Khwabgah book and story is written by Suraj Prakash in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Khwabgah is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
ख़्वाबगाह - Novels
by Suraj Prakash
in
Hindi Fiction Stories
एक बार फिर विनय का फोन। अब तो मैं मोबाइल की तरफ देखे बिना ही बता सकती हूं कि विनय का ही फोन होगा। वह दिन में तीस चालीस बार फोन करता है। कभी यहां संख्या पचास पार कर जाती है। और इतनी ही संख्या में व्हाट्सअप मैसेज। पहले बीच-बीच में मैं उसके मैसेज पढ़ लेती थी लेकिन जब देखा कि वही मैसेज कॉपी पेस्ट करके हर दिन और हर बार रिपीट किये जा रहे हैं और उनमें अपनी हरकत के लिए माफी मांगने के अलावा कुछ नहीं होता तो मैंने वे संदेश पढ़ने भी बंद कर दिये हैं।
एक बार फिर विनय का फोन। अब तो मैं मोबाइल की तरफ देखे बिना ही बता सकती हूं कि विनय का ही फोन होगा। वह दिन में तीस चालीस बार फोन करता है। कभी यहां संख्या पचास पार कर ...Read Moreहै। और इतनी ही संख्या में व्हाट्सअप मैसेज। पहले बीच-बीच में मैं उसके मैसेज पढ़ लेती थी लेकिन जब देखा कि वही मैसेज कॉपी पेस्ट करके हर दिन और हर बार रिपीट किये जा रहे हैं और उनमें अपनी हरकत के लिए माफी मांगने के अलावा कुछ नहीं होता तो मैंने वे संदेश पढ़ने भी बंद कर दिये हैं।
बेशक इस पूरे घटनाक्रम में मेरा कुसूर नहीं है लेकिन....। इस लेकिन का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। ऐसे कैसे हो गया कि जिस आदमी के लिए मैंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया, अपना दीन ईमान, चरित्र, परिवार, ...Read Moreअपने बच्चे सब को पीछे रखा और सिर्फ उसके लिए पिछले 12 वर्षों से हलकान होती रही, उससे मिलने के लिए, संबंध बनाए रखने के लिए हर तरह के रिस्क उठाती रही, उसने मेरे ही घर पर आ कर मुझे थप्पड़ मारे। एक नहीं दो, और वह भी काम वाली नौकरानी के सामने।
उसके बाद से विनय के तीस चालीस फोन और इतने ही मैसेज रोज आते हैं। मिलने के लिए न वह आया है और न मैं ही खुद उसके पास जाने की हिम्मत जुटा पायी हूं। उसका फोन मैंने एक ...Read Moreभी नहीं उठाया है। गलती उसकी है। वह भी छोटी-मोटी नहीं, बिना बात के बतंगड़ बना देना औेर मेरे ही घर पर आ कर नौकरानी के सामने मुझे दो थप्पड़ मार देना। अब भी सोचती हूं तो मेरी रूह कांप जाती है। विनय आखिर ऐसा कर कैसे गया।
उसका बेपनाह मोहब्बत करना, मेरा ख्याल रखना, मेरे लिए महंगे महंगे उपहार लाना, मेरी छोटी से छोटी जिद पूरी करना और मेरी हर बत्तमीजी को हंसते हंसते झेल जाना, और इन सबके ऊपर उसका अपनेपन से सराबोर व्यवहार मुझे ...Read Moreआकर्षित करता और मैं हर मुलाकात के बाद पिछली मुलाकात की तुलना में उसके प्रति और समर्पित होती जाती। दिन हो या रात, जब भी फोन आता, बावरी की तरह अटेंड करती। यह कितनी बार हुआ कि हम रात रात भर बात करते रहे और इस बात का मुझे कभी मलाल नहीं हुआ कि मुझे इस संबंध में इतना आगे नहीं जाना चाहिए कि जिनके पता चलने पर मेरे घर वाले मुझसे नाराज या परेशान हो सकते हैं।
तभी मुझे विनय के शादीशुदा होने का पता चला था। मेरे जन्म दिन के सातवें दिन। हम दोपहर के वक्त यूं ही मालवीय नगर में मटरगश्ती कर रहे थे। तभी एक गोलगप्पे वाले को देख कर विनय ने कहा ...Read Moreचलो गोलगप्पे खाते हैं। देखते हैं कौन ज्यादा खाता है। मैं भला कहां पीछे रहने वाली थी। मैंने पैंतीस खाये थे और विनय ने तीस पर ही हाथ खड़े कर दिये थे। गोलगप्पे वाकई बहुत अच्छे थे और गोलगप्पों का पानी जायकेदार था। तभी विनय ने प्रस्ताव रखा कि ऐसे और इतने सारे गोलगप्पे बहुत दिन बाद खाये हैं। तुम एक काम करो। घर वालों के लिए लेती जाओ।