नक्षत्र कैलाश के - Novels
by Madhavi Marathe
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Hindi Travel stories
हमारी सॄष्टी एक असीम नैसर्गिक और परा नैसर्गिक शक्तियों का सागर हैं। अगर उन शक्तियों को जानना हो, महसूस करना हो, तो उनके सान्निध्य में जाना अत्यंत आवश्यक हैं। केवल कल्पनासे हम उन शक्तियों का अंदाजा नहीं लगा सकते। ...Read Moreबौद्धिक स्तर पर पहचानना मुश्किल हैं, लेकिन हम उसे महसूस कर सकते हैं । इन शक्तियोंसे हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार परिचित हो जाता हैं। कोई विश्वास,श्रद्धाभाव, या वैज्ञानिक रूप से खोजते हुए उन शक्तियों के पास जाता हैं, तो वह शक्तियां व्यक्ति को कभी खाली हाथ नहीं जाने देती हैं। मानसिकता के अनुसार व्यक्ति को अपना फल प्राप्त होता हैं।
उन असीम नैसर्गिक शक्तियों को, भगवान का नाम देकर सगुण, निर्गुण रुप में स्थित यह शक्तियां तिर्थक्षेत्र के नाम से जानी जाती हैं। वहां भगवान की अत्युच्च तरंगे होती हैं । व्यक्ति उन तरंगो में जाकर अपने आप में एक तरह से उर्जा युक्त पाता हैं।
ऐसें अनेक क्षेत्रों में से एक क्षेत्र हैं कैलाश मानसरोवर । केवल नाम लेने से मन में सुकून समा जाता हैं । वहां जाने के लिए अनेक लोग उत्सुक रहते हैं। बहुत सुविधा के कारण अब काफी मात्रा में लोग जाने लगे हैं। साल 2000 मे, मैं जब जाकर आ गई वह अनुभव आज भी कल्पना जगत में महसूस करती हूं। इसीसे अध्यात्मिक विचार का उद्गम शुरु हुआ। उन विचारों को शब्दों में परिवर्तित करने की इच्छा प्रबल होती गई और भगवान शिव, जो विचार मन में भेजते रहे ,उनकी तरलता का अनुभव स्पर्श करते हुए शब्द तयार होते गए। और नक्षत्र कैलाश के किताब रुप में परिवर्तित हो गई। यही अनुभव आप सब के साथ बांटना चाहती हुं। सावन के महिने में इस माध्यम से भगवान शिव की असीम कॄपा हमपर बरसती रहेगी और उस आनंद मैं हम भावविभोर हो उठेंगे।
अध्यात्मिकता, गिर्यारोहण, कलाकृती कोई भी माध्यम को चुनते हुए आप कैलाश मानसरोवर का सफर कर सकते हैं।
प्रारंभ में, हमारी सॄष्टी एक असीम नैसर्गिक और परा नैसर्गिक शक्तियों का सागर हैं। अगर उन शक्तियों को जानना हो, महसूस करना हो, तो उनके सान्निध्य में जाना अत्यंत आवश्यक हैं। केवल कल्पनासे हम उन शक्तियों का अंदाजा नहीं ...Read Moreसकते। इन्हें बौद्धिक स्तर पर पहचानना मुश्किल हैं, लेकिन हम उसे महसूस कर सकते हैं । इन शक्तियोंसे हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार परिचित हो जाता हैं। कोई विश्वास,श्रद्धाभाव, या वैज्ञानिक रूप से खोजते हुए उन शक्तियों के पास जाता हैं, तो वह शक्तियां व्यक्ति को कभी खाली हाथ नहीं जाने देती हैं। मानसिकता के अनुसार व्यक्ति को अपना
2. ...और कई दिन बितते एक दिन टेलिग्राम ऐसी खर्ज वाणी सुनाई पडी। टेलिग्राम कहाँसे आया हैं वह मुझे पता था क्योंकी कैलाशयात्रा में जाने के लिए आप सिलेक्ट होते हो तब ही आपको टेलिग्राम भेज़ा जाता हैं। वह ...Read Moreहाथ में लेकर कितनी देर तक एक आनन्द की तृप्ती में
3. देखते देखते जाने का दिन आ गया ।एक आशंका भरी स्थिती में ही आँख खुल गई। आँख खुली तो ऐसा लगा की मैं किसी बंधन में जकड़ गई हूँ। यह बंधन तो माया का बंधन हैं। कितनी गहरी ...Read Moreथी उसमें। इससे निकल पाना असंभव लग रहा था। माया की जडे कितनी
4. ओम नमः शिवाय की गुंजती हुई जयजयकार से 10.30 बजे गाडीयाँ छूट गई। हर यात्री जैसे अपने रिश्ते के बंधन से अब बाहर आने की कोशिश कर, वास्तविकता में आना चाह रहा था। विदाई में हिल रहे हाथों ...Read Moreसाथ मन भी दोलायमान हो रहा थे, लेकिन धीरे धीरे वह
5 हाथ पैर धोने के बाद वही पर सब चाय का आस्वाद लेने लगे। हमारा आज का ठहराव यही पर था। बाद में नदी किनारे घुमते, ताजी हवाओं का आनन्द उठाते, मन की लहरे उमड़ रही थी। अगर आपका ...Read Moreबहते पानी में एक क्षण के लिए भी एकाग्र हो ज़ाए
6 वहाँ पहूँचते ही हमें मिनार जाने की उत्सूकता थी। लेकिन हर काम अपने समय के अनुसार ही होता हैं। अपनी अपनी चाय खत्म करके सब मिनार चढने लगे। वहाँ से बहुत सारी पर्वत चोटीयाँ नजर आ रही थी। ...Read Moreइसकी ज़ानकारी देने लगे। सामने दिख रहा हैं वह नंदादेवी
7 मुझे नींद नही आ रही थी। मन विचलीत हो गया था। ऐसी कोई बात थी जो मेरा मन अस्वस्थ कर गई लेकिन वह कौनसी बात वहाँ तक मैं पहूंच नही पा रही थी । धीरे धीरे मन से ...Read Moreकी घटनाओं के तरफ जाने का अभ्यास शुरू किया। ऐसे
8 अब कठीन चढ़ाई शुरू हो गई । मंगती गाँव समूद्रतल से लगभग पाँच हज़ार फीट की ऊँचाई पर हैं। यहाँ से कठिन चढ़ाई शुरू हो ज़ाती हैं। गाला गाँव समुद्रतल से आठ हज़ार पचास फीट ऊँचाई पर हैं ...Read Moreमंगती से गाला जाने के लिए तीन हज़ार फीट की चढ़ाई
9 तीन बजे ही नींद खुल गई। हिमालयीन वातावरण की यह खासियत हैं व्यक्ति कितना भी थका हारा क्यों ना हो ,रात की चार पाच घंटे की नींद उसे एकदम तरोताज़ा बना देती हैं। बिस्तर से उठकर खिड़की से ...Read Moreदेखने हुए धीरे धीरे इस अमृतबेला के ज़ादू में विलीन होने लगी।
10 हिमालयीन पहाड़ सबसे कमजोर पर्वत श्रृंखला हैं। काले कठीन पत्थरोंसे यह पहाड़ नही बने हैं। इस में सीप का चूना पत्थर ज्यादा मात्रा में हैं। इस वजह से जमीन पानी को सोख लेती हैं, और उसी पानी की ...Read Moreहोने के कारण जमीन में दरारे पड़ती हैं। दरारों के कारण
11 छियालेक से लगभग 3 कि.मी. जाने के बाद गरब्यांग गाँव लगा। यहाँ कैलास दर्शन के लिए गई थी, वह दुसरी बॅच मिल गई। उनके चेहरे पर जो सुकून था, आनन्द था, अलौकीक भाव था वह देखने के बाद ...Read Moreजाने की लालसा तीव्रता से बढने लगी। उनसे बाते करके अच्छा लगा। हमारे
12 क्षितीज का भाव परोपकार का था। समाज की उन्नती उसके लिए जरूरी थी। सब लोग अच्छे से जीवन बिताए इस भावना से वह प्रेरित थी। लेकिन यह हमारा वैयक्तिक दृष्टीकोन हैं। हमारी करूणा उनके लिए उपयोगी सिध्द होगी ...Read Moreनही पता नही। लोग अपने काम के लिए सिर्फ इस्तमाल करते हैं। जिनकी
13 थोडे विश्राम के बाद हम जवानों से बातचीत करने लगे। उन्होंने कहाँ आप यात्री आते हो वही हमारे लिए थोडा बदलाव रहता हैं। आपका यात्रा समय खत्म हो जाने के बाद एक पंछी भी यहाँ दिखाई नही देता। ...Read Moreतरफ बर्फ ही बर्फ। जनलेवा ठंड़। पहरा देने गया हुआ जवान वापिस आएगा या नही इसका
14 नाश्ते के बाद सब बाहर आ गए। चारों ओर घना अंधियारा छाया हुआ था। चांदनी रात में अंधेरा घना लग रहा था या तारों नक्षत्रों की तेजस्विता यह तो समझ के बाहर हैं। लेकिन एक दुसरे के बिना ...Read Moreअधूरे हैं। आज हम लोग चीन में प्रवेश करने वाले थे। नाभीढांग से लेकर
15 भारत के सफर में जो नैसर्गिक सौंदर्य का विविध रूप से दर्शन होता हैं उससे अलग रूप तिबेट मार्ग में नजर आता हैं। दोनों के सौंदर्य में बहुत फर्क हैं। लिपु लेक से तिबेट तक का मार्ग ठंडे ...Read Moreसे जाना जाता हैं। 31 कि.मी. दुरी तय करने के
16 तकलाकोट में दो मार्केट हैं। एक चिनी तो दुसरा भारतीय। यहाँ चीनी बनावट की हलकी चीजे सस्ती मिलती हैं। ज्योस्त्ना, क्षितिज और मैं बाज़ार में खरीदारी करने निकल पड़े। यह पुरा इलाका रेत और कंकरों से भरा था। ...Read Moreपौधे इधर उधर नजर आ रहे थे। तिबेटीयन औरते कुछ बनाते
17 तिबेटीयन लोग इस सरोवर को अपवित्र मानते हैं। कुछ ड्रायव्हर तो वहाँ गाडी रोकने से भी मना कर देते हैं। अतिभारीत लोह से भरे इस पानी से तथा बुरे कर्मोंसे लोगों को दूर रखने कितनी कहानियाँ और पाप ...Read Moreका हिसाब ऋषी मुनियोंने लगा के रखा हैं। जिस चीज का परहेज किया हैं उस हर एक
18 अपने मन में कौन से विचार आने चाहिए, नही आने चाहिए इसपर भी अपना नियंत्रण नही हैं। अगर अपना बस चलता तो कोई अच्छे ,सकारात्मक खयाल ही मन में आने देता। मोह ,माया, असुया, शत्रूता ऐसे खयाल मन ...Read Moreलाना किसको अच्छा लगेगा ? क्यों की ऐसे विचार करते समय व्यक्ति खुद जलता
19 तिबेटियन मान्यताओं के अनुसार कैलाश,विश्व के केंद्रस्थान पर स्थित हैं और उसकी ऊँचाई आकाश तक पहुँची हुई हैं। ऐसा माना जाता हैं की पर्बत की आधी ऊँचाई पर कल्पवृक्ष हैं, चारों कक्षा सुवर्णांकीत हैं। पुरब दिशा में हिरे, ...Read Moreमें नील, पश्चिम में माणिक, और ऊत्तर दिशा की ओर सुवर्ण ऐसे जड़जवाहिरों
20 मौसम एकदम साफ था। इस कारण पहली बार पश्चिमाभिमुख कैलाश के दर्शन हो गए। कैलाशदर्शन का आनन्द और चढ़ान की तकलिफ यह मिश्र भावनाऐं मन में समाई हुई थी। डेरापुक कँम्प लांबचु नदी किनारे स्थित हैं। यहाँ पहुँचने ...Read Moreहमे सात घंटे लगे। समुद्रतल से लगभग 16200 फीट ऊँचाई पर हम पहुँच
21 वातावरण साफ होने के बाद ज़ान में ज़ान आ गई। हम लोग अभी 19550 फीट ऊँचाई पर पहुँचने वाले थे। धुप,ठंड़, शारीरिक थकान के कारण साँस भी फूल गई थी। बार बार पानी,टॉफीज,मिश्री शक्कर खाना जरूरी हो गया। ...Read Moreका विरलापन ,अति ऊँचाई ऐसी जगह पर हायपोमिया हो सकता हैं। नेपाल मार्ग से आयी हुई
22 यह नेपाल और तिबेतियन लोगों की परिक्रमा करने की पध्दति हैं | अर्थात, पहिले पैदल परिक्रमा करने के बाद ही कैलाश पर्बत के नजदीक मार्ग से यह प्रदक्षिणा प्रक्रिया को अनुमति दी ज़ाती हैं| इस परिक्रमा के लिए ...Read Moreदिन लगते हैं | पैदल या याक पर बैठकर की हुई परिक्रमा, तीन दिन
23 माँ जैसे बच्चे को स्कुल ट्रिप के लिए भेजती हैं तो साथ में खाना,पानी, पैसा, मित्रपरिवार उनको देखने वाले शिक्षक, ऐसे सब सुविधा के साथ भेजती हैं, वैसेही ईश्वर भी हमें संसार में आते वक्त यह सब देते ...Read Moreभेजता हैं | जो साथ में देकर भेज़ा हैं उसका दुरुपयोग किया
24 बरखा मैदान के भोवताल पर्वत श्रेणीयाँ हैं उसे कैलाश रेंज कहते हैं | इसमें कैलाश पर्बत सबसे ऊँचा हैं | मानो शिव अपनी नजर से दूर तक, हम यात्रियों पर प्यार का छिड़कावा कर रहे हो | मन ...Read More,आँखों में वह रूप समेटते हुए अचानक कैलाश नजरों से ओझल हो गया
25 आज हमें चुग्गु से झैदी तक ज़ाना था | मानस परिक्रमा का आँखरी दिन | पानी के ऊपर बैठे पंछी देखकर अचरज हुआ | उनको क्या मिलता होंगा यहाँ खाने के लिए ? गुर्लामांधाता पर्बत के दर्शन, रास्ते ...Read Moreनजदीक से हो गए | गुलाबकी पंखुडीयोंकी तरह पर्बत का रंग था | अब
26 शिष्य परिक्रमा करने के बाद एक जगह चद्दर बिछाए बैठ गए। एक दिन बीत गया ,दो गए आखिर तिसरे दिन एक पत्थर उपर से गिरते हुए हाथ में आ गया। वही शिवलिंग था। शिष्यों को जैसे स्वर्गप्राप्ती की ...Read Moreहो गई। अपनी झोली में लिंग रखते हुए दोनो वापिस जाने लगे। यह
27 किसी के साथ झगडे होने कारण उनके मन खेदपुर्वक क्षमाप्रार्थी हो गए। कोई किसी से गिला शिकवा नही रखना चाहता था ,क्यों की ऑक्सिजन की कमी ,हायअल्टिट्यूड़ के कारण अपने मन पर नियंत्रण ना रहा होगा यह बात ...Read Moreसकते थे। आदमी कभी बुरा नही होता, बुरे होते
28 अब अचानक समाप्त का बोर्ड लगते ही अजीब लगा। एक खालीपन सताने लगा। लेकिन उस खाली पन पर सांसारीक मोह माया ने कब्जा कर लिय़ा। संसार के आकर्षण ज़ाल में मैं धीरे धीरे फँसती गई। मुझे शांत देखकर ...Read Moreचिढाने लगे। ऐसे बदले हुए माहोल में झट से घुल ज़ाना मुझे मुश्किल
29 अनुपम नज़ारें आँखों में बसे हुए थे। मन में शांति का प्रशाद विराजमान था। हम यात्री अब भाग्यशाली लोगों में से एक थे और क्या चाहिए ? बुधी गाँव के नजदीक एक पूल लाँघने के बाद देव, घोडा ...Read Moreहुए पिछे से आ गया और मैं घोडे पर बैठकर आगे
30 देव पोर्टर के आँखों में आँसू थे। देखा ज़ाए तो यह उनका पेशा था। लेकिन अपने मन की निर्मलता से सबका दिल जीत लेते हैं। मेरे पास जो भी देने जैसा था मिंट,स्कार्फ,छोटी बॅग, और थोडे पैसे सब ...Read Moreदिए। पूरे सफर में उसने जो साथ दिया उस