह रही थी.

"मैं उसके बाद सो नहीं पाई और उठ कर सबसे पहले मैंने अपने सारे कॉन्टेक्ट्स टटोले तो पता लगा कि मेरी एक दोस्त जो सर्जन है आज कल उसी हस्पताल में हैं. उसको फ़ोन मिलाया, वो वहीं थी हस्पताल में, उसने तुम्हारी गुनोकोलोगिस्ट से मेरी बात करवाई. उन्होंने पुष्टि की कि उन्होंने ही तुम्हारा सिजेरियन ऑपरेशन किया था और बेटी हुयी है. तुम दोनों बिलकुल ठीक हो. उन्होंने यह भी बताया कि वे भी वार्ड बॉय से बात कर चुकी हैं. वार्ड बॉय बार-बार एक ही बात कह रहा है कि उसने लडकी होने की ही जानकारी दी थी. वह स्वीकार करता है कि उसे इनाम के तौर एक हज़ार का नोट दिया था आसिफ ने और वह खुद हैरान था क्योंकि लडकी होने की खुशी में अक्सर लोग इतना इनाम नहीं देते हैं. फिर उसने सोचा कि नया ज़माना है लोग खुश होते हैं लड़का हो या लडकी. लेकिन बेटा, मेरे मन में गाँठ पड़ गयी है. अब तुम ही इसे खोल सकती हो. प्लीज एक-एक बात याद कर के बताओ. मैं एक बार अच्छी तरह से तसल्ली कर लेना चाहती हूँ अपने मन में. फिर इस बात को दफ़न कर दूंगी हमेशा के लिए."

किरण का मुंह खुला का खुला रह गया था. कई पलों तक वह समझ नहीं पाई कि वह क्या बोले, क्या सोचे और क्या करे. तभी बच्ची उठ गयी थी और आया कनिका उसे उठा कर किरण के पास ले आई थी. बच्ची भूखी थी उसके दूध पीने का टाइम हो गया था.

माँ अभी फ़ोन पर ही थी, "मुझे भी कुछ समझ में नहीं आया उस वक़्त. मैं भी इसी तरह ठगी सी रह गयी थी. ऐसा तो कभी देखा न सुना. कभी कोई इस तरह की गलत जानकारी भी दे सकता है? मेरी समझ से परे था. मैंने बात की तह तक जाने का फैसला कर लिया है. "

माँ ने उधर रिसीवर के उस पार बच्ची की आवाज़ सुन ली थी. प्यार से एक बोसा उन्होंने फ़ोन पर ही देते हुए कहा था, "चल बेटा, बाद में बात करेंगे. बच्ची को दूध पिलाओ, संभालो, बहुत मन करता है इससे मिलने को, जल्दी ही आने की कोशिश करती हूँ."

किरण बच्ची में व्यस्त तो हो गयी लेकिन उसका मन बेतरह उखड गया था. वो समझ नहीं पा रही थी कि इस मसले पर आसिफ से किस तरह बात करे. क्या सवाल करे और क्या जवाब सुनने को तैयार हो.

आसिफ लड़का चाहता था ये तो वो जानती थी लेकिन उसका जूनून इस क़दर उस पर हावी होगा इसका अंदाज़ा किरण को कत्तई नहीं था. पिछले पांच साल के उसके दांपत्य में पहली बार उसे अपने इस शादी के फैसले पर शक हुआ. और वो भी बच्ची की पैदाईश के बाद. उसने सर को एक झटका दिया और इस ख्याल को दिल से निकाल देने का फैसला किया.