Amma Mujhe Mana Mat Karo book and story is written by Ratna Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Amma Mujhe Mana Mat Karo is also popular in Motivational Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अम्मा मुझे मना मत करो - Novels
by Ratna Pandey
in
Hindi Motivational Stories
रामदीन अपने गाँव की एक सुंदर-सी लड़की वैजंती से प्यार कर बैठा था। वह हर रोज़ वैजंती के घर के सामने से निकलता; एक बार नहीं, कभी-कभी तो दो तीन बार भी। जब तक वैजंती उसे दिखाई नहीं देती वह उसे रास्ते के पीछे ही पड़ जाता। वैजंती भी धीरे-धीरे समझने लगी कि यह लड़का उसी के लिए इस तरफ़ के चक्कर लगाता रहता है। धीरे-धीरे वैजंती को भी उसका इंतज़ार रहने लगा। जब तक वह भी रामदीन को ना देख ले उसका मन शांत नहीं होता। एक अजीब-सी बेचैनी उसे परेशान करती रहती। अब रोज़-रोज़ के आने-जाने से रामदीन को इतना तो समझ आ ही गया था कि उसे ग्रीन सिग्नल मिल रहा है। वैजंती उसे देखते ही शरमा कर अंदर भाग जाती लेकिन अगले दिन उसी समय फिर से बाहर आकर बैठ जाती।
एक दिन वैजंती के पिता ने रामदीन पर नज़र पड़ते ही उसे आवाज़ लगाई, “ऐ लड़के इधर आ …”
रामदीन कुछ पल के लिए घबरा गया परंतु फिर निडरता के साथ चलता हुआ वैजंती के पिता के पास आकर खड़ा हो गया और पूछा, “क्या है काका आपने मुझे क्यों बुलाया?”
रामदीन अपने गाँव की एक सुंदर-सी लड़की वैजंती से प्यार कर बैठा था। वह हर रोज़ वैजंती के घर के सामने से निकलता; एक बार नहीं, कभी-कभी तो दो तीन बार भी। जब तक वैजंती उसे दिखाई नहीं देती ...Read Moreउसे रास्ते के पीछे ही पड़ जाता। वैजंती भी धीरे-धीरे समझने लगी कि यह लड़का उसी के लिए इस तरफ़ के चक्कर लगाता रहता है। धीरे-धीरे वैजंती को भी उसका इंतज़ार रहने लगा। जब तक वह भी रामदीन को ना देख ले उसका मन शांत नहीं होता। एक अजीब-सी बेचैनी उसे परेशान करती रहती। अब रोज़-रोज़ के आने-जाने से रामदीन
रामदीन और पार्वती बेचैनी से वैजंती के आने का इंतज़ार कर रहे थे। पार्वती सोच रही थी कैसी होगी उसकी होने वाली बहू। कुछ ही समय में वैजंती अपनी माँ के साथ एक हाथ में मिठाई और कचौरी से ...Read Moreप्लेट लेकर वहाँ आई। रामदीन की निगाहें वैजंती के चेहरे पर अटक गईं लेकिन उसकी अम्मा की आँखें वैजंती के चेहरे से होते हुए उसके हाथों पर आकर अटक गईं। वह समझ गईं कि इस लड़की का तो एक हाथ काम नहीं कर रहा है। उनका मन भारी हो गया और वहाँ एक सन्नाटा-सा छा गया। तभी इस सन्नाटे को
जब सुखिया केवल दस वर्ष की थी तब एक दिन अचानक उसको चाक घुमाता देखकर रामदीन की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसे ऐसा लग रहा था मानो सुखिया ऐसी अद्भुत कला अपने साथ खून में समेट कर ...Read Moreआई है। सुखिया के हाथ चाक पर इस तरह घूम रहे थे मानो महीनों का अभ्यास करके आई हो। मिट्टी का वह खिलौना ऐसा रूप ले रहा था जैसा कि ख़ुद रामदीन बनाया करता था। इतनी छोटी उम्र और छोटे-छोटे हाथों से यह हो पाना असंभव नहीं तो अत्यधिक कठिन अवश्य ही था। रामदीन ने आखिरकार सुखिया से पूछ ही
सुखिया की आँखों में आँसू थे, उसे दुख था लेकिन अपने हाथों पर उसे विश्वास भी था। वह सब कर लेगी बस यही सोच उसे मजबूती दे रही थी। वैजंती ने अपनी बेटी के पास आकर कहा, “सुखिया अब ...Read Moreक्या होगा बिटिया?” फिर अपने हाथ की तरफ़ इशारा करते हुए आगे कहा, “मैं तो लाचार हूँ, जैसे तैसे घर का काम कर लेती हूँ।” सुखिया ने अपनी माँ को प्यार से निहारते हुए कहा, “अम्मा रो मत, बाबू जी ने मुझे सब कुछ सिखा दिया है। मैं हूँ ना मैं सब कर लूंगी।” वैजंती को नन्ही सुखिया की बातों
वैजंती उसके मन में चाहे जो भी सोच रही हो लेकिन सुखिया का इरादा अटल था। मेले में जाने के उत्साह ने उसे और भी अधिक जोश से भर दिया था। धीरे-धीरे सुखिया ने बहुत सारे बर्तन और मटके ...Read Moreबना लिए। वह उन पर रंग भरकर सुंदर चित्रकारी भी करने लगी। यदि माँ सरस्वती का आशीर्वाद लेकर किसी का जन्म होता है और मेहनत करने की चाह होती है तो कला हाथों से निकलकर कलम, पेंसिल या चित्रकारी करने के ब्रश तक अपने आप ही पहुँच जाती है। सुखिया तो जैसे माँ सरस्वती का आशीर्वाद लेकर ही पैदा हुई